Tuesday, March 26, 2024

गुलाबी आकाश

गुलाबी आकाश 

आज ब्लॉग पर एक भी पोस्ट प्रकाशित नहीं की। पिछले कई वर्षों से ब्लॉगिंग जैसे जीवन का अंग बन गई है। कोई पढ़ता है या नहीं, इसकी परवाह किए बिना अपने दिल की बात कहने का यह एक मंच जो विज्ञान ने साधारण से साधारण व्यक्ति को प्रदान किया है, अतुलनीय है। इसके माध्यम से वह कितने ही लेखक-लेखिकाओं की रचनाओं का आस्वादन घर बैठे कर पाती है। डायरी में बंद शब्दों को एक नया आकाश मिल गया है जैसे। कुछ लोग पढ़ते भी हैं और टिप्पणी भी करते हैं, ऊर्जा का एक आदान-प्रदान जो इंटरनेट पर आजकल होता है, उसकी तुलना इतिहास की किसी भी घटना से नहीं की जा सकती। आज सुबह बड़े भाई ने नेट पर भाभीजी की पीली साड़ी वाली फ़ोटो ढूँढ कर देने को  कहा। कुछ समय उसमें गया। फिर छोटी बहन ने अध्यात्म से जुड़ा एक वीडियो भेजा और देखने का आग्रह किया, देखा, कुछ समझ में आया, कुछ नहीं। एक पहले की लिखी कविता टाइप की। परसों बहनोई जी का जन्मदिन है, उनके लिए कविता लिखनी है। आज सुबह टहलते समय पाँच तत्वों और शरीर के चक्रों के आपसी संबंध पर कितने विचार आ रहे थे। लिखने का समय नहीं निकाला, सो अब कुछ भी स्मरण नहीं है। परमात्मा स्वयं ही भीतर से पढ़ाते हैं, संत ऐसा कहते हैं, कितना सही है यह !


एक दिन और बीत गया। सुबह नींद समय पर खुली, कल रात नींद भी ठीक आयी। सुबह भ्रमण ध्यान किया। कितने सुंदर विचार आते हैं ब्रह्म मुहूर्त में। आकाश भी गुलाबी था। तस्वीरें उतारीं। आर्ट ऑफ़ लिविंग के ऐप के सहयोग से योग साधना की।नन्हे के भेजे तवे पर बने आलू पराँठों का नाश्ता ! एओएल के प्रकाशन विभाग के कोऑर्डिनेटर का फ़ोन आया, एक लेख में कुछ और जोड़ा गया है, अनुवाद पुन: लिखना है। शाम को पापा जी से बात हुई। पोती घर आयी हुई है नन्ही बिटिया के साथ, उसके रोने की आवाज़ उन्हें कभी-कभी आती है। पुत्र घर के काम में हाथ बँटाता है, जब बहू नातिन की देखभाल में लगी होती है, जिसकी पहली लोहड़ी मनाने की तैयारियाँ चल रही हैं। 


आज लोहड़ी है। वे शकरकंदी व कच्ची मूँगफली लाये निकट के बाज़ार से, जहाँ सड़क किनारे मकर संक्रांति पर बिकने वाले सामानों की ढेर सारी दुकानें लगी हुई थीं। सुबह नापा में भी यह पर्व मनाया गया। यहाँ इस दिन तिल और गुड़ से बनी मीठी वस्तुएँ खाने और खिलाने का रिवाज है। पूरे कर्नाटक में संक्रांति का उत्सव बड़े उत्साह से मनाते हैं। कल खिचड़ी का पर्व है। छिलके वाली उड़द दाल जून ने बिग बास्केट से मंगायी है।उनका  पतंग उड़ाने का ख़्वाब अभी पूरा नहीं हुआ है। पतंग नन्हे ने मंगाकर रखी है पर उसकी डोर नहीं मिली निकट के बाज़ार में। अलबत्ता मंदिर की भव्य सजावट देखने का अवसर मिल गया । आज सुबह भ्रमण के समय ‘स्पंद कारिका’ पर व्याख्या सुनी।जिसे आत्म-अनुभव न हुआ हो उसे अध्यात्म में रुचि कैसे सकती है ? वह इसे जाग्रत करे भी तो कैसे ? इसके लिए तो कृपा ही एकमात्र कारण कहा जा सकता है। परमात्मा की कृपा से ही उसके प्रति आस्था का जन्म होता है। 


