Sunday, March 27, 2016

गुरु पूर्णिमा का उत्सव


लगता है इस बार ‘गुरु पूर्णिमा’ का उत्सव वे उस स्थान पर नहीं मना पाएंगे जहाँ वह बच्चों को योग सिखाने जाती है. एओल की टीचर ने अभी तक स्वीकृति के लिए फोन नहीं किया है. खैर, जो भी हो, वह लिख रही थी कि जून के दफ्तर के प्रमुख की पत्नी का फोन आया, वह अगले हफ्ते यूएस जा रही हैं अपने बड़े बेटे के पास जिसकी दूसरी सन्तान होने वाली है. भारतीय माता-पिता सहर्ष अपने बच्चों के बुलाने पर चले जाते हैं, पर अमेरिका में जन्मने वाले ये बच्चे भी क्या इसी तरह अपने माता-पिता पर भरोसा कर पाएंगे. आज धूप तेज निकली है, कल दिन भर वर्षा होती रही. उसके स्वास्थ्य में हल्का सुधार है, जून उसका बहुत ध्यान रख रहे हैं. लगता है एक चक्र पूरा हो गया है, अब से कुछ वर्ष पूर्व वह इसी तरह डायरी लिखती थी, जब वह अनुभव नहीं हुआ था. अपने स्वास्थ्य की बातें तथा इधर-उधर की बातें और उसके बाद से...संत वाणी तथा ज्ञान की गहन बातें ! अब भीतर तृप्ति है सो कुछ पाना शेष नहीं है, अपना पता चल गया है तो अपने दोष भी साफ नजर आते हैं. ईर्ष्या का आभास ध्यान के दौरान भी हुआ, अहंकार व क्रोध तो झलक ही जाते हैं पर उस वक्त भी यह अहसास रहता है कि वह ‘वह’ नहीं जो विकारों से ग्रस्त है, वह साक्षी आत्मा है. पीछे के बंगले के सर्वेंट क्वाटर से एक बच्चा आज पढ़ने आया है, ईश्वर ने उसे ऐसा जन्म दिया है कि उसके पढ़ने का कोई प्रबंध नहीं है. इस जगत में न जाने कितने अभागे ऐसे हैं जो अपने जीवन को अर्थ नहीं दे पाते, अपने ही कर्मों का फल वे भोगते हैं पर ऐसे कर्म जो उन्होंने अज्ञानावस्था में किये होते हैं. माया के अदृश्य फंदों में जकड़े ये मानव ये भी नहीं जानते कि ये कैद हैं, क्यों कैद हैं ये तो बाद की बात है. कल शाम छोटी बहन से बात की, वे लोग परसों वापस यूएई जा रहे हैं. चचेरा भाई वहां ठीक है. नन्हा अपने हॉस्टल पहुंच गया है, उसका खर्च बहुत बढ़ा हुआ है, जून कभी-कभी चिंतित होते हैं, पर उसे कुछ कहते नहीं, वह इतने समर्थ हैं कि सहर्ष सब कर रहे हैं.

कल शाम टीचर का प्रतीक्षित सकारात्मक फोन आया, अब उसे अपनी एक सखी के साथ मिलकर सारी व्यवस्था करनी है. कल शाम तथा रात सोते वक्त तक मन में वही विचार आ रहे थे. गुरूजी इतने सारे देशों में इतने सारे आयोजन कर लेते हैं. उनके पास अनंत शक्ति है, वह कितने सहज रहते हैं. परमात्मा न जाने कब से इतने सारे ब्रह्मांडों को चला रहा है और वह उनसे विलग है, जल में कमल की भांति ! वे एक छोटा सा घर भी ठीक से नहीं चला सकते. घर के दो चार लोगों को ही प्यार नहीं दे सकते. उन्हें भी अपनी ऊर्जा का प्रयोग करना है, गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाने का अर्थ है अपने भीतर की अपार सम्भावनाओं को उजागर करना ! उसे सद्गुरु से कितना कुछ मिला है, अपरिमित प्रसन्नता, अनंत ज्ञान तथा सेवा करने की प्रेरणा, सबसे बड़ी बात अपनी पहचान, आत्मसम्मान तथा आत्मविश्वास, ईश्वर की खोज करने की प्रेरणा तथा ऊर्जा ! गुरु का होना जीवन को खिला जाता है, उन्हें अपने होने का अर्थ मिलता है, अब इस गुरु पूर्णिमा को उन्हें सार्थक बनाना है, सफल करना है. आज से ही तैयारी शुरू कर दी है. मन को भी उच्च भावों में स्थित रखना है, देह से ऊपर, छोटे मन व तुच्छ बुद्धि से भी ऊपर..एक उदार चित्त के साथ इस पवित्र आयोजन को करना है. इस दिन वहां जो भी उपस्थित हो उसे गुरु की कृपा का अनुभव हो ऐसा वातावरण उन्हें बनाना है. सद्गुरु इस ईश्वर की कृपा रूप प्राप्त शरीर में सत्यता का बोध कराते हैं. अंतःकरण में व्याप्त चैतन्य तथा सर्वत्र व्याप्त चैतन्य एक ही है यह ज्ञान देते हैं. जो इन्द्रियों का रस, विचार का रस, भावना का रस, आनन्द का रस इन पंच शरीरों से लेता रहता है तो ऐसे ही शरीर उसे मिलते हैं पर जब गुरू साधक को इनसे पार ले जाता है तो वह शांतात्मा हो जाता है. 


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