वर्षा सुबह से लगातार हो रही है.
ग्यारह बजने में चंद मिनट शेष हैं, भोजन बन गया है, सो उसने डायरी उठा ली है. नैनी
को बुखार हो गया है, पिछले दो दिनों से उसके पति को था सो माली की पत्नी को बुलाकर
काम करवाया. दूधवाले की घंटी गेट से सुनाई दे रही है. पियक्कड़ है यह भी नैनी के
ससुर की तरह. कह गया है, गोबर है उसके पास, गाड़ी भेज कर मंगवा लें. सुबह माली को
बुलाकर समझाया कि पत्नियों पर हाथ न उठाए. कैसा नाटक का सा जीवन जीते हैं ये, पर
समझते नहीं. माली की माँ एन.आर.सी के लिए गाँव गयी थी, कुछ कागज-पत्र लाने, कहने
लगा, अब उसे भी जाना होगा एक दिन, नहीं तो सरकार उसके बच्चों को कोई सुविधा नहीं
देगी.
आज सुबह नींद खुली तो कोई भीतर कह रहा था, भोजन के प्रति आसक्ति को त्यागना
होगा. रात भर सोने के बाद भी देह हल्की नहीं हुई थी. कल शाम जून आये तो ढेर से फल
खाए जो वे लाये थे. वैसे भी आहार के प्रति कुछ ज्यादा ही सजग रहती है. परमात्मा हर
चीज की खबर रखता है. वर्षों पहले की बातें भी याद आने लगीं. शुरू-शरू में ससुराल
में एक बार जब समय से भोजन नहीं मिला तो रोने का मन हो गया था. आर्ट ऑफ़ लिविंग के कोर्स
के दौरान सेवा करने से पूर्व स्वयं खा लेने की प्रवृत्ति भी याद आई. चेतना जब देह
में ही अटकी रहेगी तो साधना आगे कैसे बढ़ेगी. चेतना को देह से मुक्त करना है. धरती का
आकर्षण त्यागना है तभी आकाश में मुक्त्त उड़ान सम्भव है. पड़ोसिन से बात हुई, वे लोग
रिटायर्मेंट के बाद जा रहे हैं. क्लब की तरफ से विदाई देने उसके घर कुछ महिलाएं
गयी थीं. ऐसा लगता है, काम के दबाव में आकर सभी लोग काम को निपटा लेना चाहते हैं,
काम कैसे हुआ इसकी चिंता कम ही रहती है. उसने भी हजारों बार ऐसा ही किया होगा, पर
अब लगता है, चाहे कम काम करें वे पर काम सही ढंग से होना चाहिए. समारोह क्लब में होने
पर पड़ोसिन के लिए लिखी कविता वह सबके सम्मुख पढ़ सकती थी, अब उसके घर जाकर देनी
होगी. कल शाम वह नवजात कन्या को पुनः देखने गये. नन्ही-नन्ही उसकी अंगुलियाँ कितनी
मुद्राएँ बना रही थीं. पैरों को मोड़कर भी जैसे आसन कर रही थी.
आज भी बादल बरस रहे
हैं, सुबह से, प्रातः भ्रमण भी नहीं हुआ. नैनी काम पर आ गयी है, घर पुनः व्यवस्थित
लग रहा है. आज पुरुषार्थ के बारे में सुना. पुरुषार्थ का अर्थ है पुरुष के लिए
अर्थात आत्मा के लिए. उन्हें स्वयं की मुक्ति के लिए ही कर्म करने हैं. परमात्मा
तो सदा है ही, उसकी उपस्थिति को भीतर महसूस करते हुए स्वयं की शक्ति बढ़ानी है.
उसके आनंद व शांति को स्वयं में जगाकर जगत में बांटना है. परमात्मा उन्हें मुक्त
रखता है, कभी कोई मांग नहीं रखता, उन्हें भी स्वयं को छोटी-छोटी बातों से मुक्त
रखकर उसे अपने द्वारा व्यक्त होने देना है. आज शाम को वे रामदेव जी का बताया दलिया
बनाकर रखेंगे, चावल, मूंग दाल, गेहूँ का दलिया, ज्वार की जगह ओट्स, अजवायन और तिल..
इन सभी को भूनकर मिलाकर रखना है. अगले पांच-छह महीनों के लिए पर्याप्त होगा.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन खुशवंत सिंह और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
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