पिछले तीन
दिन कुछ नहीं लिखा. शनिवार और इतवार को काम कुछ ज्यादा रहता है. कल सोमवार को फिर
नैनी का स्वास्थ्य ठीक नहीं था. माली की पत्नी को भी अस्पताल जाना है, आज उसका
आपरेशन हो सकता है, नूना ने ही बहुत समझा-बुझा कर भेजा है. वह भी समझ गयी है, दो
बच्चों से परिवार पूर्ण हो गया है, अब तीसरे की कोई आवश्यकता नहीं है. कल रात्रि
भूतपूर्व राष्ट्रपति एपीजे नहीं रहे. हर कोई उनसे प्रेम करता था. उनके जीवन की तरह
उनकी मृत्यु भी शानदार रही. शिलांग में व्याख्यान देते हुए ही उनका अंतिम समय आया.
वह भी ऐसी ही मृत्यु चाहती है और ऐसी ही मृत्यु उसे मिलेगी ऐसा विश्वास भी है. अब्दुल
कलाम जी के अंतिम क्षणों के बारे में उनके असिस्टेंट ने बेहद मार्मिक शब्दों में
जो कहा है, उसे पढ़कर आँखें नम हो गयीं. सचमुच वे भारत रत्न थे. कल रात को पुनः
अजीब सा स्वप्न देखा, उनके मन की गहराई में क्या-क्या छिपा है, कुछ पता नहीं चलता.
शायद किसी कर्म का भुगतान भी स्वप्न द्वारा होता होगा, शायद नहीं, ऐसा ही है. उनके
हर छोटे-बड़े कर्म का फल तो मिलने ही वाला है, सो कुछ कर्मों का फल वे सूक्ष्म देह
में पा लेते हैं, कुछ का स्थूल में. कुछ देर पहले बड़ी ननद का फोन आया, वह नन्हे के
विवाह के बारे में उत्सुक है. एक रिश्ते की बात कर रही थी. आज धूप बहुत तेज है,
तापमान ३६ डिग्री है. एसी रूम में बैठकर कुछ राहत मिल रही है.
शाम के चार बजने
वाले हैं. आज भी धूप कल की सी तेज है. दोपहर को एसी में कुछ जल गया, वे गेस्ट रूम
में शिफ्ट हो गये, फिर मकैनिक को बुलाया. आज भी नैनी काम पर नहीं आई. उसने पानी का
बड़ा पतीला उठा लिया, रीढ़ की हड्डी में कुछ महसूस हो रहा है. उठाते वक्त एक ख्याल
आया था कि भार ज्यादा है पर जोश में ध्यान नहीं दिया. सुबह नैनी से पूछा, अस्पताल
गयी या नहीं, तो उसने कहा वह इस बच्चे को जन्म देना चाहती है. कल रात ही उसने
बीमारी का असली कारण बताया था, पता चला कि जिस भय से मुक्त करने के लिए वह उसे अस्पताल
भेज रही थी वह तो पहले ही सत्य सिद्ध हो चुका है. दो बेटियों के बाद उसे पुत्र की
चाह है. अभी छोटी बेटी दो वर्ष की भी नहीं हुई है. देवरानी अगले हफ्ते ही सन्तान
को जन्म देने वाली है. पता नहीं ये लोग किस मिट्टी की बनी हैं. उसने एक परिचिता को
फोन किया जिसके पति डाक्टर हैं. उसने कहा अस्पताल में महला समिति का एक ग्रुप है
जो ग्रामीण व अबोध महिलाओं को परिवार नियोजन की जानकारी देता है. बातों-बातों में
उसने एक बंगाली कलाकार रॉबिन बार के बारे में बताया, जो दोनों हाथों से एक साथ
चित्र बनाता है, जरूरत पड़ने पर पैर से भी. जब वह परिचिता उससे मिली तो मात्र उसके हस्ताक्षर
से उसने कृष्ण का चित्र बना दिया. जैसे कला की कोई सीमा नहीं है कलाकार की भी
नहीं. छोटी बहन कल नन्हे के यहाँ पहुँच गयी. आज शाम वह आश्रम जा रही है. परसों
उसका जन्मदिन है. गुरूजी तो विदेश में हैं पर आश्रम में उनकी उपस्थिति का अहसास
फिर भी होता होगा. गुरू से एक बार जुड़ना होता है फिर मुक्त भी होना होता है. जैसे
बच्चा माँ की ऊँगली पकड़कर चलता है फिर समर्थ होने पर छोड़ भी देता है वैसे ही शिष्य
भी एक दिन उसकी छाया में चलता है फिर जब वह जानता है कि गुरू, आत्मा व परमात्मा
में कोई भेद नहीं है तो वह स्वयं को उससे पृथक नहीं मानता. फिर पीछे चलने की बात
ही नहीं रहती. भीतर का गुरू तब जाग जाता है जो हर कदम पर चेताता रहता है. शाम उसे
भी एक मित्र परिवार के यहाँ जाना है, पर गर्मी इतनी है कि जाने का मन नहीं होता.
