Wednesday, May 26, 2021

पिरामिड वैली

 

नव वर्ष का नौवां दिन भी बीत गया। अभी तक  लेखन कार्य आरंभ नहीं हुआ है। भगवान बुद्ध की पुस्तक पढ़ने में ही सारा समय चला जाता है। वह ध्यान पर बहुत जोर देते हैं और शील के पालन पर भी। सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अलोभ और अक्रोध पर, साथ ही प्रज्ञा पर भी। अनुभव करके स्वयं जानने को कहते हैं न कि किसी की बात पर भरोसा करके ! जगत परिवर्तनशील है, सब कुछ नश्वर है, वस्तुओं के पीछे भागना व्यर्थ है और संबंधों के पीछे भी, भीतर की शांति और आनंद को यदि स्थिर रखना है तो अपने भीतर ही उसका अथाह स्रोत खोजना होगा। शांति और आनंद से मन को भरकर ही करुणा के पुष्प खिलाए जा सकते हैं ! किसीके पास यदि स्वयं ही प्रेम नहीं है तो वे किसी अन्य को दे कैसे सकते हैं ! पहले मन को सभी इच्छाओं, कामनाओं, लालसाओं से ऊपर ले जाकर खाली करना होगा। यशेषणा, वित्तेषणा, पुत्रेष्णा और जीवेषणा से ऊपर उठकर भीतर के आनंद को पहले स्वयं अनुभव करना होगा फिर उसे बाहर वितरित करना होगा। जगत में कितना दुख है, दुख का कारण अज्ञान है, अज्ञान को दूर करने का उपाय ध्यान है, ध्यान से ही दुख और शोक के पार जाया जा सकता है। अहंकार को मिटाकर ही कोई इस पथ का यात्री बनता है । धरती, पवन, अनल और जल की तरह धैर्यवान, सहनशील, परोपकारी और पावन बनकर ही बुद्ध ने अपने जीवनकाल में हजारों लोगों के जीवन को सुख की राह पर ला दिया था। उसे भी उसी पथ का राही बनना है। 


आज शाम आश्रम में गुरूजी को सुना, उन्होंने पहले कन्नड़ में बोला फिर अंग्रेजी व हिंदी में। उनके जवाब कितने सटीक होते हैंऔर कितने मजेदार भी, सभी को संतुष्ट करने वाले ! खुले प्रांगण में था कार्यक्रम, हजारों लोग रहे होंगे, जिन्हें गुरुजी के सान्निध्य ने आनंदित किया। । पहले भजनों का दौर चला फिर प्रश्नोत्तर का। अष्टावक्र गीता का एक श्लोक पढ़ा गया, जिसकी व्याख्या की गुरुजी ने। उन्होंने कहा, जब तक अहंकार है तब तक ही झिझक होती है, जब अहंकार नहीं रहता साधक बालवत बन जाता है। आराम बहुत हो गया, उसे अब ब्लॉग पर लिखना आरंभ करना ही होगा, भीतर से कोई बार-बार कह रहा है। नाश्ते के बाद का समय इसी काम के लिए रखा जा सकता है और दोपहर को भोजन के बाद के विश्राम के बाद का समय भी।  यदि जरूरत पड़ी तो समय और भी निकाला जा सकता है। जीवन जैसे दौड़ता ही जा रहा है, समय जो बीत गया वापस नहीं आता ! दोपहर को निकट स्थित खेत से वे सब्जी लाए व चीकू भी जिसे यहाँ सपोटा कहते हैं और बहुतायत में होता है। कल नन्हा व सोनू आए थे, व भांजा भी, वे सब पिरामिड वैली गए थे, जो बहुत सुंदर स्थान है। हरियाली और छोटी पहाड़ियों से घिरा यह विशाल स्थान सुकून से भर देने वाला है।यहाँ  दुनिया का सबसे बड़ा और दस मंजिल इमारत जितना ऊँचा पिरामिड नुमा ध्यान कक्ष है। जब वे कक्ष में पहुँचे तो कुछ लोग वहाँ पहले से ही बैठे थे, पर इतनी गहन शांति थी कि आपनी श्वास की आवाज भी सुनाई दे रही थी। कुछ देर सब उसी मौन में रहे फिर बाहर आकर फूलों के सुंदर बगीचों में।  यहाँ पर दूर-दूर से आकर लोग रहते हैं व ध्यान शिविरों में भाग लेते हैं। कल बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर एक कविता लिखी। 