आर्ट ऑफ़ लिविंग की तरफ़ से कुछ दिनों के लिए ऑन लाइन स्टे फिट कार्यक्रम चलाया जा रहा है। सुबह-सुबह उनके साथ व्यायाम और योगासन करने से शरीर हल्का लग रहा है। अब दो दिन ही शेष हैं। एक सखी ने दुलियाजान में बीहू उत्सव की तस्वीरें फ़ेसबुक पर पोस्ट की हैं। कितनी यादें मन में कौंध गयीं। वहाँ क्लब में बीहू बहुत उत्साह से मनाया जाता है। साज-सज्जा नृत्य-संगीत और पारंपरिक पकवान, सभी की तैयारी पहले से शुरू हो जाती है। पड़ोस वाले घर में दीवार उठनी शुरू हो गई है। आज पड़ोसिन अपनी कक्षा एक में पढ़ने वाली बिटिया को लेकर आयी थी, मकर संक्रांति का प्रसाद देने। तिल के लड्डू, छोटे वाले दो केले, पान, सुपारी, सिंदूर का छोटा सा पैकेट और दस रुपये का नोट। ऐसे ही एक तमिल सखी असम में दिया करती थी। नूतन पांडेय की लिखी हिन्दी किताब में असम की पृष्ठभूमि पर लिखी एक कहानी पढ़ी, यह पुस्तक असम से आते समय मृणाल ज्योति की प्रिंसिपल ने दी थी।टीवी पर वेदान्त की पाँच बोध कथाएँ सुनीं, पहली गधे की, दूसरी दसवाँ कौन, तीसरी शेर के बच्चे की, चौथी राजकुमार की और पाँचवीं राजा जनक की। सभी कहानियाँ बताती हैं कि सत्य क्या है, और लोगों द्वारा उसे क्या समझा जाता है।


Monday, March 11, 2024

पंचदशी

आज भी सरकार और किसानों के मध्य वार्ता चल रही है। पिछले साल जून में तीन नये कृषि क़ानूनों के विरुद्ध शुरू हुआ था यह आंदोलन, जिसमें बाद में किसानों ने दिल्ली की सीमा पर धरना शुरू कर दिया; शायद स्वतंत्रता के बाद से किसानों और सरकार के बीच सबसे बड़ा आंदोलन है। अब पंद्रह जनवरी को फिर से वार्ता होगी। आज उसने स्टॉक मार्केट पर एक पुस्तक पढ़नी शुरू की है। सेविंग तथा इन्वेसमेंट के बारे में पढ़ा। ​​​​इन सब विषयों के बारे में वह पूरी तरह से अनभिज्ञ है। दीदी-जीजा जी का भेजा एक उपहार मिला, पीतल जैसा आभास देता बत्तख़ों का एक जोड़ा है, उनके विवाह की वर्षगाँठ पर। आज बहुत दिनों के बाद एक पुरानी सखी का फ़ोन आया, वे लोग अगले वर्ष सेवा निवृत्ति के बाद बैंगलोर में बसना चाहते हैं। कारण पूछा तो बताया, दिल्ली का मौसम और प्रदूषण, साथ ही यहाँ के लोगों का अक्खड़पन, उसे मन ही मन हँसी भी आयी और कुछ पुरानी बातें याद हो आयीं, जब वे सब असम में रहा करते थे। आज शाम को साइकिल चलाते समय वह शायद सजग नहीं थी, एक छोटी लड़की का एक पहिये वाला स्कूटर सामने आ गया, लड़की घबरा गई, एक तरफ़ झुक गई, महक नाम है उसका, सामने वाली लाइन में रहती है। उसके साथ एक सहेली भी थी, कहने लगी, वे लोग हिंदी हैं, शायद उसका अर्थ था, वे हिन्दी बोलते हैं।उसने देखा है, ग़लत हिन्दी बोलने पर भी हिन्दी भाषी जरा भी नहीं टोकते, बल्कि ख़ुद भी उन्हीं के लहजे में बोलने लगते हैं। कन्नड़ भाषी अपनी भाषा को लेकर बहुत अधिक सजग हैं।मोबाइल पर उसने आज से‘पंचदशी’(पंद्रह) सुनना आरंभ किया है।पंचदशी स्वामी विद्यारण्य की अद्वैत सिद्धांत पर लिखी एक प्रसिद्ध कृति है। इसमें पंद्रह भाग हैं। जो तीन भागों में बाँटे गये हैं। इनमें सत्, चित्  और आनंद की व्याख्या की गई है।किंतु वह जानती है, ध्यान भी गहरा करना होगा यदि अध्यात्म में वांछित प्रगति करनी है। उस अनंत परमात्मा की अनंत शक्तियाँ हैं। जो कहता है उसे जान लिया, वह घोर अंधकार में घिर जाता है। परमात्मा तो बेअंत है, उसे जानने का एक ही अर्थ है, अधिक से अधिक उसके सान्निध्य में रहना, उसमें डूबना और त्याह ध्यान में ही संभव है। 


