आज उसने काले चावल बनाये हैं, 'काला जोहा' जो
आसाम में ही उगाया जाता है. बनने के बाद भी बिलकुल काले होते हैं. उन्हें पकने में
ज्यादा समय लगता है. एक सखी अपनी बिटिया को लेकर लगभग दस-बारह दिनों के लिए बाहर
गयी है, उसकी माँ और भाई यहाँ अकेले थे, वह उनके लिए अक्सर दोपहर को एक सब्जी
बनाकर भेज देती है. शेष भोजन वे बना लेते हैं. बगीचे में फूल गोभी हुई है, आज पहली
बार बनाई है, उन्हें अवश्य पसंद आएगी. उससे पहले ध्यान किया पर मन सात्विक भावदशा
में नहीं था. शायद शरीर पूरी तरह से शुद्ध नहीं था या कल रात्रि को नींद पूरी न
होने के कारण मन एकाग्र नहीं हो पा रहा था. कल सरस्वती पूजा के कारण शोर बहुत देर
तक आ रहा था, यहाँ आजकल पूजा के नाम पर देर रात तक तेज आवाज में संगीत बजाने का
अधिकार मिल जाता है. रात को एक बार नींद खुली, कुछ देर ध्यान के लिए बैठी, फिर
नींद आयी पर स्वप्न चलने लगे. एक बार लगा, नींद में कुछ शब्द उसके मुख से निकले
हैं, और जून पूछ रहे हैं, क्या हुआ ? उस समय लगा था, सचमुच उसी क्षण की बात है. वह
आँख बंद किये रही, कुछ जवाब नहीं दिया. कुछ देर बाद लगा कि उसके कंधों में दर्द है
पर उसके कहने के बावजूद भी जून सुन नहीं रहे हैं. अचानक स्वप्न टूटा और सारा दर्द
गायब हो गया. स्वप्न में दर्द कितना तीव्र था. वे स्वयं ही अपने दर्द के निर्माता
हैं. मोह और आसक्ति का त्याग करना होगा. जब स्थूल के प्रति मोह नहीं त्यागा जा रहा है तो संबंध तो अति सूक्ष्म हैं,
कितना सूक्ष्म मोह होगा उनके प्रति. शारीरिक अशुद्धि के कारण ही स्वप्न भी आते
हैं. इसीलिए शौच का इतना महत्व है योग में. वे ही अपने भाग्य के निर्माता हैं और
हन्ता भी..
आज सुबह अवधेशानंद जी ने एक अच्छा शेर सुनाया-
"वह खुद को बेहतर में शुमार करता है
अजीब है, कितना खुद का शिकार करता है"
अपने ही दुश्मन वे स्वयं बन जाते हैं. अनुभवानंद जी ने कहा
कि बाल ही बालक है, नर ही नरक है, नर जब तक देहात्म भाव में है, नर्क में ही है.
कामना जब तक है तब तक नर्क में ही हैं वे. अनाहत चक्र से अध्यात्म की यात्रा आरम्भ
होती है. उन्हें कितना अच्छा अवसर मिला है कि मानव देह मिली है. सुख-सुविधा मिली
है और गुरू का ज्ञान मिला है. श्री श्री कहते हैं, "ध्यान या योग ठहरना सिखाता है, भोग दौड़ना सिखाता है."
कल रात नींद अच्छी आयी. सुबह समय पर उठे वे, इक्का-दुक्का
तारे नजर आ रहे थे आसमान पर जो ज्यादातर बादलों से ढका था. इस समय धूप खिली है पर
उसमें तेजी नहीं है. गले में हल्की खराश सी लग रही है, देह को स्वस्थ रखने का
कितना भी प्रयास करो, कुछ न कुछ लगा ही रहता है. आत्मा निर्लेप है, निरंजन,
निर्विकार..कल शाम योग कक्षा में आत्मा के बारे में बताया. 'अष्टावक्र गीता' सुनी,
गुरूजी कितने सुंदर ढंग से श्लोकों का अर्थ बता रहे हैं. आज एक राजयोगी के मुख से
सुना, दिन में आठ घंटे परमात्मा के साथ योग लगाना चाहिए, सारे कर्म नष्ट हो जाते हैं,
शक्ति प्राप्त होती है और ज्ञान में सहज गति होती है. संत तो आठ घंटे क्या चाबीसों
घंटे योग में ही स्थित रहते हैं. आज शाम को क्लब में मीटिंग है.
आज छोटी बहन के विवाह की वर्षगांठ है, उसके लिए कविता रिकार्ड की, भेजी. माली को आलस्य त्याग
कर कुछ श्रम करने को कहा, समझाया, उसे किताब दी. 'तू गुलाब होकर महक'. बाबाजी की
लिखी किताब. एक नोटबुक तथा एक पेन भी. शायद उसकी बुद्धि में कुछ बात बैठ जाये. आज
के ध्यान का समय इसी सेवा में बीत गया. उसकी पत्नी अपने पुत्र को स्कूल ले गयी थी
कल. उसने दाखिले के लिए पैसे मांगे हैं, अगले महीने का एडवांस. वह अस्वस्थ है और
दुखी भी, पति यदि नाकारा हो तो पत्नी के पास आँसू ही बचते हैं. आज वर्षा के कारण
ठंड बढ़ गयी है. रात से ही झड़ी लगी है, पर आश्चर्य प्रातः भ्रमण के समय रुकी हुई
थी.
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07 -07-2019) को "जिन खोजा तिन पाईंयाँ " (चर्चा अंक- 3389) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत बहुत आभार !
Deleteसुन्दर वर्णन
ReplyDeleteस्वागत व आभार ओंकार जी !
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