बाहर वर्षा हो रही है। रात्रि के नौ बजने को हैं। शाम के ध्यान के बाद जब वे नीचे उतरे तभी से वर्षा आरंभ हो गयी, सो भोजन के बाद रात्रि भ्रमण के लिए नहीं जा सके। शाम का ध्यान गहरा था, गुरूजी के शब्द सीधे दिल की गहराई तक जा रहे थे, उसका असर था या दोपहर को देखी फ़िल्म का, मन कैसा पिघला जा रहा था। जून की ज़रा सी बात भी उसे प्रभावित कर गयी। मन होता ही ऐसा है, पल में तोला, पल में माशा ! जहाँ से मन ऊर्जा पाता है, वह पराशक्ति है। मन शब्दों का ही आश्रय लेता है यदि मौन का ले तो बचा रह सकता है। चेतना पहले श्वास में बदलती है फिर शब्दों में, यदि श्वास रुक जाए तो मन भी ठहर जाता है। आज पंत पर लिखा लेख काव्यालय में प्रकाशित कर दिया। शाम को सब्ज़ी वाला ट्रक आया था, ‘फ़्रेश वर्ल्ड’, पुदीना लिया, जून ने चटनी पीस दी। सुबह बड़ी भांजी से बात हुई, उसने बताया, कैसे उसने अपने अंग्रेज़ी लघु उपन्यास ऑन लाइन प्रकाशित किए, पर मार्केटिंग नहीं कर पायी है। एओएल की एक शोध कर्त्री द्वारा ‘अवसाद’ पर लिखे एक लेख का अनुवाद किया। कल श्राद्ध पर एक ज्योतिषाचार्य का वीडियो देखकर आलेख लिखना है। लेखन के ये कार्य उसके अनुभव क्षेत्र को बढ़ा रहे हैं, उसने मन ही मन गुरु जी का इस सेवा कार्य में सम्मिलित करने के लिए आभार व्यक्त किया।
सुबह टहलने गए तो बादलों के पीछे से चाँद की ज्योति झलक रही थी। इस समय कितना सन्नाटा है, बाँयी ओर से जैसे झींगुर बोलता है, एक ध्वनि आ रही है। सजग होते ही दाँयी तरफ़ से भी आने लगी है। सन्नाटा सधने लगा है कुछ-कुछ। गुरूजी दिन में दो बार ध्यान करवाते हैं। अक्सर वे व्यर्थ ही अपनी ऊर्जा वाणी के रूप में खर्च करते हैं। बाहर के मौन के साथ-साथ भीतर का मौन भी आवश्यक है, बल्कि ज़्यादा ही आवश्यक है। विचार ही कृत्य बनते हैं। वे जो पहले सोचते हैं वही तो बाद में कर्म रूप में फलित करते हैं। सोसाइटी के जिम में वस्त्रों की सेल लगी है, पर उनके पास इतने वस्त्र हैं कि शायद अगले दस वर्षों तक खरीदने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
संध्या भ्रमण के समय कोने वाले घर में एक छोटा बच्चा रोज़ मिलता है, हाथ हिलाता है। इतना ही बड़ा नन्हा था, उसे प्रैम में लेकर वे जाते थे तो एक पंजाबी महिला उसे देखकर बहुत खुश होती थीं, बाद में उस परिवार से अच्छी जान-पहचान हो गयी थी। जून के पैरों की जलन सौंफ, धनिया और मिश्री का मिश्रण खाने से काफ़ी ठीक है। असम में कोरोना फैल रहा है। सभी जगह यही हाल है। यह महामारी रुकने का नाम ही नहीं ले रही है , कितनों की जानें भी जा चुकी हैं। भारत में संक्रमितों की संख्या चार लाख हो गयी है।
आज शिक्षक दिवस पर अनेक शिक्षिकाओं को कविता भेजकर शुभकामना दी। शाम को वर्षा के कारण छत पर टहलने गए तो देखा पास वाले गोदाम की छत हटायी जा रही थी। हो सकता है यहाँ कोई दुकान बने। वे इधर उधर की बातें करते हुए टहल रहे थे कि बात बचपन के दिनों तक पहुँच गयी। उसने जून को बताया, वे लोग कौन सी पत्रिकाएँ पढ़ते थे, रेडियो पर नाटक सुनना भी उन दिनों विशेष आकर्षण होता था, आँगन में या छत पर सभी लोग अपने बिस्तर पर लेटे होते थे तब रेडियो पर रात्रि नाटक का समय होता था।कल नन्हा और सोनू आएँगे, वे लोग टेस्ट ड्राइव के लिए जाएँगे। नन्हे को अब कार की आवश्यकता महसूस होने लगी है, अब ओला, ऊबर सब बंद हैं। संयोग की बात है कि आज के ही दिन एक वर्ष पहले वे असम में विक्टर बनर्जी से मिले थे और आज ही उनकी पहली फ़िल्म ‘देवभूमि’ देखी, जो केदारनाथ में फ़िल्मायी गयी है।
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