भक्तियोग साधन भी है और साध्य भी. अध्यात्म के मार्ग पर लोग शांति व
आनन्द की खोज में आते हैं, वही तो परमात्मा है, तो उसकी भक्ति करते-करते भीतर भी
शांति व आनन्द प्रकट होने लगते हैं. भक्ति के कुछ नियम हैं जिन्हें कोई अपनाये तो
सहज ही परमात्मा का अनुभव होता है. भक्त कभी विचलित नहीं होता, वह ईश्वर के
अतिरिक्त कुछ भी नहीं चाहता. वह व्यर्थ के विवादों में नहीं उलझता, उसके पास इसके
लिए समय ही नहीं है, वह तो चौबीस घंटों से भी ज्यादा उस भगवान को भजना चाहता है,
वह अनदेखे के प्रति समर्पित है, उसको हर रूप में देखता है. उसे लोकलाज की परवाह
नहीं. वह उच्चतम को चाहता है. आज भक्ति पर सुने संदेश का इतना अंश उसे याद है.
दिगबोई से एक परिचित प्राध्यापक का फोन आया है. अगले हफ्ते तिनसुकिया में होने
वाले कवि सम्मेलन की बात कही, यदि वे जा सके तो अच्छा होगा. उसे कविताओं का चुनाव
कर लेना होगा, समसामयिक विषयों पर लिखी कविता ही ज्यादा ठीक होगी. तीन कविताएँ
आत्मपरिचय के साथ एक संग्रह के लिए भी भेजनी हैं. हिंसा, बढ़ता हुआ आतंकवाद, देश का
विकास, विश्व की स्थिति, नया साल, युवाओं का आधुनिक रहन-सहन, मोबाइल फोन, कितने ही
विषय हैं. जीवन में सब है आज पर संतोष नहीं है, तनाव, आत्महत्या समाज में बढ़ते जा
रहे हैं.
नील-हरे रंग की इस डायरी में विवाह
की सालगिरह पर दोपहर के दो बजे कुछ लिखने के लिए कलम उठाई है. सुबह सभी के फोन आए.
शाम को चाय-पार्टी का आयोजन करना है. नन्हा अभी रास्ते में है देर शाम तक हॉस्टल
पहुँचेगा. थोड़ी दूर से पानी की टंकी पर काम कर रहे मजदूरों के औजारों की ठक-ठक
आवाजें आ रही हैं. पिछले कई दिन से लगभग सारा दिन मजदूर ऊपर चढ़े काम करते हैं.
परसों छोटी बहन का फोन आया. नया वर्ष आरम्भ हुए सात दिन हो भी गये. समय कितनी तेजी
से गुजर जाता है, वे पीछे रह जाते हैं, यूँही समय गंवाते हैं. आर्ट ऑफ़ लिविंग के
सेंटर पर जाना है जो बन रहा है, एओल की टीचर से मिलने भी जाना है, और मृणाल ज्योति
भी जाना है. कई दिनों से हिंदी लाइब्रेरी भी नहीं गयी है वह. जब तक श्वास है तभी
तक इस सुंदर जगत को वे देख सकते हैं. !
जिस प्रेम में कभी परदोष देखने की
भावना नहीं होती, कोई अपेक्षा नहीं होती, जो सदा एक सा रहता है, वह शुद्ध प्रेम
है, वही भक्ति है. जिस प्रेम में अपेक्षा हो वह सिवाय दुःख के क्या दे सकता है ?
दुःख का एक कतरा भी यदि भीतर हो, मन का एक भी परमाणु यदि विचलित हो तो मानना होगा
कि मूर्छा टूटी नहीं है, मोह बना हुआ है. इस जगत में उसे जो भी परिस्थिति मिली है,
उसके ही कर्मों का फल है. राग-द्वेष के बिना यदि उसे स्वीकारे तो कर्म कटेंगे वरना
नये कर्म बंधने लगेंगे. कल शाम का आयोजन ठीक रहा. इस समय वह हीटर के पास बैठी है, ठंड
कुछ ज्यादा है आज, आँखें मुंद रही हैं. कुछ देर पूर्व ध्यान करने बैठी तो लगातार
होते शोर के कारण नहीं बैठ सकी. भीतर उस चेतना का ध्यान सदा ही बना रहता है, अब
नियमित ध्यान नहीं कर पा रही है.
ध्यान पुनः नियमित कर दिया है. शाम
को जून भी ध्यान करते हैं. असर भी होने लगा है. अनोखे अनुभव होते हैं. भीतर
आश्चर्यों का खजाना है, हजारों रहस्य छुपे हैं आत्मा में. जो कुछ बाहर है वह सब
भीतर भी है ऐसा पढ़ा था अब अनुभव भी होने लगा है. वह यदि परमात्मा को भूल जाये तो
वह याद दिला देता है. एक बार कोई उससे प्रेम करे तो वह कभी साथ नहीं छोड़ता. वह
असीम धैर्यवान है, वह सदा उन पर नजर रखे है, साथ है, उन्हें बस नजर भर देखना है.
उसे देखना भी कितना निजी है बस मन ही मन उसे चाहना है, कोई ऊपर से जान भी न पाए और
उससे मिला जा सकता है. उसके लिए शास्त्रों को पढ़ने की जरूरत नहीं, तप करने की
जरूरत नहीं, बस भीतर प्रेम जगाने की जरूरत है. सच्चा प्रेम, सहज प्रेम, सत्य के
लिए, भलाई के लिए, सृष्टि के लिए, अपने लिए और उसके लिए..
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अपेक्षाओं का कोई अन्त नहीं - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteस्वागत व बहुत बहुत आभार !
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