वे लोग भी गर्मी से परेशान होंगे.
कल शाम आजादी की
पहली लड़ाई का चित्रण देखा ‘भारत एक खोज’ में. वे भाग्यशाली हैं कि आजाद भारत में साँस ले रहे
हैं. आज गुरू पूर्णिमा है, शाम को आर्ट ऑफ़ लिविंग के सेंटर जाना है. अभी-अभी बगिया
से पुष्प तोड़कर उसने गुरूजी के लिए माला बनाई है. रात को एक सखी के पतिदेव की सेवानिवृत्त
होने पर विदाई पार्टी में भी जाना है. आज से चार वर्ष बाद लगभग इसी समय उन्हें भी यहाँ
से विदाई मिलेगी. समय तो पंख लगाकर उड़ता जाता है. एक अन्य सखी से बात हुई, उसका
पुत्र घर आया हुआ है, उसे त्वचा का कोई रोग हो गया है. जून के एक सहकर्मी को
एंजियोग्राफी करानी है, उस के बारे में भी पूछ रही थी, किन्तु उसे इस बारे में कोई
विशेष जानकारी नहीं है. नेट पर पढ़ा, कुछ समझ में तो आया कि रक्त में कोई कैप्सूल
डालकर हृदय की धमनियों व शिराओं की जाँच एक्स रे के द्वारा की जाती है. कैमरे जैसा
कोई यंत्र होता होगा. उसने ईश्वर से उनके स्वास्थ्य की कामना की. वे किसी भी क्षण
उतना ही स्वस्थ होते हैं जितना स्वयं को महसूस करते हैं. आज जून को यात्रा के लिए
सामान भी सहेजना है, कल वह पांच-छह दिनों के लिए यात्रा पर जा रहे हैं. उसे अपने
समय का सदुपयोग करना होगा. आज सुबह आवाज में हल्की सी तेज आयी तो झट ज्ञान हो गया,
फिर सफाई कर्मचारी को पैंट्री में पोछा लगाने पर टोका तो मन की असहनशीलता का
तत्क्षण भान हो गया. कभी किसी क्षण जब लगता है कि कुछ सार्थक नहीं घट रहा है तब
कोई कहता है, स्वयं में टिकना ही सार्थक है. घास उग रही है, झरना बह रहा है, पंछी
गा रहे हैं, यदि ये सब सार्थक हैं तो उनका होना भी सार्थक है. यदि सार्थक से
तात्पर्य है कि वे ऐसा कुछ करें जिससे जगत का कल्याण हो तो मानसिक सेवा भी की जा सकती
है. कोई गीत रचा जा सकता है, ऐसा गीत जो पाठकों को को प्रेरणा से भर दे. नाचा जा
सकता है. बगीचा संवारा जा सकता है और नहीं तो घर का कोई कोना सजाया जा सकता है
ताकि जो भी आये उसे ख़ुशी मिले. भीतर का भाव शुद्ध हो तो हर काम पूजा ही है !
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