रात्रि के नौ बजे हैं । कल रात लगभग एक बजे अचानक नींद खुल गई।चेहरे पर पसीना था, शायद कमरा काफ़ी गर्म हो गया था।उठकर खिड़कियाँ व दरवाज़े खोले, कुछ देर बैठने से हवा का एक झोंका जैसे आकर छू गया, रात्रि की निस्तब्धता में कहीं से एक पंछी की आवाज़ सुनायी दी। दोपहर को उस सखी का फ़ोन फिर से आया।वे लोग अब मकान ख़रीदना छोड़कर किराए के मकान में रहने की सोच रहे हैं।उनके लिए घर देखना शुरू किया है। ईश्वर का विधान मानवों की समझ से बाहर है। वह बिछुड़े हुओं को कब कैसे मिलायेगा कोई नहीं जानता।अभी नन्हे और सोनू से बात हुई। सुबह वह उठा तो सिरहाने रखी दवा का नाम बिना पढ़े, आँख की दवा समझ कर डाल ली थी दिन भर परेशान रहा। डाक्टर ने दूसरी दवा दी है, कल तक अवश्य ठीक हो जाएगा। आज पापा जी से बात हुई, वह लाओत्से की एक पुस्तक पढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा-उस पुस्तक के अनुसार, यदि कोई ये तीन बातें अपना ले तो सुखी रहेगा। प्रथम है, दिल में सारी कायनात के लिए अनायास ही प्रेम, दूसरी है किसी भी वस्तु या बात में अति पर न जाना और तीसरी कभी भी सबसे आगे रहने का प्रयास न करना। लाओत्से विनम्रता का पाठ ही तो पढ़ा रहे हैं, पीछे रहने में जिसे किसी हीनता का अनुभव न हो, वही समता में रहा सकता है और जो सबसे प्रेम कर सकता है, उसका मन भी डोलता नहीं। 


आज सुबह नींद चार बजे ही खुल गयी थी। कल रात ‘पंचदशी’ सुनकर सोयी थी। सुबह उठते ही एक सूत्र मन में आया; जो जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति को देखता है, वह ‘मैं’ हूँ । योग वशिष्ठ में पढ़ा था, वास्तव में ब्रह्म में कुछ हुआ ही नहीं, सब स्वप्नवत् ही है। मन ठहर गया; सुबह-सुबह ही एक कविता लिखी, फिर कुछ देर का मौन, उसके बाद एक रचना उतरी। आर्ट ऑफ़ लिविंग के अनुवाद संयोजक को भेजी कि गुरुजी को पढ़ने के लिए भेजे, उसने कहा नकुल भैया से कहकर भिजवायेगा। गुरुजी का संदेश कल भी आया, आज भी एओएल के ऐप ‘सत्व’ में उनकी ज्ञान सूक्ति के माध्यम से।आज नन्हा, सोनू व बड़े भैया की बिटिया आये थे, जिसने निफ़्ट से पढ़ाई की है। दोपहर को उसके मनपसंद राजमा-चावल बनाये। नन्हे की आँख अभी तक ठीक पूरी तरह से नहीं हुई है। शाम को सब मिलकर पड़ोस में बन रहे आलीशान विशाल मकान को देखने गये, मकानमलिक भी आ गये थे।


जनवरी आधा भी नहीं बीता है, मौसम अभी से गर्म होने लगा है। आज गर्म वस्त्रों को धूप दिखाकर आलमारी में रख दिया, यहाँ उनकी कोई आवश्यकता ही नहीं है। शाम को एक और घर देखने गये, तीन कमरों का मकान अच्छा है मार्च में वे लोग आयेंगे, ऐसा कहा है।आज नन्हे ने एक दोसा तवा भिजवाया, संजीव कपूर की कंपनी का है, ग्रेनाइट का बना हुआ। कल उसका उद्घाटन करेंगे, उसने मन में सोचा ही था कि पहले आलू पराँठा बनायेंगे, ठीक उसी वक्त जून ने भी बिलकुल यही बात कही। विचार यात्रा करते हैं, यह सिद्ध हो गया। 



