आज सुबह
उठी तो मन सजग था. भीतर एक अचल स्थिरता का अनुभव अब देर तक टिकने लगा है, पर जब वे
प्रातः भ्रमण से लौट कर आये तो जून से एक विषय पर कुछ बात हो गयी. जिसके कारण व्यर्थ
ही कुछ समय गया. अहंकार कितने सूक्ष्म रूप से भीतर रहता है, पता ही नहीं चलता. जून
को तो क्षमा किया जा सकता है, अभी उन्होंने क्रोध पर विजय पाने की न तो साधना शुरू
की है और न ही ऐसा दावा करते हैं, पर उसने तो साधना भी की है और दावे भी बहुत किये
हैं. फिर भी इस तरह व्यर्थ ही मन को नकार से भरना..शायद यही परमात्मा चाहते थे,
ताकि उसे अपनी वास्तविक स्थिति का ज्ञान हो सके. उस दिन नन्हे से कहा था कि अब
क्रोध का शिकार नहीं होता मन, पर कोई जड़ वस्तु ही ऐसा दावा कर सकती है. चेतन के
पास अनंत सम्भावनाएं हैं. उसके बाद से सजगता बढ़ी है. प्राणायाम भी सही विधि से
किया, वस्त्रों को सहेजा, व्यायाम किया और अब यह लेखन.. उनका जीवन यदि सत्य को
प्रतिबिम्बित नहीं कर रहा तो साधना का फल प्राप्त नहीं हुआ. शाम को मीटिंग है, नई
कमेटी को पहला बुलेटिन निकालना है. वर्षा लगातार हो रही है. कल दीदी से बात हुई,
उनका हॉल कमरा बीजेपी की मीटिंग्स के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था, पहले कांग्रेस
के लिए भी वे दे चुके हैं और इसके लिए कोई चार्ज नहीं लेते. शादी के लिए देते वक्त
भी वे कह देते हैं, जितना मन हो दे जाओ. सेवा का यह कार्य सहज ही उनसे हो रहा है.
आज बहुत दिनों के
बाद भागवद का पाठ किया, अच्छा लगा. एक दिन समय निकाल कर राखियाँ बनाने का कार्य भी
करना है, संडे क्लास में बच्चों को भी सिखाना है. आज सुबह से वर्षा थमी है.
वातावरण शीतल है. पर सबसे जरूरी है भीतर की शीतलता. परमात्मा की बनाई इस सुंदर
सृष्टि का आनन्द भी तभी ले सकता है कोई जब मन खाली हो. अहंकार से ग्रसित मन कुछ और
देख ही नहीं पाता, वह स्वार्थ से भर जाता है और दुःख का भागी होता है. परसों ही
जून ने कहा, ये लोग प्यार से रहना नहीं जानते, जब नैनी के घर में लोग लड़ रहे थे.
तत्क्षण उसके मन में ख्याल आया था, क्या वे लोग स्वयं जानते हैं ? और कल सुबह ही उसका
जवाब मिल गया. मानव रेत की दीवारों पर किले खड़ा करना चाहता है. नहीं सम्भव है यह.
वर्षों साथ-साथ चलने के बाद भी आत्माएं अपनी-अपनी राह ही चलती हैं, और यही उनकी
नियति है, यही उनके लिए सही है, क्योंकि वे अपनी-अपनी यात्रा पर हैं. परमात्मा के
सिवा आत्मा का कोई सहयात्री नहीं है.
आज छोटे भाई का जन्मदिन
है, सुबह उससे बात हुई. भाभी ने उसे सुंदर शब्दों में बधाई दी है. सुबह अलार्म बजने से पहले ही किसी
ने जगा दिया. जैसे कोई भीतर पल-पल की खबर रखता है. वे टहलने गये तो हल्की सी वर्षा
हो रही थी न के बराबर. अब भी बदली है. आज विशेष सफाई का दिन है. घर की सफाई के
साथ-साथ अंतर की सफाई भी आवश्यक है. आज भी सुमिरन किया, स्थिरता का अनुभव अब भीतर
जाते ही हो जाता है. वह अनुभव तो सदा से वहीं था, वे ही दुनिया में उलझे थे. दोपहर
को बाजार जाना है, शिक्षक दिवस के लिए क्लब की तरफ से उपहार खरीदने हैं. मृणाल
ज्योति के लिए वे अपनी तरफ से भी कुछ उपहार खरीदेगी.
अहंकार से ग्रसित मन कुछ और देख ही नहीं पाता, वह स्वार्थ से भर जाता है और दुःख का भागी होता है...बहुत खूब लिखा है अनीता जी
ReplyDeleteस्वागत व आभार अलकनंदा जी, अहंकार का भोजन दुःख है, सुख से उसका पेट ही नहीं भरता..
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