जून उसके लिये हिंदी अनुभाग से दस किताबें लाया है, ज्यादातर उपन्यास हैं, कुछ कहानियों की किताबें हैं. इन्हें पढ़ लेने पर वह और भी लाएगा. नूना बहुत खुश है इन्हें पाकर. कल शरत चन्द्र की एक कहानी पढ़ी, शाम को विमल मित्र की डेढ़ कहानी, दूसरी पूरी नहीं पढ़ पायी, रात को जून ने कहा, उसे नींद आ रही है, बत्ती बुझा दो. उसे पता नहीं क्यों पढ़ने के नाम पर जोरों से नींद आने लगती है, पर बत्ती बंद होने के बाद आधे से एक घंटा वह जगता रहा था. सुबह उठकर जून के जाने के बाद उसने वह कहानी पढ़नी शुरू की, काम वाली महरी तब तक आयी नहीं थी, पढ़ते-पढ़ते कब उसकी भी आँख लग गयी उसे भी नहीं पता, एक बार उठने का ख्याल आया तो मन ने कहा अभी काम वाली आकर घंटी बजाएगी, पर उसे आना ही नहीं था, फिर उठ कर भोजन बनाया जून के आने में आधा घंटा शेष था. फिर स्नान किया और रोज का गीता पाठ किया, पढ़ा, “ईश्वर को केवल श्रद्धा से जाना जा सकता है, उसके विषय में तर्क करने से कुछ हाथ नहीं आयेगा, वह है, यह मानना होगा पूरे मन से. संशय ग्रस्त मन कभी रास्ता नहीं पा सकता, संशय से ऊपर रहकर अपने आप में व ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखकर वे कहीं अधिक सबल हो सकते हैं.
एक सामान्य सा दिखने वाला जीवन भी अपने भीतर इस सम्पूर्ण सृष्टि का इतिहास छिपाए रहता है, "यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे" के अनुसार हर जीवन उस ईश्वर को ही प्रतिबिम्बित कर रहा है, ऐसे ही एक सामान्य से जीवन की कहानी है यह ब्लॉग !
Tuesday, May 15, 2012
श्र्द्दावान लभते ज्ञानं
जून उसके लिये हिंदी अनुभाग से दस किताबें लाया है, ज्यादातर उपन्यास हैं, कुछ कहानियों की किताबें हैं. इन्हें पढ़ लेने पर वह और भी लाएगा. नूना बहुत खुश है इन्हें पाकर. कल शरत चन्द्र की एक कहानी पढ़ी, शाम को विमल मित्र की डेढ़ कहानी, दूसरी पूरी नहीं पढ़ पायी, रात को जून ने कहा, उसे नींद आ रही है, बत्ती बुझा दो. उसे पता नहीं क्यों पढ़ने के नाम पर जोरों से नींद आने लगती है, पर बत्ती बंद होने के बाद आधे से एक घंटा वह जगता रहा था. सुबह उठकर जून के जाने के बाद उसने वह कहानी पढ़नी शुरू की, काम वाली महरी तब तक आयी नहीं थी, पढ़ते-पढ़ते कब उसकी भी आँख लग गयी उसे भी नहीं पता, एक बार उठने का ख्याल आया तो मन ने कहा अभी काम वाली आकर घंटी बजाएगी, पर उसे आना ही नहीं था, फिर उठ कर भोजन बनाया जून के आने में आधा घंटा शेष था. फिर स्नान किया और रोज का गीता पाठ किया, पढ़ा, “ईश्वर को केवल श्रद्धा से जाना जा सकता है, उसके विषय में तर्क करने से कुछ हाथ नहीं आयेगा, वह है, यह मानना होगा पूरे मन से. संशय ग्रस्त मन कभी रास्ता नहीं पा सकता, संशय से ऊपर रहकर अपने आप में व ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखकर वे कहीं अधिक सबल हो सकते हैं.
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