आज वर्षा रुकी है पर मौसम सुहाना है. कल शाम को हुए सत्संग में उसने गाइडेड
मैडिटेशन कराया. जब तक सोच-सोच कर बोल रही थी, अंग्रेजी थोड़ी अटपटी थी पर बाद में
जब सहज होकर बोलने लगी तो अपने आप ही जैसे शब्द निकलते गये. कल हयूस्टन में लिखी
डायरी पढ़ी, अच्छी रचना हो सकती है कितना कुछ लिखा हुआ है जो टाइप करना है. ईश्वर
ने उसे शब्दों से प्रेम सिखाया है पर वह उस कला की उतनी कद्र नहीं कर रही, इच्छा
शक्ति की कमी, आत्मविश्वास की कमी, प्रमाद तथा ऐसे ही किसी दुर्गुण के कारण ही तो,
संकल्प करती है पर पूरे नहीं कर पाती. अज टीवी पर सुना, स्वामी रामदेव जी कह रहे
थे वह कुत्ते की तरह होता है जो अपने संकल्पों का पालन नहीं करता. हंस की तरह
उन्हें बनना है. हंस जो नीर-क्षीर का विवेक कर सकता है. अगले महीने रक्षाबन्धन का
त्यौहार है. जून के हाथ राखियाँ भिजवा सकती है, पत्र लिखने होंगे. कल शाम एक नयी
फिल्म देखी, ‘जाने तू या जाने ना’.
आज एकादशी है.
गुरु माँ गा रही हैं. ‘करां सजदा ते सिर न उठावां कि दिल विच रब दिसदा’ जब बुद्ध को
ज्ञान हुआ तो वृक्षों में असमय फूल आ गये, वे जो अपनी संवेदनशीलता खो चुके हैं,
खिले हुए फूल भी नहीं देख पाते. उस पर राम कृपा हुई है तभी सत्संग में रूचि है.
जून से इस विषय पर थोड़ी बातचीत भी हो गयी. वह इतने व्यस्त हैं अपने रोजमर्रा के
जीवन में कि उससे निकालकर कुछ और सोचने की उनके पास फुर्सत ही नहीं है. आज वह छोटी
बहन के लिए एक बहुत सुंदर कार्ड लाये. कल सभी को राखी के पत्र लिखे. इस समय दोपहर
की कड़ी धूप है, पंखे की हवा पसीना सुखाने में असमर्थ है. सुबह सवा चार पर उठी,
प्राणायाम आदि किया, ध्यान भी आज घटा. देह में पित्त का प्रकोप शायद बढ़ गया है.
पीठ पर घमौरी निकल आयी है, वर्षों बाद ऐसा हुआ है शायद दशकों बाद, बचपन मे घमौरी
से उसका चेहरा लाल हो जाता था. परमात्मा उसे किसी भी अनुभव से अछूता नहीं रखना
चाहते. पहले दांत, फिर गला फिर पीठ और आगे जाने क्या-क्या, पर हर अनुभव कुछ न कुछ
सिखा जाता है. संवेदनशील होना भी और नम्र होना भी. कल पुस्तकालय की मीटिंग हो गयी
अब कला प्रतियोगिता अगले महीने होगी. दो बजने को हैं, उसे कई सारी कविताएँ टाइप
करनी हैं.
वे सदा इस
इंतजार में रहते हैं कि कब वे शाश्वत सुख पा सकते हैं, वे यदि विवेक का उपयोग करें
तथा स्वयं को आत्मा जानें तो इसी क्षण उस परमात्मा को पा सकते हैं, क्यों कि वह
उनका अपना आप है, वह कभी उनसे अलग ही नहीं हुआ, वह है तो वे हैं, वे ही नहीं सभी
उसी से हैं. जड़-चेतन सब उसी की लीला है. अभी कुछ देर पूर्व एक औरत गोदी में छोटे बच्चे
को लेकर आई. कहने लगी कि उस व्यक्ति ने उसे इन घरों से पैसे मांगने के लिए भेजा है.
पति का परसों ब्रेन का आपरेशन होने वाला है, उसने जब कहा उनका नम्बर दो, फोन करके
पता करेंगे तो उलटे पावों लौट गयी. लोभ की प्रवृत्ति उसके भीतर है, शायद इसी कारण
मदद करने को तुरंत मन नहीं हुआ. गुरु माँ कहती हैं जो लोभी होगा उसे रोग होंगे ही.
लेकिन यह लोभ नहीं है बल्कि सजगता है, खैर ! आज मौसम पुनः ठंडा है. कल शाम पांच
बजे से रात दस बजे तक बिजली गायब थी, वे तारों की छाँव में बैठे थे, पहली बार
उन्होंने रात का भोजन बाहर खाया. नैनी की नन्ही बेटी पढ़ने आई थी पर उसका मन पढ़ने
में जरा भी नहीं लगता है, कुछ ही देर बाद उसकी बनी ड्राइंग लेकर घर चली गयी है.
अगले महीने स्कूल खुलने पर ही शायद उसमें पढ़ाई के प्रति रूचि जगेगी.
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