आज नन्हे का जन्मदिन है, सभी के फोन आये. दो दशक पूर्व आज ही के दिन वह उसकी कोख
से जन्मा था, उसके जन्म से पूर्व जून और वह कितनी कल्पनाएँ किया करते थे तब वे आज
से बिलकुल अलग थे, वक्त के साथ सब कुछ परिवर्तित होता ही है. वह छोटा था उस समय की
कितनी बातें याद हैं पर उसे वर्तमान में जीना है, उसका आज देखना है. फोन किया तो
उठ गया, आवाज उनींदी सी थी, आज की पीढ़ी को पता नहीं क्या हो गया है. तमस वातावरण
में बढ़ रहा है तो लोगों की सोच भी बदल गयी है. मूल्य बदल रहे हैं. वह अपनी बात ही
करे तो बेहतर होगा, अभी भी गले व नासिका में विकार है. कल रात कई दिनों बाद आम
खाया, पर उससे बढ़ गया लगता है या जो भीतर था बाहर निकल रहा है. कल दोपहर को एक
स्वप्न देखा, भूचाल आ रहा है, सब कुछ नष्ट होने वाला है, भीतर कौन है जो स्वप्न
रचता है उन्हें जगाने के लिए वह कैसी-कैसी कल्पनाएँ करता है, उनका मन या बुद्धि या
इनसे परे आत्मा ? रात भी सद्वचन सुनकर सोयी थी तो नींद में ध्यान का अनुभव हुआ.
जून इतवार को आएंगे तब तक वह देर तक जग के पढ़ सकती है या कुछ लिख सकती है, सुन या
देख सकती है अर्थात पूरी आजादी ! एक वक्त था जब वह उनके जाने पर आँसू बहाती थी.
जीवन में सद्गुरू का पदार्पण जमीन-आसमान का फर्क ला देता है. आज शाम को सत्संग है.
सुबह 9x पर सद्गुरू को सुना. ‘पतंजलि योग सूत्र’ पर बोलते हुए उन्होंने कहा, भीतर
जोश व उत्साह की कमी ही मानसिक तनाव का कारण है. वे जड़ जैसे हो गये हैं, संबंधों
में भी एक ढीलापन आ गया है. एक साधक को अपने भीतर की भावनाओं में सच्चाई व तीव्रता
को महसूस करना आना चाहिए तभी वह उसके पार जा सकेगा !
आज भी गला पूरी
तरह ठीक नहीं हुआ है, जून ने कहा, फोन पर उसकी आवाज भारी लग रही थी. प्रज्ञापराध
ही उसकी इस हालत का कारण है. सुबह डायरी खोली थी कि ससुराल से पिताजी का फोन आ गया,
वह उदास थे, वैसे तो इस दुनिया में कौन ऐसा है जो पूर्ण प्रसन्न हो, पर जब कोई फोन
पर बात करते-करते ही रुआंसा हो जाये या बात न कर पाए तो बात कुछ गंभीर है, माँ ने
पूछा तो उन्हें भी थोडा-बहुत बताया, तब से वह भी कुछ गम्भीर हो गयी हैं. आज
धारावाहिक की जगह भगवान की चर्चा सुनती रहीं, जो दुःख ईश्वर की ओर ले जाये वह
सार्थक है. इस समय मौसम बहुत अच्छा है, माली बगीचे में काम कर रहा है, माँ टहलने
गयी हैं. उसे आत्मा ने दो बार सचेत किया, दोपहर को कुछ सुनते-सुनते सो गयी, ठीक एक
बजे किसी ने जगाया, देखा तो बाहर उसका विद्यार्थी आ गया था. कल गैस पर खीर रखी थी,
जलने से ठीक एक क्षण पहले किसी ने याद दिलाया, भीतर कोई है जो हर पल नजर रखे है.
वह सुह्रद है, वही सत्मार्ग पर जाने की प्रेरणा देता है. वह सत् है चित् है और
आनन्द स्वरूप है. उसके होते किसी बात का भय नहीं है. आज भी टीवी पर सत्संग सुना,
एक से एक सुंदर विचार सुनने को मिलते हैं, हृदय श्रद्धा से झुक जाता है, संत उस
दिव्य परमात्मा की साक्षी देते हैं. संतों का जीवन एक प्रमाण है पर लोग फिर भी
नहीं देख पाते. ईश्वर की कृपा होती है तभी संत की वास्तविकता प्रकट होती है.
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