Friday, May 18, 2012

नूरजहाँ- मलिकाए तरन्नुम


आज मौसम मेहरबान है, बादलों ने कम से कम अपनी सूरत तो दिखाई है. पाकिस्तान रेडियो से नूरजहाँ का गाया अच्छा सा गाना आ रहा है. “हमारी सांसों में आज तक वह हिना की खुशबू महक रही है...पता नहीं क्यों उसे पकिस्तानी गाने बहुत अच्छे लगते हैं, यही नहीं उनके कई और भी कार्यक्रम उसे बहुत पसंद आते थे. उसने अमृत लाल नगर का उपन्यास 'मानस के हंस' पढ़ना शुरू किया है जो संत तुलसीदास के जीवन पर आधारित है. कल टीवी पर सत्यजित रे द्वारा निर्देशित एक धारावाहिक देखा “कलाकृति” जो बहुत अच्छा था. दो हफ्ते बाद उसका जन्म दिन है और लगभग पचास दिन बाद उसका जो आजकल अपनी उपस्थिति कितनी तीव्रता से व्यक्त करता है.
सुबह उठते ही जून ने उसे याद दिलाया कि आज का दिन कितना विशेष है. आज से चार वर्ष पहले इसी दिन वह उससे मिलने आया था,वह तब हॉस्टल में थी. पूरा दिन उन्हें साथ रहना था. पहली बार वे घूमने गए थे. उसका साथ कैसी अनजानी, उस समय तक बिल्कुल नयी, अछूती अनुभूतियों से भर देता था. पल-पल झिझक भरा स्पर्श, पास-पास आने की चेष्टा करते हुए वह दूर-दूर रहना. वे बहुत खुश थे. एक दूसरे की समीपता में खुश रह सकते हैं ऐसा अहसास हुआ था. उसी का तो परिणाम है यह उनका जीवन भर का अटूट बंधन. जून की बातें उस दिन जितनी मोहक थीं आज उससे कहीं ज्यादा ही हैं. फिर भी उस दिन का महत्व तो है.

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