Tuesday, October 18, 2016

जापान में भूकम्प


पिछला पूरा हफ्ता बिलियर्ड मन पर छाया था. शनिवार को कुछ ज्यादा ही. रात को स्वप्न में भी बॉल दिख रही थी. ज्वर इसे ही कहते हैं. असमिया सखी कितनी शांत और सहज नजर आ रही थी, वह खेल में जीत भी गयी. कल जून ने उनके बगीचे के फूलों का वीडियो भी उतारा. कल दीदी से बात हुई, सभी बच्चों के बारे में, माँ के पास बच्चों के सिवाय बात करने का दूसरा क्या विषय हो सकता है. होली में मात्र पांच दिन रह गये है, कविता लिखी है, बस रंगों से सजाना भर है, आज शाम को जून सहायता करेंगे, फिर सभी को भेजेंगे. कल संडे क्लास में बच्चों को काल्पनिक रंगों से होली खिलाई, बच्चे कितने सरल होते हैं, झट मान गये और एक-दूसरे पर रंग छिड़कने लगे. आजकल माँ बाहर बगीचे में जाकर नहीं बैठतीं, पिताजी अकेले बैठे अखबार पढ़ते हैं या कोई पत्रिका.

बड़ी भांजी ने कविता पढ़कर जवाब भेजा है. जापान में जो हुआ उसके बाद प्रकृति पर भरोसा करना ज्यादा मुश्किल है, लेकिन वह तो जड़ है, उसे कोई चला भी नहीं रहा. प्राकृतिक नियमों के आधार पर ही वह काम करती है. शरीर, मन, बुद्धि सभी तो प्रकृति के अंग हैं, लेकिन मन चेतना का आश्रय पाकर मनन् कर सकता है, अर्थात मन पदार्थ से ऊपर उठ सकता है यदि चाहे तो, जब पदार्थ का संयोग चेतन से होता है तो एक तीसरा तत्व पैदा होता है, वही अहंकार है, स्वयं के होने का आभास तभी होता है. यह सत्य है कि उनका होना एक लीला मात्र ही है, क्या हो जायेगा अस्तित्त्व में यदि वे न रहें या रहें ! इसका अर्थ हुआ कि वे सदा से थे या सदा नहीं थे !

कल पिताजी का जवाब आया, उन्होंने तीन कविताओं का जिक्र किया है. दो स्मरण में आ रही हैं, तीसरी याद नहीं. कविताएँ भी उससे लिखी जाने के बाद जैसे कुछ और हो जाती हैं, उनसे कोई संबंध नहीं रहता..क्योंकि वह जो वास्तव में है, अलिप्त है, निर्विकार है, कोई वस्तु उसे छू नहीं सकती. कल शाम को मृणाल ज्योति गयी. कई बातों की जानकारी हुई. कम्पनी में हड़ताल हो गयी है, जून वापस आ गये हैं, आज वह गुझिया बनाने वाली है, अब तो वह भी सहायता करेंगे.


वर्षा के कारण मौसम एक बार फिर ठंडा हो गया है. फागुन का महीना जैसे सावन में बदल गया है. वैसे भी मन बार-बार जापान के लोगों की तरफ जाता है. जिनके लिए इतनी बड़ी विपदा सम्मुख आ खड़ी हुई है. लेकिन जापानवासियों को भूकम्प झेलने की आदत हो गयी है, आपदा प्रबन्धन में वे बहुत आगे हैं. परमाणु रिएक्टरों से जो रिसाव हो रहा है उसे रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाये जा रहे हैं. अभी वे सुरक्षित हैं, लेकिन कब तक रहेंगे, कौन कह सकता है ! अभी कुछ देर पूर्व पिताजी की उम्र की बात चल रही थी. अस्सी के होकर भी वह बिलकुल सीधे चलते हैं, मन में जोश भरा है और जवानों की सी फुर्ती है. कल क्लब में होली उत्सव मनाया जायेगा. 

2 comments:

  1. कालपनिक रंगों से होली.. अद्भुत प्रयोग. मजेदार!!
    "कविताएँ भी उससे लिखी जाने के बाद जैसे कुछ और हो जाती हैं, उनसे कोई संबंध नहीं रहता.."
    मेरे साथ तो अक्सर होता है.. न जाने कितनी (अच्छी) कविताएँ लिखकर उनसे नाता तोड़ लिया. किसी अपने ने याद दिलाया तो याद आयी कविता!!

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  2. स्वागत व आभार !

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