शनिवार और
इतवार फिर गुजर गये. वर्षा लगातार होती रही है पिछले दिनों. आज थमी है. सुबह वह
स्कूल गयी, लौटते समय किसी गाँव के एक खेत में, जिसमें वर्षा का पानी भरा हुआ था,
तेल का रिसाव हो रहा था. वहाँ सम्भवतः नाला भी रहा होगा. गाँव के लोग कम्पनी के
वाहनों को रोक रहे थे. उनकी कार भी रोकी तो भीरु ड्राइवर झट बिना किसी प्रतिवाद के
रुक गया और उसे भी बाहर निकलने से मना करने लगा, पर कुछ क्षणों के बाद उसने उनमें
से एक व्यक्ति से इतना कहा, वह स्कूल से आ रही है, उसे जाने दें, तो उसने कहा, ठीक
है जाइये. भला व्यक्ति था वह. उन्हें अधिकारियों तक अपनी बात पहुँचानी थी, ताकि जो
नुकसान हो रहा है, उसे रोका जाये. तेल के नुकसान के साथ-साथ खेत का नुकसान भी हो
रहा था. अब शायद अगले कुछ समय तक वहाँ कुछ भी नहीं उगेगा. पौने ग्यारह बजे हैं,
जून आने वाले होंगे. आज सुबह उठते ही मोबाइल के प्रयोग पर उसने उन्हें टोका, शायद उन्हें
अच्छा नहीं लगा होगा, पर हर चीज का एक वक्त होता है, यह वह खुद ही कहते हैं.
जन्माष्टमी का उत्सव आने वाला है. उसे कृष्ण के लिए एक सुंदर कविता या गीत लिखना
है.
कल वे हो जायेंगे विदा
और परसों भूल
जायेंगे उन्हें लोग
इस तरह जैसे कि कभी
था ही नहीं
उनका अस्तित्त्व इस
दुनिया में
आज ही उनके हाथ में
है
चाहे तो गीत
गुनगुना लें
या अहंकार को सजा लें
जो है ही नहीं..
उसके कारण अपने
पावों में
काँटों को चुभा लें
या दी है जिसने
जिन्दगी की नेमत
उस रब को रिझा लें
आज सितम्बर की पहली
तारीख है. दूधवाले का हिसाब कर लिया था, पर उसे पैसे देना भूल गयी, इसी तरह वे
अनावश्यक कार्यों में स्वयं को उलझाकर सदा ही आवश्यक को भूल जाते हैं. कल दिन में
एक-दो बार लगा जैसे मौसम में बदलाव आ रहा है. पर आज भी वर्षा की अनवरत झड़ी सुबह से
लगी है. बरामदे में प्रातः भ्रमण किया, घर बड़ा होने का यह फायदा तो है ही. कल
दोपहर को भागवद् व कल्याण का एक अंक पढ़ा. कृष्ण जन्माष्टमी के लिए कविता लिखनी
आरम्भ की, कृष्ण की महिमा अनंत है और भक्तों से बढ़कर कौन उसका बखान कर सकता है. आज
सुबह सद्गुरू ने विस्मय पर कितना अद्भुत प्रवचन दिया. इस जहाँ की हर शै उन्हें
विस्मय से भर देती है. उस दिन, अरे, कल ही तो फिर वह बड़ी चमकीली मक्खी उसकी अंगुली
पर आकर बैठी थी, उसने उसे उड़ा दिया. अस्तित्त्व उससे प्रेम करता है, वह यानि वही..फिर
घनघोर वर्षा के बावजूद एक पीली तितली उडती नजर आई !
कल कुछ नहीं लिखा, ट्रेड
यूनियन की हड़ताल के कारण जून का दफ्तर बंद था. तबियत भी उतनी ठीक नहीं थी, इस समय
भी सिर की चोटी पर दर्द है, पर चाय से इसका कोई संबंध है, ऐसा तो नहीं होगा. मन भी
आजकल कुछ का कुछ सोचता रहता है, ठीक ही कहा है स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास
होता है. वे वही होते हैं जो वे सोचते हैं, इन्सान चाहे तो आकाश की ऊंचाइयों को छू
ले और न चाहे तो गहरी खाई भी कम होगी उसके लिए ! आश्चर्य होता है इतने वर्षों की
साधना के बाद भी मन अपनी चाल से चलता है. आज सुबह स्कूल की उप प्रधानाचार्या ने
कहा, कक्षा दस में गणित पढ़ाना है कुछ दिनों
के लिए, पिछले वर्ष भी पढ़ाया था शायद इन्हीं दिनों. इसका अर्थ है कुछ दिनों तक उसे
रोज ही स्कूल जाना होगा. कल सांख्यकी का एक अध्याय पढ़ाना है. परसों मृणाल ज्योति भी
जाना है, शिक्षक दिवस के उपलक्ष में.
अनिता जी आपकी अभिव्यक्ति मन को जोड़ लेती है।
ReplyDeleteआपका यह संस्मरण बहुत अच्छा लगा।
सुस्वागत व बहुत बहुत आभार श्वेता जी !
Deleteसशक्त अभिव्यक्ति!!!
ReplyDeleteस्वागत व आभार विश्वमोहन जी !
Deleteबहुत बहुत आभार ध्रुव जी !
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रभावी
ReplyDeleteबधाई
स्वागत व आभार ज्योति जी !
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