आज भी वे आश्रम गए थे,आश्रम का वातावरण बहुत आनंददायक होता है। सफलता की परिभाषा बताते हुए गुरुजी ने कहा, जो व्यक्ति हर स्थिति में अपने मन की समता को बनाए रख सकता है वही सफल है।उन्होंने आज ध्यान भी कराया। कर्ताभाव जब खो जाता है तब ही ध्यान घटता है, ऐसा ध्यान जो अप्रयास घटता है। जब भीतर कोई इच्छा नहीं रहती तब ध्यान घटता है, ऐसा ध्यान जो सहज अवस्था का अनुभव कराए। जब न राग रहे न द्वेष, न कोई अपना न पराया, न भूत का पश्चाताप न भविष्य की आकांक्षा, तब ध्यान घटता है, ऐसा ध्यान जो मुक्ति का स्वाद देता है, जो शांति प्रदाता है। आर्जव, क्षमा, दया, संतोष और सत्य जब जीवन में घुलमिल जाते हैं तब ध्यान घटता है।  मुक्ति की चाह ही व्यक्ति को परमात्मा से मिलने की चाह की ओर ले जाती है। बंधन मन को दुख के सिवाय कुछ नहीं देता, आदतों का बंधन, कर्म का बंधन, अहंकार का बंधन, इच्छाओं का बंधन, अहंकार का बंधन, घृणा, क्रोध, ईर्ष्या, संदेह तथा दंभ जैसे विकारों का बंधन ! मानव के मन को कितनी बेड़ियों ने जकड़ रखा है, जो उसे दुख देती हैं पर सुख का भुलावा भी देती हैं। उसके पास आत्मा का अनंत सुख तो है नहीं, सो उसी छोटे से सुख से काम चलाना चाहता है, यह भुलाकर कि बड़ा सा दुख भी पीछे खड़ा है। स्वर्ग के लोभ में लोग नरक को चुन लेते हैं। फूलों के साथ काँटे भी मिल जाते हैं, मित्र ही शत्रु बन जाते हैं एक दिन और देह माटी बन जाती है। मृत्यु के द्वार से कोई नहीं बचता, एक दिन तो सभी को यहाँ से चले ही जाना है ! जहाँ जाना है वहाँ रहना जो सीख लेता है वह ध्यान में ही है ! आज आश्रम में रहने वाले  हाथी को भी देखा, सजा -सजाया हाथी बहुत अच्छा लग रहा था। मस्तक पर तिलक था, गले में घुंघरू थे और माला भी। कई बार गुरूजी उसे अपने हाथों से उसका आहार खिलाते हैं। वे आश्रम के मानव संसाधन विभाग की अध्यक्ष से भी मिले, अपनी रुचि बताते हुए एक ईमेल लिखने को कहा है। आश्रम के कैफे में पुस्तकों के रैक  को साफ करके किताबें ठीक से लगाईं, ऐसा ही लगा जैसे अपने घर को ही सहेज रहे हैं। आश्रम उनके घर जैसा ही है और आगे बनने भी वाला है, जब वे यहाँ नियमित काम करना शुरू कर देंगे। आज असमिया सखी का फोन आया वे लोग इसी माह आएंगे।


