Saturday, September 20, 2014

अदरक वाला पुलाव


जो उसका है, उसकी मान्यता अथवा उसका विचार है, वही सत्य नहीं है, बल्कि जो सत्य है वह सम्पूर्णता के साथ उसे स्वीकार्य है. सत्य अंततः प्रकट होकर ही रहता है, देश इस वक्त ऐसे ही दौर से गुजर रहा है, जहाँ सच- झूठ में भेद स्पष्ट नहीं दीख रहा. कानपूर के लोगों को कट्टरपंथियों की हिंसा का शिकार होना पड़ा. जो शहर ऐसे लोगों को प्रश्रय देता है उसे उसका फल कभी न कभी भुगतना ही पड़ता है.
कल उन्होंने एक सौ दस कविताओं की सूची बना ली और सभी को जाँच भी लिया है. आज प्रकाशक से फोन पर बात करेंगे, सम्भव हुआ तो इसी हफ्ते अथवा सोमवार को पाण्डुलिपि भेज देंगे. कल शाम कम्प्यूटर के सामने ही बीती, सांध्य भ्रमण का वक्त भी नहीं निकाल पाए. नन्हे के स्कूल में पढ़ाई शुरू हो गयी है. इस वर्ष से हाईस्कूल का परीक्षा परिणाम प्रतिशत में नहीं बल्कि ग्रेड्स पर आधारित होगा, इससे बच्चों में पढ़ाई के प्रति जो डर बैठा हुआ है, विशेषतया हाई स्कूल के लिए, वह कम होगा. पिछले दिनों उनकी अनुपस्थिति में माली ने बगीचे की उपेक्षा की और आने के बाद उसने भी ठीक से देखभाल नहीं की, कल शाम ऐसे बहुत से कार्यों पर नजर गयी जो शीघ्र ध्यान चाहते हैं. गन्धराज का वृक्ष एक तरफ से सूख गया है, कुछ वर्ष पूर्व यह फूलों से लद जाता था, एक बार ज्यादा कटवा दिया तो छोटे भाई के शब्दों में वह नाराज हो गया, वृक्ष बहुत संवेदनशील होते हैं. कल उसने हफ्तों बाद रियाज किया, मन-प्राण संगीत के रस में डूब गये.

 मन के बन्धनों को उन्हें स्वयं ही खोलना है, अज्ञान ने उन्हें बेसुध कर रखा है. ज्ञान जो शाश्वत है वही साधन बनेगा और ज्ञान को ही उन्हें साध्य भी बनाना है. यह सही है सदा उसके दुःख, पीड़ा या परेशानी का कारण अज्ञान ही होता है. सच का आश्रय लेकर यदि जीवन के यात्री बनें तो यात्रा निर्विघ्न सम्पन्न हो सकती है. लेकिव वे क्षणिक सुख की ललक अथवा लोभ वश झूठ का साथ दे देते हैं. सुविधाओं का आकर्षण ही तो रिश्वत लेने पर विवश करता है. देश या राष्ट्र के सर्वोच्च पदों पर आसीन व्यक्ति भी जब अनैतिक कार्य करते हैं तो साधारण जन में दिशाहीनता व अराजकता की भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है. कानपूर के दंगे इसी का परिणाम हैं. पिछले कई घोटालों की तरह यह बात भी धीरे-धीरे ठंडी पड़ जाएगी और लोग फिर विश्वास करने लगेंगे उसी व्यवस्था पर, जो आज पूरी तरह सड़ चुकी है. पर इसी विनाश में से पुनः निर्माण होगा, करोड़ों लोगों की आस्था व्यर्थ नहीं जाएगी. कल शाम उन्होंने उसकी पुस्तक का मुखपृष्ठ भी बना लिया, नीला रंग जो उसे प्रिय है और शांति व पवित्रता का प्रतीक भी है, मुख्य है. कल छोटी बहन का फोन आया, एक वृद्धा के बारे में बताया जो कई व्याधियों से ग्रस्त हैं पर अपने स्वाद पर संयम नहीं रख पातीं. रसमलाई, बेसन के लड्डू और तला हुआ चिवड़ा-मूंगफली बहुत अधिक मात्रा में बना कर रख रही हैं. उनका मन भोजन में बुरी तरह से अटका हुआ है, खाना बनाना उनका प्रिय कार्य है. कल शाम एक मित्र परिवार मिलने आया, दोनों बच्चे बेहद दुबले थे, हाथ-पैर जैसे बांस की खरपच्चियों के बनाये हों, जिन्हें छूने से भी डर लगता था. बातों में उसने महसूस किया बच्चों की माँ भी अपने स्वर्गीय माँ-पिता को बहुत याद करती है.

