पिरामिड वैली
नव वर्ष का प्रथम दिन ! सुबह नींद देर से खुली क्योंकि रात को बारह बजे से पटाखों की तेज आवाज़ें आनी आरम्भ हुईं और एक घंटा चलती रहीं। बच्चों व बड़ों के चिल्लाने का शोर भी स्पष्ट आ रहा था। नये वर्ष को तो आना ही है, इतना शोर मचाने का क्या अर्थ है, समझ में नहीं आता। प्रातः भ्रमण के समय आकाश में गोल चंद्रमा के दर्शन हुए, तस्वीर उतारी, वापस आकर छत पर सूरज की। उगते हुए सूरज को देखकर त्राटक करना कितना भला लग रहा था। स्नान करके नाश्ता बनाया और दोपहर के भोजन की तैयारी की, जो वे ‘पिरामिड वैली’ अपने साथ ले जाने वाले थे।जून ने बनारसी चिवड़ा-मटर; और खोये वाला गाजर का हलवा उन्होंने कल ही बनाया था। उसने हींग वाले आलू-पूरी और बटर में परवल बनाये। सभी को नाश्ता पसंद आया। बच्चों के साथ उनका एक मित्र भी आया था और सोनू के माँ-पापा भी। वे एक बजे पिरामिड वैली पहुँच गये थे। उनके घर से ज़्यादा दूर नहीं है यह शांत स्थान, जो २८ एकड़ में फैला हुआ है। सुंदर बाग-बगीचों और एक कमल सरोवर से घिरा दुनिया के सबसे बड़े आकार के पिरामिड के लिए प्रसिद्ध है। जो ध्यान के लिए एक संत ब्रह्मर्षि पात्री जी द्वारा बनवाया गया है। वे लोग पहले भी एक बार यहाँ आये थे, और तभी आज के दिन का कार्यक्रम बना था। यहाँ आकर ज्ञात हुआ कि बाहर से लाया भोजन इस परिसर में नहीं खा सकते।एक घंटा हरियाली के सान्निध्य में घूमते हुए बिताया, कुछ देर पिरामिड में जाकर ध्यान किया। किताबों की दुकान से दो किताबें ख़रीदीं, अवेकनिंग कुंडलिनी और द लॉस्ट ईयर्स ऑफ़ जीसस ! रेस्तराँ में चाय पैकर वे घर लौट आये। बाद में छत पर चटाई बिछाकर पिकनिक की तरह पेपर प्लेट्स में दोपहर का भोजन किया। शाम को वे वापस चले गये। जिन मित्रों व संबंधियों से सुबह बात नहीं हुई, उन्हें फ़ोन पर नये साल की शुभकामनाएँ दीं।
आज सुबह ब्रह्म मुहूर्त में ही आँख खुल गई। छोटी ननद के लिए जन्मदिन की कविता लिखी, मंझले भाई का जन्मदिन भी आज है, उसे भी शुभकामना भरी कविता भेजी। जीसस वाली किताब में पढ़ा, लेह की हिमिस मोनेस्ट्री में कुछ दस्तावेज मिले हैं , जिनके आधार पर कहा गया कि ईसा भारत आये थे।शाम को पापा जी से बात हुई, उत्तर भारत में ठंड बहुत बढ़ गई है, उन्होंने कहा तापमान शून्य हो गया था। दिल्ली में वर्षा हो रही है। यहाँ बैंगलुरु का मौसम सुहावना है, पर कब बदल जाएगा, कहा नहीं जा सकता।
आज यहाँ भी थोड़ी सी ठंड बढ़ गई है। रात को बारिश होती रही शायद इसी कारण। जून के दांत में दर्द है, कल डेंटिस्ट को दिखाकर नन्हे-सोनू के यहाँ चले जाएँगे। वे दोनों घर से ही काम कर रहे हैं।सुबह एलिजाबेथ क्लेयर की ईसा के भारत में बिताये समय के बारे में किताब आगे पढ़ी, बहुत रोचक है। जीसस की भारत, तिब्बत व नेपाल की सत्रह वर्षों की यात्रा के पक्के सबूत मिले हैं। उसमें लिखा है कि 13 साल की उम्र से 29 साल की उम्र तक वह पहले पढ़ते रहे फिर उन्होंने पढ़ाया भी ।येरूशलम से भारत तक की उनकी यात्रा का विवरण बौद्ध इतिहासकारों ने दिया है। किसान आंदोलन ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। कल भी सरकार ने वार्ता के लिए बुलाया है। देश में कोरोना की वैक्सीन लगाने का काम आरम्भ हो रहा है ।
आज दिन भर बदली बनी रही। सुबह साढ़े नौ बजे वे डेंटिस्ट के यहाँ जाने के लिए निकले थे। जून को फ़िलिंग करवानी थी। उसने भी दिखाया, तो क्लीनिंग कर दी, दस मिनट की सफ़ाई के लिए एक हज़ार रुपये लिए। जब वे पहुँचे, ठीक उसी समय नन्हा भी आ गया, उसका मित्र उसे लेकर आया था। उसने अपनी मीटिंग आगे खिसका दी और इसलिए आया कि पापा को कहीं एनेस्थीसिया दे दिया गया तो ड्राइविंग में दिक़्क़त होगी।बच्चे बहुत समझदार और केयरिंग हैं। सुबह सामान्य थी, एक विशेष बात हुई कि छोटी भाभी का जन्मदिन है, सुबह ही याद आया, उसके लिए कविता लिखी उसी समय, जबकि उन्हें निकलना था। यह भी तो सेवा का एक कार्य हुआ न ! परसों बड़ी ननद का जन्मदिन है, कल ही उसके लिए लिखनी है। शाम को रमन महर्षि की बातचीत का एक अंश सुना, प्रेरणादायक था फिर गुरु जी का कराया ध्यान किया। मन शांति का अनुभव कर रहा था। सात तारीख़ को सूट-साड़ी पहनकर वे आश्रम जायें, ऐसा मन में विचार आया है ! उस दिन छत्तीस वर्ष हो जाएँगे उनके विवाह को। नन्हे-सोनू के यहाँ भोजन अच्छा था, दाल-चावल व करेले की सब्ज़ी !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 29 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत बहुत आभार रवींद्र जी !
ReplyDelete_/\_
ReplyDeleteआभार !
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