Tuesday, June 27, 2023

रंग और ब्रश




रात्रि के नौ बजने वाले हैं। आज मौसम अपेक्षाकृत गर्म है। कहीं से एक बच्चे के रोने की आवाज़ आ रही है, जो सदा ही उसे विचलित कर देती है। शायद वह गिर गया हो, या उसे किसी बात पर डांट पड़ी हो। असम में कितनी बार बाहर जाकर रोते हुए बच्चों को हंसाने की कोशिश करती थी, वहाँ आसपास कई बच्चे थे। यहाँ तो घरों में बहुत ध्यान रखा जाता है पर बच्चे तो आख़िर बच्चे हैं ! अचानक इस समय कैसी हवा चलने लगी है, वातावरण का कितना अधिक प्रभाव मानव के मन पर पड़ता है। सुबह उठे तो बारिश के कारण देर से टहलने जा पाये, ऐसे में सारी दिनचर्या उलट-पलट जाती है। परसों उन्हें रक्त की सामान्य जाँच कराने जाना है। जून को बढ़ती हुई उम्र में होने वाली परेशानियों का भय सताने लगा है, जबकि नूना के मन में तो उम्र का ख़्याल भी नहीं आता।समय भी तो एक भ्रम ही है, जब सब कुछ माया ही है तो फिर डर किस बात का ! शाम को वह छत पर थी, नीचे कामवाली  जा रही थी, उसने बुलाकर कल सुबह जल्दी आने के लिए कहा, पर वह हिन्दी नहीं जानती, पता नहीं क्या समझा होगा। उसी समय सब्ज़ी वाला ट्रक आया था, जून लेने गये, पर कोई भी सब्ज़ी ताज़ी नहीं थी। सुबह वह वर्षों बाद बालों में लगाने वाले दो क्लिप लायी, कोरोना की मेहरबानी से बाल लंबे हो गये हैं। शाम को पिताजी से बात हुई, मंझला भाई मिलने आया था, नया सोफा और नया मैट्रेस मँगवाया है। उनका स्वास्थ्य पूरी तरह ठीक नहीं है फिर भी वह बहुत खुश थे। जून ने पेंटिंग के लिए नये फ़्लैट ब्रश माँगा कर दिये हैं। वह उसका बहुत ध्यान रखते हैं। दोपहर को एक चित्र बनाया, रंगों को कागज पर उड़ेलने में कितना आनंद आता है, इसका पता ही नहीं था। कला कोई भी हो ह्रदय को आनंदित करती है। देवों के देव में लेखा दूसरी पार्वती बनाकर आयी है। कथा अति रोचक हो गई है।  


आज शाम वे नन्हे के घर आ गये हैं, कल  सुबह यहाँ से जाँच के लिए रक्त का नमूना ले जाने के लिए लैब से कोई व्यक्ति आएगा। रात्रि भोजन जल्दी कर लिया ताकि बारह घंटों से कुछ अधिक का उपवास हो जाये। सोनू अपनी एक सखी के लिए केक बना रही है। शाम को छोटी बहन से बात हुई, वे लोग नवरात्रि की पूजा की तैयारी के लिए बाज़ार जाने वाले थे। विदेश में रहकर भी वे सभी उत्सव बहुत विधि से मनाते हैं। सुबह उठे तो आज भी वर्षा हो रही थी, समाचारों में सुना हैदराबाद में अति भीषण वर्षा हुई है, सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। 

सुबह एक विचित्र स्वप्न देखा, जो बहुत कुछ सिखा रहा है। घर का पिछवाड़ा देखा, वहाँ एक माली भी काम कर रहा है। दीदी को देखा, उन्हें सचेत किया, पीछे गंदगी है। जिसमें सड़ी और कटी हुई सब्ज़ियाँ हैं, जिन्हें पानी से भरे एक टब में डाल दिया, पता नहीं क्या अर्थ था इस स्वप्न का, फिर गूगल पर स्वप्न फल में पढ़ा तो पता चला कि अपने किसी कृत्य को स्वीकारा, जिस पर पछतावा था। मन कुछ हल्का हुआ, उसके पूर्व मन आत्मग्लानि से भर गया था। सपने तो सपने ही हैं पर वे प्रतीकों के रूप में कितना  कुछ कह देते हैं। सुबह उठी तो नन्हे ने पूछा, आप योग अभ्यास करेंगी, उसके टीचर ने बहुत अच्छी तरह आसन कराये, एक घंटा कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला। उसके बाद पैथोलॉजिकल लैब के एक कर्मचारी ने आकर रक्त लिया। उसके बाद नाश्ता किया, नन्हे ने लंच भी पैक करवा दिया था। वापस घर आकर सफ़ाई करवायी, स्नान, पूजा, ध्यान  के बाद भोजन किया, अच्छा बना था। 


उनकी जाँच की रिपोर्ट आ गई है, सब कुछ सामान्य है। आज अष्टमी तिथि है, सुबह सरस्वती देवी को समर्पित कुछ पंक्तियाँ लिखीं। भीतर भाव उमड़ रहे थे सो दो कविताएँ और लिखीं। यदि अतीत मार्ग में न आये और भविष्य की कोई कल्पना मन न कर रहा हो  तो वर्तमान के गर्भ से ही कर्म का जन्म स्वतः होता है। जब मन पूरी तरह से जगा हो, तभी कला का जन्म हो सकता है। जे कृष्णामूर्ति को कहते हुए सुना था, मृत्यु के क्षण में सारे अतीत की मृत्यु हो जाती है, और ध्यान भी वही है। हर पल यदि ध्यान में रहना है तो अतीत की स्मृति नहीं रहनी चाहिए, जो वर्तमान में बाधा बने। वर्तमान से आँख मिलानी हो तो अतीत का पर्दा आँख पर नहीं रहना चाहिए।  मँझली भांजी ने दिवाली के लिए तोरण और कलात्मक  दिये भेजे हैं, वह ऐसी कई वस्तुएँ बनाती है।  


2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (29-06-2023) को    "रब के नेक उसूल"  (चर्चा अंक 4670)  पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    1. बहुत बहुत आभार शास्त्री जी!

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