आज बाबाजी ने कहा, “भक्ति स्वयंफल रूपा है. जब मन पूरी तरह समर्पित होता है, ध्यान अपने आप होने लगता है. परमात्मा की प्रतीक्षा नहीं करनी है बल्कि समीक्षा करनी है. बुद्धि और हृदय जब एक हो जाते हैं तब कृपा का अनुभव होता है.” कल शाम पुस्तक का प्रारूप लगभग तैयार हो गया, अब आत्मपरिचय देना शेष है जो आज दोपहर वह टाइप करने वाली है. टीवी पर तहलका मामले के खिलाफ़ और पक्ष में इतने बयान  आते हैं कि सच-झूठ का फैसला करना कठिन होता जा रहा है. लेकिन उसकी निजी राय यह है कि यह प्रकरण सरकार गिराने के लिए किसी बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है. कल दोपहर पिता को पत्र लिखना आरम्भ किया, पर पूरा नहीं कर पाई, अधूरा ही फाड़ देना पड़ा, माँ के बिना उन्हें पत्र लिखना एक कष्टप्रद कार्य है. माँ की तस्वीर जबकि हमेशा सामने रहती है, वह मुस्काते हुए आश्वासन देती हुई सी लगती हैं. फिर भी दिल है कि मानता नहीं.


कल दोपहर जून लंच पर नहीं आये, उसने अदरक डाल कर पुलाव बनाया, घर से आने के बाद भोजन पर ज्यादा ध्यान जाता है. वहाँ सभी हष्ट-पुष्ट नजर आते थे, उनका परिवार ही सबसे दुबला-पतला लगता था. वे अपना वजन कम रखने के चक्कर में नन्हे को भी कम तेल-घी का भोजन दे रहे हैं, हो सकता है यही कारण हो कि वह अभी तक पूरी लम्बाई नहीं ले पाया है. उसके लिए ही केक बनाया था, अगले हफ्ते चॉकलेट केक की फरमाइश की है उसने. कल जून उसके लिए हिंदी का अख़बार लाये जिसमें वह अपनी कविताएँ भेजना चाहती है. 

2 comments:

  1. सत्य तो बस है.. उसका होना ही उसका अस्तित्व है. झूठ का कोई अस्तित्व नहीं. जहाँ सच नहीं है, वहीं झूठ है... यानि सत्य की अनुपस्थिति. जैसे अन्धेरा यानि उजाले की अनुपस्थिति.

    ग्रेड सिस्टम भी टीका लगाकर रोग भगाने जैसा ही है. बच्चे को पता होता है कि इस ग्रेड का मतलब कितने प्रतिशत होते हैं. या फिर पहले बच्चों में प्रतिशत को लेकर तनाव रहता था, अब ग्रेड को लेकर रहेगा.

    कविताओं के शतक की बधाई और प्रकाशित होने वाली पुस्तक की शुभकामनाएँ. कविताओं की समीक्षा करना (हालाँक़ि मैं उसे अपनी प्रतिक्रिया देना ही कहता हूँ) मुझे अच्छा लगता है.

    राजनैतिकों में भ्रष्टाचार का पाया जाना उनके अहंकार की समिधा के समान है. जनता के सेवक नहीं, शासक होने का बोध जबतक समाप्त न होगा, तब तक उच्च पदों से भ्रष्टाचार नहीं मिट ने वाला. तहलका की सचाई भी ऐसी ही एक घिनौनी सचाई थी. वैसे भी मीडिया सच-झूठ के बीच फ़ैसला करने कहाँ देती है, उलझाना ही उनका मुख्य उद्देश्य होता है और वो उसमें सफल भी होते हैं.

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  2. सही कहा है आपने..इतनी बारीकी से प्रतिक्रिया जाहिर करने के लिए आभार...

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