Wednesday, February 14, 2018

अग्नि, वरुण, इंद्र, सोम



मौसम भला-भला सा है आज. सुबह उठने से पहले एक स्वप्न देखा, जिसमें पतीले में चाशनी जल जाती है. कल शाम टीवी पर ऐसा ही कुछ देखा था, जला हुआ केक खाकर एक व्यक्ति बेहाल हो रहा था. उनका मन भी टीवी से कम तो नहीं है. कितनी फ़िल्में और नाटक दिखता रहता है. छाता लेकर वे प्रातः भ्रमण के लिए गये. लौटकर टीवी पर वेदों के मन्त्र व व्याख्या सुनी. एक अद्भुत मन्त्र का भाव आज सुनाया प्रद्युम्न महाराज जी ने. अग्नि के रूप में परमात्मा सदा उन्हें आगे ही आगे ले जाता है. इंद्र के रूप में वह दक्षिण दिशा में रहकर उन्हें बलशाली बनता है. वरुण रूप में पीछे से उनकी रक्षा करता है, उन्हें पाप कर्मों से बचाता है. सोम रूप में उत्तर दिशा में रहकर उन्हें शांति प्रदान करता है. बृहस्पति रूप में वह ऊपर की दिशा में उन्हें प्रोत्साहित करता है. विष्णु रूप में नीचे की दिशा में वह उनका आधार बनता है तथा पालन करता है. परमात्मा चेतन है व उन्हें जड़ से मुक्त चैतन्य देखना चाहता है. किन्तु यह भी सत्य है कि देह में आने के बाद जड़ मन, बुद्धि के द्वारा ही उन्हें अपना बोध होता है. विचित्र है यह परमात्मा की बनाई सृष्टि..

कल शाम को नई कमेटी की पहली मीटिंग थी, अच्छी रही, सिर्फ एक बात को छोड़कर. एक सदस्या बाजार में गिर गयीं. उन्हें चक्कर आ गया और अस्पताल में भर्ती होना पड़ा है. एक दूसरी सदस्या जो उनके साथ थीं, उन्हें अस्पताल ले गयीं. जून भी दफ्तर से कल देर से आये. रात सोने में देर हुई फिर सुबह उठने में भी. नाश्ता बना रही थी ख्याल आया कि अगले कुछ दिनों में एक सदस्या को विदाई देने जाना है, उनके लिए उपहार खरीदना है. मन में विचार आने लगे. परमात्मा का भजन करते समय भी एकाध बार आया. उसे लगा इतने से काम की जिम्मेदारी से उसका मन व्यस्त हो गया है, जिन पर ज्यादा जिम्मदारियां रहती होंगी, उनके मनों का क्या हाल होगा. उनके लिए एक कविता भी वह लिखेगी.

कल ‘रक्षा बंधन’ है, वे मृणाल ज्योति जायेंगे. आज सुबह वर्षा तेज थी, छाता लेकर जाना भी सम्भव नहीं था. इस समय असमान स्वच्छ है, तीन बजे हैं दोपहर के, उसने सोचा जून के आने तक बगीचे में ही टहलते हुए कोई किताब पढ़ेगी. कल रात नन्हे से बात हुई, वह अस्पताल में था, उसके मित्र के भाई को डेंगू बुखार हो गया है, उसे लेकर गया था. मित्र बाहर गया है, पर रात को उसकी बहन आने वाली थी. बारह बजे लौटा वह घर, सेवा की भावना है उसमें, ईश्वर उसे शक्ति दे ! नैनी काम कर रही है. उसका तीसरा महीना चल रहा है, अभी तक दोबारा अस्पताल नहीं गयी है. इंतजार कर रही थी कि देवरानी का बच्चा एक महीने का हो जायेगा तो उसका मेडिकल कार्ड अपने नाम करा लेगी और तब दिखाएगी. आश्चर्य होता है उसे इनकी सोच पर, कपड़ों और उत्सव पर खर्च कर सकते हैं, पर अपने स्वास्थ्य के लिए नहीं.

सुबह जून ने उठाया तो कोई स्वप्न चल रहा था, अब याद नहीं है. भीतर कोई जागरण महसूस हो रहा था. एक चेतना का अनुभव जो साक्षी है, जो सदा है, जो मीत है, जो अनंत है, जो उन पर प्रेमपूर्ण दृष्टि रखता है, जो मौन है, सभी कुछ उसके भीतर है पर वह किसी के भीतर नहीं है. वह सबसे अछूता है, अस्पृश्य ही रह जाता है वह, अलिप्त है वह सदा, उस साक्षी में टिके रहना भला लगता है, वहाँ रहकर दुनिया के नजरों को देखते रहना.. प्रकृति में प्रतिपल कितना कुछ घट रहा है पर सबके पीछे जो निराकार सत्ता है, वह सदा एक सी है. आत्मा उसी का अंश है, उसके जैसा है. आत्मा के लिए मन, बुद्धि, संस्कार सभी प्रकृति हैं, जो पल-पल बदल रहे हैं, आत्मा साक्षी है, पर मन व बुद्धि संस्कारों के अनुसार ही कार्य करते हैं, देह भी पुराने संस्कारों के अनुसार चलती है. उनका भविष्य भी इन्हीं संस्कारों से निर्धारित होता है. जब मन आत्मा में टिका रहता है और आत्मा अपने मूल में टिकी रहती है तो उतने समय उनके संस्कार शुद्ध होते हैं. बुद्धिमत्ता इसी में है कि वे अपने सच्चे स्वरूप में टिककर ही जगत का व्यवहार करें, उनका सच्चा स्वरूप शुद्ध है, बुद्ध है, तथा मुक्त है, वहाँ अहंकार नहीं है. वहँ केवल चेतन ऊर्जा है ! जो ऊर्जा समष्टि में व्याप्त है, वही ऊर्जा व्यष्टि में है. दोनों में कोई भेद नहीं है. आत्मा का परमात्मा से मिलन सम्भवतः इसी को कहते हैं. उसका मन अब बार-बार उसी मौन में लौटना चाहता है.

3 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.02.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2881 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

    ReplyDelete
  2. बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर विचार है...बहुत अच्छा लिखा आपने

    ReplyDelete