आज बहुत दिनों बाद पूरी साधना की. स्वास्थ्य लौट रहा है. शनिवार है सो बच्चों की
योग कक्षा में जाना था, गाड़ी को पौने नौ बजे बुलाया था पर देर से आई और पल भर के
लिए उसका मन तथा वाणी रोष में आ गये,. सद्गुरू कहते हैं, सहज रहो और कभी-कभार यदि
क्रोध आ जाये तो उस पर पश्चाताप न करो, खैर..वह क्षण भर में ही सहज हो गयी क्योंकि
रोष का भागी बना ड्राइवर जिसका कोई दोष नहीं था. बच्चे काफी आये थे, लगभग
तेतीस-चौंतीस बच्चे, तबला भी ले गयी थी, जिसे एक बच्चा ले गया जो बहुत सुर में
गाता है. वस्तुएं भी अपना मालिक ढूँढ़ लेती हैं. हारमोनियम असमिया सखी के यहाँ है,
उसकी बेटी सीख रही है, दोनों यहाँ पड़े-पड़े व्यर्थ हो रहे थे. इस समय दोपहर के तीन
बजे हैं, माँ कोई दक्षिण भारतीय धार्मिक फिल्म देख रही हैं. कल जून वापस आ रहे
हैं, नन्हा वापस अपने हॉस्टल जा रहा है. रात सद्वचन सुनते-सुनते सोयी तो नींद ठीक
सुबह साढ़े चार बजे खुली, कोई स्वप्न भी नहीं, गहरी नींद. शुभ संकल्प मन को शांति
से भर देते हैं, मन व्यर्थ ही सोचता रहे तो नींद में स्वप्न चलते हैं. दोपहर को
पलटू महाराज के पदों की व्याख्या सुनी, एक में वह कहते हैं कि वसंत आ गया है और वह
अभी तक सो रही है, कैसे बावरी हुई है, उसे इस बात की भी चिंता नहीं है कि कन्त अभी
तक घर नहीं आए हैं. जीवन रूपी वसंत उन्हें परमात्मा ने सौंपा है पर वह स्वयं अभी
दूर है, परमात्मा उन्हें इसीलिए तो दुनिया में भेजता है कि एक दिन वे उसे अपने दिल
में बुलाएँ और उससे प्रेम का आदान-प्रदान करें !
आज तो शरीर में
एक और उपद्रव हो गया है, सिर के पिछले भाग में पीड़ा हो रही है, ‘मर्ज बढ़ता गया
ज्यों-ज्यों दवा की’. शायद किसी कर्म का उदय हुआ है. आज रामदेव जी साप्ताहिक
योगचर्या के पहले भाग ‘सोमवार’ के अनुसार आसन किये. मन शांत है क्योंकि ज्ञान में
स्थिर है ! पिछले दिनों क्रोध भी जगा, ईर्ष्या भी, जब तक अहंकार की ग्रन्थि नहीं
खुलती, विकार बने ही रहेंगे. एक मूल कारण है अज्ञान, आत्मा का ज्ञान न होना ही वह
अज्ञान है. कई बार लगा है कि बस सब जान लिया लेकिन मन व बुद्धि के स्तर पर जानना
और है, उसे जीवन मे उतारना बिलकुल अलग है. अब भी कई बार दिन भर में मन में गलत भाव
बनते हैं, भाव बिगड़ता है. जब आस-पास कोई न हो तब साधना में दृढ़ रहने में क्या
दिक्कत है. जब लोगों से वास्ता पड़े उनके साथ संबंध बनें तभी परीक्षा होती है.
पिछले कुछ दिनों से नैनी को सुबह हरिओम कहना भी छोड़ दिया है क्योंकि कोई लाभ नहीं
लगा, ईश्वर का नाम लेने में भी मन लाभ सोचता है कैसा बनिया मन पाया है, खैर उसके
पीछे दूसरा कारण भी था, उसे ही बंधन लगता था सो मुक्त कर दिया. सासु माँ के साथ
संबंध गहरा नहीं है, वह ज्यादा निकटता नहीं चाहती, यह भी उतना बुरा नहीं है पर
क्रोध का जगना दिखाता है कि उसके भीतर अहंकार की जड़ें कितनी गहरी हैं !
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " एक 'डरावनी' कहानी - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
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