अभी-अभी वे रात्रि भ्रमण से लौटे हैं। हवा ठंडी थी और सुकून देने वाली, पत्तों की सरसराहट सुनायी दे रही थी। आज छोटे भाई-भाभी के विवाह की सालगिरह है, उनके लिए एक कविता लिखी, उन्हें पसंद आयी, फ़ेसबुक पर पोस्ट करने को कहा है, ताकि और लोग भी पढ़ सकें। रचना की पूर्णता तो पाठकों के पढ़ने पर ही होती है।नन्हा घर लौटने वाला होगा, वह असम से पिटुनिया और डहलिये के पौधे ला रहा है। सोनू अभी दो महीने वहीं रहेगी, ऐसा उसने कहा है, पर उसे लगता है, वह जल्दी ही लौट आएगी। बंगलूरू के मौसम में रहने के बाद कोई और कहीं क्यों रहना चाहेगा। उससे फ़ोन पर बात की तो बहुत मासूम और छोटी लग रही थी, माँ के पास जाकर शायद सभी बच्चे बन जाते हैं।
आज सुबह नन्हा माली को लेकर आया। साथ में दस बड़े गमले, चार बोरी मिट्टी, खाद वह पौध भी लाया। उन्होंने कल ही कोकोपीट भिगो दिया था। दोपहर तक सारा काम हो गया। अब कुछ ही महीनों में उनका बगीचा फूलों से भर जाएगा। बड़े भाई से बात हुई, पापा जी कुछ दिनों के लिए उनके घर आये हैं। वे बहुत खुश हैं, पोती भी उनका बहुत ध्यान रख रही है। रात्रि भोजन के बाद जब निकले तो वर्षा होने लगी थी। छाते लेकर गये, हवा थी पर ठंड जरा भी नहीं थी। यही बात बैंगलोर के मौसम को अच्छा बनाती है, दिसम्बर में भी स्वेटर की ज़रूरत नहीं है। यहाँ टेक्निकल सुविधाएँ भी बहुत हैं। उनकी ईवी की सर्विसिंग होनी है, टाटा मोटर्स वाला आदमी कल ख़ुद ही आकर ले जाएगा, फिर परसों छोड़ जाएगा।
कल दोपहर बारह बजे बड़ी ननद व ननदोई आ गये थे । कितनी बातें की उन्हींने, पुराने दिनों की और वर्तमान की भी। समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। शाम को उन्हें नापा में घुमाया, हरियाली और साफ़-सफ़ाई देखकर बहुत खुश थे, जगह-जगह तस्वीरें खिंचवाईं। वर्षों बाद कभी देखेंगे तो उन्हें यह दिन याद आ जाएगा। सुबह भी उन्हें भ्रमण के लिए ले गये।नाश्ते के बाद कार में दूर तक झील और जंगल दिखाने ले गये। दोपहर के भोजन के बाद वे अपनी बहन के यहाँ चले गये। समाचारों में सुना, सरकार और किसानों में आज जो समझौता वार्ता होनी थी, नहीं होगी। अभी तक किसान आंदोलन पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है।शायद अब सरकार को कठोरता अपनानी होगी। अनिश्चित काल तक तो यह आंदोलन नहीं चल सकता।
मॉर्निंग ग्लोरी के जो बीज उसने बोए थे उनमें अंकुर निकल आये हैं। असमिया सखी से बात हुई, उसकी बिटिया वापस आ गई हैं, अब आगे की पढ़ाई यहीं से करेगी। दीदी ने कहा, नार्वे में उनकी पोती का स्कूल खुला था, पर बंद करना पड़ा। पहले एक बच्चे को फिर टीचर को कोरोना हो गया। अमेरिका में भी कोरोना थमने का नाम नहीं ले रहा है। भारत में केस घट गये हैं। आज छोटे भांजे का जन्मदिन है, कॉलेज का एक छात्र जो पिछले दस महीनों से घर पर रहकर पढ़ाई करने पर विवश है।कैसे होंगे उसके मन के भाव, वह अपनी आज़ादी को मिस तो करता होगा। देवों के देव में दिखाया गया कि जब लक्ष्मी जी को अहंकार हो जाता है, तब उसका दुष्परिणाम उन्हें भी भुगतना पड़ता हैं। आज नैनी काम पर नहीं आयी, दूसरी पहले से ही एक सप्ताह के लिए गाँव गई है। जून कुछ कामों के न हो पाने के कारण परेशान हो गये। जब उसने कहा, उसे तो भीतर वाले की फ़िक्र है, तो उन्होंने भी चिंता छोड़ दी तथा दिन भर हल्के मूड में ही बने रहे। संग का असर होने लगा है।
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