Tuesday, May 18, 2021

ओल्ड पाथ व्हाइट क्लाउड्स

नए वर्ष में पहली बार डायरी खोली है। मन में एक गहरी शांति है और कुछ भी लिखने जैसा नहीं लग रहा है। ‘कविता’ भी कई दिनों से नहीं लिखी। बुद्ध के बारे में दोपहर को पढ़ा, बहुत अच्छा लगा। ‘ओल्ड पाथ व्हाइट क्लाउड्स’ में गौतम बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं को कितनी खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है. इसमें बुद्धि के जीवन के अस्सी वर्षों को गांव के एक भैंस चराने वाले लड़के स्वस्ति, जो बाद में उनका शिष्य बन जाता है, के माध्यम से और आंशिक रूप से स्वयं बुद्ध के माध्यम से दर्शाया गया है. जीवन के कितने गहरे सत्यों का अनुभव बुद्ध ने किया था, बच्चे उनके प्रथम शिष्य थे। बच्चों को सत्य आसानी से अनुभव में आता है, क्योंकि उनके पास अहंकार की कोई बाधा नहीं होती, न ही वे हर बात को बुद्धि से तोलते हैं, वे सीधे आत्मा से ही अनुभव करते हैं। बुद्ध कहते हैं, जीवन में सभी कुछ परस्पर निर्भर है और नश्वर है; चीजें निरंतर बदल रही हैं। ध्यान की गहराई में जब तन, मन, भावना और विचार सब कुछ स्पष्ट दिखाई देते हैं तब उनके द्वारा प्रभावित होने का डर नहीं रहता। सत्य कभी बदलता नहीं और जगत एक सा रहता नहीं। इस बात को जब भीतर अनुभव कर लिया जाता है तो जीवन सरल हो जाता है। प्रेममय हो जाता है और सारा विषाद खो जाता है। वर्तमान में टिकना ही जागरण है, वर्तमान के क्षण में ही जीवन से मुलाकात हो सकती है। जैसे ही मन अतीत या भविष्य में जाता है, सत्य से नाता टूट जाता है। अतीत जा चुका वह मिथ्या है, भविष्य अभी आया नहीं, केवल यही क्षण सत्य है, इसमें पूरे होश के साथ जीना ही साधक का कर्तव्य है। ऊर्जा का संरक्षण तब ही संभव है।  


सम्यक वाणी साधक के लिए अति आवश्यक है, उतनी ही जितना सम्यक कर्म, सम्यक विचार और सम्यक ध्यान। भोजन भी साधक को समुचित मात्रा में लेना चाहिए, ऐसा भोजन जो सुपाच्य हो और हल्का हो। आज सुबह का ध्यान अत्यंत प्रभावशाली था, चीजें कितनी स्पष्ट दिखाई दे रही थीं। समझ जैसे  भीतर से स्वत: ही बह रही थी। मानव के भीतर कितनी समझ है और कितनी शांति, एक स्थिरता भरा अनंत आकाश है भीतर ! इसमें टिके रहना ही तो ध्यान है। 


आज भी ब्लॉग पर कुछ नहीं लिखा। कल से प्रारंभ करना है। आर्ट ऑफ लिविंग के एप में गुरुजी की लिखी कई किताबें हैं, वीडियो भी हैं, एक पूरा खजाना है। कल वे आश्रम जाएंगे। गुरुजी एक सप्ताह के लिए आश्रम में रहेंगे। वे स्वयं सेवक का कोर्स भी करने वाले हैं। आज भी दोपहर बाद बुद्ध की पुस्तक पढ़ी, कितनी अच्छी किताब है यह, उल्हास नगर की यात्रा के दौरान मासी के यहाँ यह किताब देखी थी, फिर यहाँ आकर मँगवाई। उसे उनका कृतज्ञ होना चाहिए। बुद्ध कहते हैं सभी कुछ आपस में जुड़ा है और नश्वर है। चीजें जैसी हैं वैसी ही उन्हें देखना आ जाए तो कहीं कोई तनाव, क्रोध, ईर्ष्या, घृणा, नकारात्मकता नहीं टिक सकती। स्वयं में टिककर ही वे आत्मा की शांति और आनंद का अनुभव कर सकते हैं। जो मुक्ति का वरण करता है उसे संसार का आकर्षण नहीं लुभाता। वह तट पर बैठे व्यक्ति की भांति लहरों का आना जाना देखता रहता है और स्वयं में तृप्त रहता है. 


