आज वे गुरु पूजा का उत्सव मना रहे
हैं, उसने स्वयं हॉल बुक किया, वहाँ चादरें व दरियाँ आदि छोड़कर आई. शाम को चार बजे
फूल, अगरबत्ती तथा दीपदान आदि लेकर जाना है, गुरूजी की तस्वीर तथा माला भी. जून
नारियल व अनार आदि फल ला रहे हैं. यह सारा सामान दोपहर बच्चों के पढ़ने आने से पहले
ही एकत्र करना है. सारा प्रबंध ठीक होना चाहिए. आज सभी को गुरू पूर्णिमा का संदेश
भी भेजा लेकिन मंझले भाई को छोड़कर किसी का जवाब नहीं आया है. मौसम आज गर्म है, शाम
तक सम्भवतः ठीक हो जाये. रात को अजीब सा स्वप्न देखा, अपने किसी पिछले जन्म की बात
थी. आज भी गुरूजी को सुना. वह कितनी सुंदर परिभाषा देते हैं मन की, मन यानि जो ‘मैं
नहीं हूँ’. वे अन्नमय, मनोमय, प्राणमय, विज्ञानमय तथा आनन्दमय कोष में रहने वाले
जीव नहीं हैं. वास्तव में वे इन सबसे परे सत्यस्वरूप हैं. सद्गुरु उन्हें उनके उसी
रूप का परिचय देते हैं. उन्हें कितना अपनापन, कितनी ख़ुशी और समझ देते हैं. बदले
में वे उन्हें दे ही क्या सकते हैं. यदि कृतज्ञता देते भी हैं तो वह उनके स्वयं के
लिए ही लाभप्रद है, प्रेम देते हैं तो वह भी उन्हें ही भरता है. अपने भीतर के सारे
विकार, सारे दोष, सारी कमियां यदि वे उन्हें दे दें तो वे उन्हें भी भस्म कर देते
हैं. सद्गुरू ऐसे होते हैं !
आज भी सुंदर वचन
सुने थे. प्रेम ही वह सूत्र है जिसे पकड़कर वे ईश्वर तक पहुंच सकते हैं तभी वे
जानते हैं कि वे अस्तित्त्व की उर्मियाँ हैं, इससे उनका कोई विरोध नहीं है. जब वे
प्रेमपूर्ण हो जाते हैं तो ध्यान पूर्ण हो जाते हैं. जब आँख भर कर अपने को देखते
हैं तो पाते हैं कि वे हैं ही नहीं. अपने को मिटाने पर अपने में ही यह पता चलता है
कि वे नहीं हैं और वैसे ही उन्हें पता चलता है कि परमात्मा है. वे हैं यह सोचना ही
आँखों पर पड़ा पर्दा है. ध्यान में वही मिटता है जो है ही नहीं. जो है वह कभी मिटता
ही नहीं. जब तक मन अशांति से ऊबे नहीं तब तक झूठ-मूठ ही खुद को बनाये रखना चाहता
है, अहंकार की यात्रा जब तक तृप्त नहीं होती तब तक ‘मैं’ नहीं मिटता !
आज सुबह सोमवार
का सीडी लगाकर प्राणायाम किया. सुबह वे अस्पताल भी गये, सारे टेस्ट कराए. फ्राईब्राइड्स
हैं तीन, पर छोटे हैं सो डाक्टर के अनुसार इसके कारण कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.
आज वर्षा हो रही है मौसम ठंडा है. कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी सारी समस्या उसके मन
द्वारा ही बनाई गयी हो. वे अपने भाग्य के निर्माता स्वयं हैं. खैर शाम तक पता चल
जायेगा. हाथ-पैरों में जो हल्का-हल्का सा दर्द हो रहा है वह शरीर में हुए किसी
इन्फेक्शन के कारण हो सकता है. जून उसका ध्यान रख रहे हैं. कल दोपहर उसकी नैनी की
जेठानी ने आत्महत्या करने का प्रयास किया. वह शायद अपने पति को डराना चाहती थी पर
हॉस्पिटल जाते-जाते रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गयी, तीन छोटी लडकियाँ हैं उसकी
!
टीवी पर usa
ओहियो में कही जा रही मुरारी बापू की कथा आ रही है. दोपहर को ‘साहित्य अमृत’ तथा
‘सरस्वती सुमन’ को पत्र लिखने हैं. जून का पायजामा सिलना है. आज भाव ध्यान किया,
अद्भुत था जैसे कोई फिल्म चल रही हो, सुंदर दृश्य दिखे, पर जो देखने वाला है वही
दृश्य है, जो दिखता है वह मन का प्रतिबिंब है. मन सारे पूर्वाग्रहों से मुक्त हो,
राग-द्वेष से मुक्त हो तथा प्रेम से भरा हो तो स्वस्थ रहा जा सकता है. मन में कोई
वासना न हो, उसके मन में यह तीव्र वासना है कि शरीर स्वस्थ रहे, पर प्रारब्ध के
अनुसार या प्रज्ञापराध के कारण फल तो मिलने ही वाला है !
No comments:
Post a Comment