Thursday, October 30, 2014

मॉडेम जरूरी है



हर क्षण यदि ईश्वर का स्मरण बना रहे तो मन अपने आप शांत रहेगा, जब उसके प्रेम में हृदय डूब जाये तो संसार मन में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि जब ईश्वरीय प्रेम की वीणा की झंकार गूँजती हैतो सारा ध्यान वहीं लग जाता है. आज भी उन्हें उठने में देर हुई, जून ने ही उसे उठाया. कल शाम जून और नन्हा एक मित्र के साथ कम्प्यूटर में नई हार्ड डिस्क लगाने में व्यस्त थे, वह अकेले टहलने गयी, शाम का धुंधलका छा चुका था और हवा शीतल थी. बातूनी सखी का फोन आया वह अपने पुत्र की हिंदी को लेकर परेशान है, वह खुद इतनी अच्छी हिंदी बोलती है फिर भी अहिन्दीभाषियों को कुछ दिक्कत तो आती ही है. कल रात मूसलाधार वर्षा हुई, इस समय धूप निकल आई है. कल उन्हें इंटरनेट की सर्विस भी मिल गयी पर मॉडेम ठीक न होने के कारण सर्फिंग नहीं कर सके. नन्हे का आज केमिस्ट्री का टेस्ट है. आज लिखने की शुरुआत ईश्वर स्मरण से की थी पर उसे भूलकर कलम संसार में विचरण करने लगी है. नाव पानी में रहे तो ठीक है पर पानी नाव में आ जाये तो विनाश ही होगा न, मन यह जो खिंचा-खिंचा सा उड़ा-उड़ा सा रहता है, इसी कारण !

अहंकार की हवा मन रूपी गेंद को ठोकर खिलवाती रहती है. जो हम इस दुनिया को बांटते हैं, वही हमें मिलता है. सारा ब्रह्मांड एक प्रतिध्वनि है, प्रतिबिम्ब है. हम जैसा देखना चाहते हैं, दिखाना चाहते हैं वही हमें दिखायी पड़ता है. नम्रता धारण करें तो अहंकार अपने आप छूटता जायेगा, विनीत होकर इस हृदय रूपी घर को ईश्वर को अर्पित करें तो कृपा अपने आप मिलेगी. आज बाबाजी कातर स्वर में ईश्वर को पुकार रहे थे, ऐसी भावपूर्ण प्रार्थना को कौन अनसुना कर सकता है. ईश्वर उनके हृदय में आ बसे हैं, वह श्रोताओं को सिखाने के लिए ही ऐसी प्रार्थना कर रहे हैं ! उसने भी प्रार्थना की, इस जग से विदाई हो उसके पूर्व ही वे ईश्वर का अनुभव कर सकें, बुढ़ापा आये अथवा चिता की अग्नि उन्हें जलाए इसके पूर्व ईश्वर का ज्ञान उनके अज्ञान को जलाकर खाक कर दे. मोहपाश के जाल टूट जाएँ, बंधन खुल जाएँ औए वे पूर्ण मुक्त हो जाएँ. आजाद पक्षी की तरह वे निस्सीम आकश में उड़ान भरना सीख लें, यह जग उनके लिए बंधन का कारण नहीं बल्कि विकास का, उन्नति का साधन बन जाये ! आज वर्षा अभी तक आ रही है, खिड़की से शीतल हवा आकर पंखे की हवा को भी ठंडा कर रही है. नन्हे को आज पढ़ने नहीं जाना है. सोमवार को होने वाले इम्तहान की तैयारी करनी है. आज सुबह वे पहले की तरह पांच बजे उठे. ससुराल से फोन आया, मायके से कोई खबर नहीं आई है. न ही किताब के बारे में कोई खबर मिली है. अगले हफ्ते वे फोन करेंगे. कल शाम फिर जून मॉडेम लगाने में व्यस्त थे, शायद खराब है. वह टहलने गयी और पड़ोसिन से मिल आई, वह स्वस्थ नहीं है, घर जाकर पूर्ण स्वास्थय परीक्षण कराएगी. आजकल मन दुनियादारी में ही उलझा रहता हो सो उसकी कलम यही सब लिखी जा रही हैं, लेकिन ईश्वर हर क्षण उसके निकट है, इन सारी उलझनों के बीच वही तो एक सुलझन है !


कल दांत के उस एक्सरे की रिपोर्ट मिल गयी जो परसों कराया था, डाक्टर ने कहा है RCT करना पड़ेगा, पिछले साल भी जून महीने में घर से वापस आने पर करवाया था. कल रात डायरी में पढ़ा, लगभग १०-१२ दिन लगे थे फिर कुछ हफ्ते बाद परमानेंट फिलिंग हुई थी, उसी सब प्रक्रिया से अब फिर गुजरना होगा, लेकिन इस वर्ष वह ज्यादा जानती है सो तकलीफ कम होगी. आज जागरण में अद्भुत वचन सुनने को मिले, सुबह उठकर प्रभु को नमस्कार करें और दिन भर के लिए उससे आशीष की कामना भी..अपने विश्वास को त्याग पर केन्द्रित करें न कि संग्रह पर. ईश्वर से मिलने जाना हो तो गुनगुनाते हुए उमंग सहित, आह्लाद व उल्लास से भरा मन व चेहरा लिए जाना चाहिए. पूजा करना व्यर्थ होगा जब पहले से ही पूजा की समाप्ति का क्षण नियत कर लेते हैं. सांसारिक जेल से मुक्त होकर जब उस मुक्त से मिलने का क्षण आये तो क्यों न उस मुक्तावस्था को जीभर के महसूस करें. चौबीस घंटों में से कुछ समय तो उल्लसित, उमंग युक्त हृदय लिए उस परमेश्वर की निकटता में गुजारें ! मन तो प्रलोभनों की ओर हर पल दौड़ता रहता है, न चिन्तन करने योग्य विषयोंका चिन्तन करता है, ऐसे मन को समझा-बुझा कर अपने पास बैठाना आ जाये तो आराधना सच्ची होगी.   

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