आज गुरूजी को देखा, सुना. वर्षों पहले उन्हें टीवी में नियम से सुनती थी. कैसा सौभाग्य है कि उनके आश्रम में उनको सुनने का अवसर मिल रहा है. वह सरल शब्दों में सभी प्रश्नों के कितने सुंदर उत्तर देते हैं. सत्य में प्रतिष्ठित व्यक्ति कैसा होता है और सिद्ध कौन होता है, आत्म अनुभव कैसा होता है, ऐसे और इसी तरह के प्रश्नों के उत्तर कितनी सहजता से वह दे रहे थे. हिंदी व अंग्रेजी दोनों ही भाषाओँ पर उनकी गहरी पकड़ है और परमात्मा से अभिन्न हैं वह ! आज बुद्ध की किताब आगे पढ़ी, मैत्री और करुणा का कितना सुंदर वर्णन किया है और प्रेम का भी, हृदय कितनी गहरी विश्रांति का अनुभव कर रहा है. संसार के हर जीव के प्रति प्रेम का भाव मन में उदित हो रहा है, सभी तो अपने ही हैं, एक ही हैं, शाम को एक पुरानी सखी का फोन आया, कितना आश्चर्य है कि दोपहर को उसका स्मरण हो आया था और अंतर में प्रेम था. जून के प्रति भी भीतर कितना स्नेह प्रकटा था, उनका स्वभाव बहुत अच्छा है, शाम से उनका व्यवहार भी कितना प्रेमिल लग रहा है. गुरूजी की बात अक्षरशः सत्य सिद्ध हो रही है कि सभी एक ही चेतना से बने हैं ! कल विवाह की सालगिरह है , उससे भी पूर्व से वे एक-दूसरे से परिचित हैं, यानि साथ पुराना है.  


भगवान बुद्ध ने बच्चों को भी ध्यान सिखाया था. उनकी शिक्षा और समझ कितनी लाभप्रद है और कितनी गहरी. वे जीवन और मृत्यु के रहस्य को समझाते हैं, जीवन की नश्वरता और जगत के मिथ्या होने को भी, जैसे गुरूजी कहते हैं, अब तक का उनका जीवन एक स्वप्न से ज्यादा क्या है ? इतने वर्ष बीत गए कुछ वर्ष और हैं, यह देह एक दिन नष्ट हो जाएगी, उनके पहले कितने लोग चले गए, अब उनकी कोई खबर नहीं, वे भी एक दिन हवा हो जायेंगे तो क्यों न इसी क्षण स्वयं के कुछ न होने को स्वीकार कर लें. जीवन एक खेल से ज्यादा क्या है, कृष्ण की लीला या राम की लीला ... आज वे आश्रम गए थे. एच आर विभाग आज भी बन्द था, परसों भी देर हो जाने से कोई नहीं मिला था. कल जून के एक पुराने मित्र परिवार सहित आये, अपने साथ सुंदर सफेद बेला और लाल गुलाब के फूलों की मालाएं लेकर आये थे, एक-दूसरे को पहनने को कहा, तस्वीरें भी खींचीं. शाम को नन्हा व सोनू आये, गुलदाउदी के फूलों का एक गुलदस्ता, खजूर व मिठाई लाये.  लेखन कार्य अभी शुरू नहीं हुआ है, जो पुस्तक पढ़ रही है, उसके खत्म होने पर ही लिखना हो पायेगा. 

