Monday, September 15, 2014

दुःख का अस्तित्त्व


कल शाम दीदी व छोटी बहन का फोन आया, वे दोनों टहलने निकलीं थीं तो पीसीओ से फोन कर लिया, जबकि घर पर दो फोन हैं. कल तेहरवीं है, जिस पर उसे जाना चाहिए था पर परिस्थिति वश नहीं जा पा रही है. उसका अपने परिवार के प्रति कर्त्तव्य आड़े आ गया. घटनाएँ कब क्या मोड़ लेंगी कोई कुछ नहीं कह सकता. अब माँ को याद करके उसे दुःख नहीं होता बल्कि शांति का अनुभव होता है. वह अब मुक्त हैं तथा हर समय उसके पास हैं. उनके बचपन से लेकर अपने बचपन तक फिर अपने बचपन से उनकी वृद्धावस्था तक के सारे चित्र सजीव हो उठते हैं. जून आज भी हमेशा की तरह पहले उठे वह एक स्वप्न देख रही थी जिसमें वह अपना मान तथा धन दोनों बचाने में सफल हो जाती है. एक लुटेरा उसके पीछे था पर वह स्वयं अपमानित होता है.

उसने सुना, अहंकार का त्याग और समर्पण की भावना का विकास ही शांति प्रदान करता है. अहंकार और स्वाभिमान में अंतर है, स्वाभिमान की आहुति देने के बाद तो पास में कुछ भी नहीं रह जाता. एक सखी ने पूछा वे घर जा रहे हैं या नहीं, यह उनके लिए एक अबूझ प्रश्न बन गया है जिसका उत्तर समय ही बतायेगा. सुबह-सुबह एक अन्य का फोन आया. कल सुबह दो परिचित महिलाएं मिलने आई थीं. दुःख इन्सान को इन्सान से जोड़ता है. इस समय सुबह के नौ बजे हैं, आज धूप तेज है, पिछले दिनों दोपहर तक कोहरा रहता था फिर मद्धिम सी धूप के दर्शन होते थे. अभी उसे भोजन तैयार करना है फिर रियाज और दोपहर से कविताएँ टाइप करने का काम. कल का दिन तो गंवा दिया पर अब और नहीं, कहीं उसके इस आलस्य के कारण उसका सपना अधूरा न रह जाये और जिन्दगी की शाम आ जाये. मृत्यु हर मोड़ पर बाट जोहती खड़ी रहती है. जीवन इतना अल्प, इतना कीमती है कि हर पल का सदुपयोग होना ही चाहिए.

आज सुबह एक स्वप्न देखा जिसमें वह अकेले विदेश यात्रा पर जा रही है. माँ को भी देखा. जून ने उठकर विश किया और दफ्तर जाने से पूर्व उसने उन्हें फिर उस फोन की याद दिलाकर नाराज कर दिया. ससुराल से फोन आया था, पिता को भी यही उम्मीद थी कि जून अवश्य तेहरवीं में शामिल होने गये होंगे. कल छोटी बहन का फोन आया उसने किन्हीं मामीजी से उसकी बात करवाई, वह पहचान नहीं पायी. सभी रिश्तेदार वहाँ आये हुए हैं. छोटी बुआ व ममेरी बहन भी आए हैं, उसे एक बार फिर न जा पाने का दुःख हुआ, शायद जीवन भर यह अपराध बोध उसे सालता रहेगा. बाबाजी कहते हैं, सुख-दुःख मिथ्या हैं सिर्फ मानने से होता है न मानें तो इसका कोई अस्तित्व  ही नहीं है. यदि वह जाती तो यहाँ जून और नन्हा परेशान रहते किसी को सुखी करके किसी को दुखी होना ही पड़ता, फिर जो नितांत उसके अपने हैं उन्हें दुखी करने का उसे क्या हक है ? कल स्वप्न में बहुत दिनों बाद कॉलेज भी देखा, गणित के अध्यापक को भी. जैसे सुबह नींद खुलने पर स्वप्न टूट जाता है वैसे ही ये स्मृतियाँ भी कुछ वर्षों बाद भुला दी जाएँगी. जीवन फिर भी चलता रहेगा. नन्हा आज फिर देर से उठने के कारण हाथ-मुंह धोकर ही स्कूल गया है, उनके समझाने का उस पर कोई असर नहीं होता, कभी-कभी जिन्दगी इतनी मुश्किल हो जाती है कि.. कल शाम फिर दो मित्र परिवार मिलने आये थे, वे भी उनके घर जाने के बारे में पूछ रहे थे. भविष्य के गर्भ में ही छिपा है इसका उत्तर, कौन जाने तब तक असम में भी भूचाल आ जाये, उन्हें इसका जवाब अपने आप ही मिल जायेगा.
कल रात पहले छोटी बहन का फोन आया, फिर मंझले व बड़े भाइयों का, उन्हें कल उसका वह पत्र मिला जिसमें “हमारी माँ - एक सम्पूर्ण व्यक्त्तित्व” में माँ के बचपन से लेकर जैसा उन्हें देखा, समझा लिखा था. इतने दिनों से संबंधों में जो बर्फ जम गयी थी पिघली. सुबह उठते ही पिता को फोन किया, वह चाय बना रहे थे. माँ के बिना रहने की आदत उन्हें धीरे-धीरे पड़ती जा रही है. आज फिर बदली छाई है, नन्हे की आज संगीत की लिखित परीक्षा है. सोमवार से मुख्य विषयों की परीक्षाएं शुरू हो रही हैं.   


  

1 comment:

  1. रिश्तों की डोर ऐसी ही होती है... हम चाहे कितने भी दूर क्यों न हों, बँधे रहते हैं उस डोर से. सामाजिक और पारिवारिक दायित्व कई बार हमारी परीक्षा लेते हैं. मेरी माँ को जब पिछले दिनों फ़ालिज का अटैक आया तो चाहकर भी मैं लम्बे समय तक उनके साथ नहीं रह सकता था. नौकरी की भी अपनी मजबूरियाँ होती हैं!

    वो सपने बहुत देखती है. अजीब-अजीब तरह के सपने. कभी सोचती होगी वो कि उनका क्या मतलब है. उसकी कविताओं की तरह उसके सपने भी मेरे लिये रहस्य हैं.

    कविताओं की किताब बन गई है. कभी मौक़ा मिला तो उन्हें भी पढूँगा.

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