दो दिन की गर्मी के बाद आज पुनः वर्षा हो रही है. मौसम पूरे भारत में मेहरबान
है. असम के कई गावों में बढ़ आ गयी है. उसका मन उन दुखी लोगों के पास भी जाता है जो
बाढ़ से प्रभावित हैं. कल शाम वह पब्लिक लाइब्रेरी की मीटिंग में गयी. अगस्त की तीन
तारीख को वे एक निबंध प्रतियोगिता का आयोजन कर रहे हैं. वे बच्चों में पुनः पढ़ने
की आदत डालना चाहते हैं, कहानी की किताबें, कविता की किताबें, उपन्यास और भी
किताबें..
आज उसने सुना. “मीठे बच्चे, जब कोई गुस्सा करे तो उसमें भी दुआएं हैं, वह तो परवश है, पर आप
तो शीतल जल डालने वाले बनो. गुलाब का फूल खाद से खुशबू लेता है. दूसरों से उन्हें
क्या लेना है यह उन पर निर्भर है. कभी भी यह न सोचें की यह ठीक हो जाये तो वे भी
ठीक हो जायें. वे सागर की लहरों को मन मुताबिक नहीं चला सकते तो संसार सागर को भी उसी
नजर से देखना चाहिए. व्यक्ति बड़ा या परिस्थिति ?, स्वयं को बदले बिना विश्व परिवर्तन
सम्भव नहीं है.” ये सभी महावाक्य अनमोल ज्ञान हैं. बुद्धि शीघ्र
नकारात्मक भाव में चली जाती है पर जैसे-जैसे उनके संस्कारों में परिवर्तन आने
लगेगा वे सदा ही सकारात्मक भाव से बने रहेंगे. ज्ञान को जब वे प्रयोग में लाते हैं
तभी वह उनका अपना ज्ञान होता है.
आज बहुत दिनों
बाद दोपहर का यह वक्त वह इस ठंडे कमरे में बिता रही है. बाहर तेज धूप है. आज उनके
दायीं ओर के पड़ोसी चले गये. कम्पनी से कई लोग जा रहे हैं. नये-नये आ रहे हैं, क्लब
में कितने नये चेहरे दीखते हैं जिन्हें वे पहचानते नहीं, एक दिन उन्हें भी यहाँ से
जाना होगा और एक दिन इस दुनिया से भी. रामदेव जी कहते हैं उनके लिए एक दिन एक जीवन
जैसा है, जो काम एक आदमी एक जीवन में करना चाहता है वह एक दिन में करना चाहते हैं.
उसका जीवन यूँ ही व्यर्थ जा रहा है, ऐसा उसे आज लग रहा है. बहुत दिनों से कुछ लिखा
नहीं, कुछ पढ़ा भी नहीं, समय ऐसे ही बीतता रहा, व्यस्तताएं तो बहुत रहीं पर सार्थक
कुछ नहीं. अब कुछ समय मिला है तो सोच-विचार कर अगले लक्ष्य का निर्धारण करना है.
यह नया वर्ष भी आधा बीतने को है. नन्हे को अगले महीने जॉब के लिए इंटरव्यू में
बैठना है. वह आज से पंजाब में अकेले है, अगले ग्यारह-बारह दिनों तक अकेले ही
रहेगा. एकांत उन्हें अपने भीतर जाने को प्रेरित करता है. नया माली छुट्टी पर गया
है, शाम को उसकी जगह दूसरा आयेगा. वे बगीचे में एक छोटा सा तालाब बनवा रहे हैं,
कमल के फूल उगाने लिए. जीनिया के फूलों पर आजकल बहुत तितलियाँ मंडराती हैं, असमिया
सखी की बेटी ने कहा है, उसे पेड़ों पर एक कविता दिखानी है, आज वही लिखेगी. किताबों
पर कविता नहीं मिल पायी. सफदर हाशमी की वह कविता बहुत प्रभावशाली थी, एक दिन
मिलेगी अवश्य. सद्गुरू को टीवी पर नहीं देख पाती पर वह सदा स्मृति में हैं.
बहुत दिनों बाद
ओशो को सुनने का अवसर मिला. नाव मिली, केवट नहीं, कैसे उतरे पार ?, सद्गुरु के
निकट गये बिना प्रेम किये बिना पर नहीं उतर सकते. जमीन तैयार होते ही बगीचा तैयार
नहीं हो पता, गुलाब को तो लगाना पड़ेगा पर घास-पात अपने आप ही उग जायेगा. मन यदि
संसार से दूर हो गया तो काम हो गया ऐसा नहीं है, उस मन में परमात्मा बसा या नहीं,
असली बात तो यह है.
आज उसने फलाहार
लिया है, पिछले दिनों गरिष्ठ भोजन खाया, आवश्यकता से अधिक भी. डायरी रूपी मित्र भी
नियमित साथ नहीं था. पिछले दो-ढाई महीने जैसे एक स्वप्न में बीते से मालूम होते
हैं. आज कई दिनों बाद नन्ही छात्रा पढ़ने आई है. दोपहर को लिखने का कार्य भी शुरू
करना है. साधना में भी कमी आ गयी थी, ध्यान के समय को पूर्ववत् लाना है. कल रात
नन्हे से उसके ब्लॉग के बारे में बात की. आज की पीढ़ी बौद्धिक रूप से बहुत आगे है. आज
का युग ही मस्तिष्क का युग है, भावनाएं जैसे मृत हो जा रही हैं. पुरानी पीढ़ी भौंचक
है, वह समझ नहीं पा रही है कि प्रेम व्यक्त करने में यह पीढ़ी इतनी कंजूस क्यों है.
प्रेम, श्रद्धा, आदर, दया आदि शब्द जैसे उनके शब्दकोश में नहीं हैं.
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