 

Wednesday, May 12, 2021

काबिनी के तट पर

 

अमिताभ बच्चन को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया है, टीवी पर सुना, उन्हें देश का दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार पद्म विभूषण भी मिला है. अभी कुछ देर पूर्व वे (बोट सफारी) नौका यात्रा से लौट कर आये हैं. दोपहर ढाई बजे पहले कार से ‘जंगल रिजॉर्ट’ गए, जहाँ अलग-अलग होटल या रिजॉर्ट में रहने वाले सभी यात्री एकत्र होते हैं और उन्हें सरकारी सफारी में ले जाया जाता है. चार नावें एक साथ रवाना हुईं. नदी का पाट बहुत चौड़ा था. आकाश में तेज सूरज  चमक रहा था. सभी को लाइफ जैकेट पहनने को दी गयीं और रोमांचक यात्रा शुरू हुई. पहले-पहल कई पक्षी दिखने आरंभ हुए. छोटे-बड़े पानी की सतह पर तैरते, उड़ते, डुबकी लगाते, लकड़ी के ठूंठ पर बैठे पक्षी ! एक जगह किंगफिशर दिखा, जब तक जून तस्वीर उतारते, वह उड़ गया. उसके नीले पंख देखकर नाव में बैठे छोटे-बड़े सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए. आगे बढ़े तो मोर दिखे जो नृत्य भी कर रहे थे. तट पर हरी घास पर विहार करते हिरनों के झुंड भी कई बार दिखे. एक काला सांभर, एक जंगली सूअर, बंदर, लंगूर तथा दूसरे तट पर स्नान करते हुए जंगली हाथियों का एक परिवार भी देखा. टाइगर दिख जाये,  इस आशा में नाव तट से कुछ दूरी पर रुकी रही, नाविक को लंगूर की आवाज सुनकर अंदेशा हुआ था कि टाइगर हो सकता है. लगभग तीन घंटे दोनों तटों पर स्थित जंगल में दूर से पशु-पक्षी दिखाने के बाद नौका वापस लौट आयी. प्रकृति का एक और सुंदर रूप निहारने का एक और अवसर अस्तित्व  ने उन्हें दिया है. कल सुबह जीप सफारी पर जाना है. आज सुबह जून ने यहाँ के स्वास्थ्य केंद्र में पीठ दर्द का इलाज करवाया. उसने पुस्तकालय से एक पुस्तक ली ‘देवी’ रमेश मेनन की लिखी हुई किताब. अभी कुछ ही देर में वे आज का सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने जाने वाले हैं. 


वर्ष का अंतिम दिन, शाम के पौने सात बजे हैं, अर्थात सवा पांच घंटे के बाद नया वर्ष आरम्भ हो जायेगा. नया वर्ष आने से यूं तो सभी जन उत्साहित हैं मगर क्रिकेटर व क्रिकेट को चाहने वाले कुछ विशेष ही प्रसन्न हैं क्योंकि अगले वर्ष में हर दिन ट्वेंटी-ट्वेंटी होगा. कहीं एक और चुटकुला पढ़ा था, इस वर्ष और अगले वर्ष में केवल उन्नीस-बीस का ही अंतर होगा, कुछ ज्यादा नहीं. वे कुछ देर पूर्व कपिला नदी पर बने बाँध के पीछे स्थित झील के किनारे-किनारे दूर तक टहल कर आये. हवा ठंडी थी और जल में लहरें उठ रही थीं , आकाश में चन्द्रमा उदित हो चुके थे. दो पक्षी तट के निकट थे, उनकी तस्वीर उतारें, यह सोचकर एक कदम आगे बढ़ाया तो वे उड़ गए. जल से दो-तीन फीट ऊँचे उड़ते हुए श्वेत पंछी अपनी भाषा में कुछ कहते हुए बहुत सुंदर लग रहे थे. उनकी उड़ान  गरिमापूर्ण थी और ध्वनि में एक आतुरता थी, शायद घर जाने की जल्दी; हल्का धुंधलका छा गया था. उसके पूर्व तट पर स्थित रेस्तरां में लोग शाम की चाय के लिए आ गए थे. दोपहर से ही कुछ  लोग  सफेद रस्सियों से बने झूलों में विश्राम कर रहे थे या किताब पढ़ रहे थे. दोपहर का भोजन देर से किया क्योंकि खुले वाहन में धूल भरे रास्तों पर तेज गति से यात्रा करने के कारण सारे वस्त्र व चेहरे धूल से भर गए थे, इसलिए स्नान के बाद ही नाश्ते के लिए आये. आज उन्हें टाइगर भी दिखे, लंगूर, हिरण, मोर व मंगूज भी. सुबह साढ़े पांच बजे सफारी का आरंभ हुआ। मौसम ठंडा था और जंगल में पक्षियों का कलरव निरंतर गूँज रहा था. वाहन चालक ने कई जगह  रुक कर टाइगर या अन्य पशुओं की प्रतीक्षा की. कई तस्वीरें भी उतारीं. काबिनी में आकर जंगल सफारी करना ही यात्रियों का एक मुख्य उद्देश्य होता है. 