Tuesday, March 5, 2024

सरसों का साग

सरसों का साग 


आज प्रातः भ्रमण करते समय कुछ देर ‘वॉकिंग मैडिटेशन’ किया। इसमें हर कदम को सजग होकर उठाना है और दोनों हाथ देह से सटाकर रखने हैं, उन्हें हिलाते हुए नहीं चलना है। ऐसा करने से विचार रुक जाते हैं और भीतर मन ठहर जाता है। मैडिकेशन या मैडिटेशन दोनों से एक का चुनाव हर व्यक्ति को करना ही पड़ेगा। शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से स्वयं को स्वस्थ रखना हो तो ध्यान सर्वोत्तम उपाय है। गुरुजी के बताये कितने ही ध्यान मन को ऊर्जा से भर देते हैं। मन तब मनमानी करने से आनंदित नहीं होता बल्कि अपने लिए स्वयं काम तय करता है। जैसा सुबह तय किया था, उसने दोपहर को एक चित्र बनाया, एक कविता लिखी और एक पोस्ट ब्लॉग पर प्रकाशित की।कितना सही कहा है किसी ने परमात्मा भी उनकी सहायता करते हैं जो अपनी सहायता आप करता है।शाम को वर्षा के कारण बाहर जाना नहीं हुआ।रात को भी हल्की रिमझिम थी, जून को ऐसे मौसम में घर पर रहना ही भाता है, उन्हें लगता है चप्पल भीग जाएगी, कपड़ों पर छींटे पड़ेंगे सो अलग, पर उसके लिए बारिश एक उपहार है और उसके साथ जुड़ी हर बात भी।इसलिए दस-पंद्रह मिनट की छोटी सी वॉक के लिए वह छाता लेकर अकेले ही निकल गई। रात्रि नौ बजे आर्ट ऑफ़ लिविंग की दिव्य कांचीभोटला जी  का इंस्टाग्राम पर कार्यक्रम है। वह ‘ग्लोबल एन्सिएंट नॉलेज सिस्टम’ पर बोलने वाली हैं। उसे ट्रांस्क्राइब करना है। पूरा शब्द ब शब्द नहीं, केवल मुख्य बिंदु लिखने हैं। नौ बजे से आरम्भ होगा।बाद में उसका हिन्दी अनुवाद करना है।दिव्या जी एओएल की रिसर्च विंग श्री श्री इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस्ड रिसर्च की डायरेक्टर हैं। जून ने भी पहले कुछ महीनों तक यहाँ कुछ काम शुरू किया था। यहाँ पर ध्यान, योग, आयुर्वेद और विश्व की अन्य ज्ञान प्रणालियों पर अनुसंधान होता है। सुदर्शन क्रिया के लाभों पर अनुसंधान भी हो रहा है। इस सेवा कार्य  से उसकी ख़ुद की जानकारी भी कितनी बढ़ रही है। उसने मन ही मन गुरुजी का धन्यवाद किया। 


आज सुबह आकाश स्वच्छ था, नीला धुला-धुला सा, कुछ तस्वीरें उतारीं, जो नेट पर प्रकाशित करेगी। नीले शुभ्र आकाश को देखकर किसी को भी अपने अनंत स्वरूप का स्मरण आ सकता है। कल उनके विवाह की वर्षगाँठ है। एक बार उसने एक नाटक सुना था, जिसका सार था, अनेक वर्षों साथ रहने पर भी कोई भी दो व्यक्ति पूरी तरह से एक-दूसरे को कहाँ जान पाते हैं; क्योंकि चेतना अनेक रूप बदल सकती है। एक ही व्यक्ति के भीतर अनेक व्यक्ति रहते हैं। एक वैज्ञानिक और संगीतकार एक साथ रह सकते हैं। गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर कितने ही विषयों में सिद्ध थे।जून आजकल ज़्यादा बात नहीं करते। सेवा निवृत्त हुए अभी उन्हें डेढ़ वर्ष हुआ है, कभी-कभी लगता है, वह अभी से बोर हो गये हैं।कोरोना के कारण भी वह बंधन महसूस करते हैं। जबकि उसके मन की उड़ान को देश-काल का कोई बंधन नहीं है। नन्हे ने फ़ोन करके जून के वस्त्रों का  साइज पूछा, शायद उपहार ख़रीदा रहा होगा। उसे इन सब बातों का बहुत ध्यान रहता है। 


आज का विशेष दिन भला-भला बीता।सुबह सभी मित्रों व संबंधियों के शुभकामना फ़ोन आ गये। वे हॉर्लिक्स पी रहे थे कि नन्हा और सोनू भी आ गये। वे केक और उपहार लाए थे। उन दोनों के लिए घड़ी और जून के लिए वस्त्र। अपने साथ रसोइये से विशेष रूप से मँगवाया सरसों का साग भी लाए जो यहाँ नहीं मिलता है और जून को बहुत पसंद है। दोपहर को मक्की की रोटी के साथ बनाया। नाश्ते में मोरिंगा के पराँठे बने, जो मोदी जी की पसंद हैं। सहजन के पत्तों से बनाये जाते हैं, यू ट्यूब पर  विधि देखकर बनाये। आज नया कुछ नहीं लिखा, गूगल की मेहरबानी से एक पुरानी कविता के साथ कुछ पुरानी तस्वीरों को जोड़कर एक वीडियो बनाया। शाम को वे आश्रम गये थे । विशाला कैफ़े में सागर नाम के एक युवक ने उनकी तस्वीर खींच दी। पहले वह जून की तस्वीर उतार रही थी। युवक तथा उसकी मित्र यह देख रहे होंगे। उसकी मित्र ने ही प्रेरित किया होगा संभवत:, तस्वीर अच्छी आयी है, उनकी एक और तस्वीर साथ-साथ !