कल रात्रि के सांस्कृतिक कार्यक्रम में मांड्या की एक टीम आयी थी जिसमें एक कलाकार पैंतीस किलो का एक विशेष छत्र अपने सिर पर लेकर नृत्य  कर रहा था, उसका नृत्य आश्चर्यजनक था. आज दोपहर को वे निकट स्थित गाँव में रजनीगन्धा के खेत देखने गए. उनके कहने पर परिवार में पहले महिला ने एक पौधे के कुछ बल्ब निकाल कर दिए फिर घर का आदमी आया और उसने भी दिए. उन्होंने पैसे देने चाहे पर उन्होंने मना कर दिया. वे मैसूर के बाजार में रजनीगंधा के फूल भेजते हैं, ऐसा बताया. दो छोटे बच्चे भी थे वहाँ, माँ-पिता को देखकर वे भी खेत में कुछ काम कर रहे थे. कल सुबह उन्होंने गाँव से ही आयी एक बैलगाड़ी पर आधे घण्टे का टूर किया. गाड़ीवान बहुत सीधा-सादा सा किशोर ही था. उसे गाना गाने को कहा तो शरमा गया. कर्नाटक का ग्रामीण जीवन इस यात्रा में बहुत निकट से देखने को मिला है. गांव साफ-सुथरे हैं और गाय-बकरियां आदि काफी स्वस्थ व ऊंची कद काठी के हैं. कल एक गाय के बछड़े को तेज गति से दौड़ते हुए देखा था, कितनी ऊर्जा थी उसमें. पिछली रात एक छोटा बालक भी इसी तरह स्टेज पर चढ़-उतर रहा था. बच्चे चाहे आदमी के हों या पशुओं के उनमें वैसी ही ताजगी होती है और उतनी ही ऊर्जा ! टीवी पर तेनालीराम शुरू हो गया है, भास्कर कह रहा है, शरीर में जब तक प्राण है और मन में चेतना, तब तक वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तत्पर रहेगा. 


जीवन वही है जो खुशियों से भरा हो, पुण्यशाली हो, संतुष्टि देने वाला हो. सुख लें औरों को सुख बाँटें. यदि वे अपने मन, वचन, कर्म से अन्यों को सुख देते हैं और निर्मल प्रेम बांटते हैं तो उन्हें भी वही कई गुना होकर मिलता है. नकारात्मकता को इस नए वर्ष में त्याग देना है, सत्य का संग करना है, मन की गति को सहज करना है. अध्यात्म की आज के समय में सभी को आवश्यकता है, उन्हें अपने संस्कारों को सरल करना है, ध्यान का अभ्यास बढ़ाना है. नियमित साधना करनी है. महान विचारों से स्वयं का श्रृंगार करना है. वर्ष की अंतिम रात्रि को सोने से पूर्व ऐसे ही संकल्प मन में उठ रहे थे. 


Wednesday, May 5, 2021

अंजीर का पेड़

सुबह पाँच बजे के कुछ देर बाद उठे वे। अंगुली में दर्द अब नहीं है। आज सिरके व पानी का इलाज किया, तीन बार, काफी असरकारक है। सूजन अभी भी है, दवा साथ में रखनी होगी जब परसों वे ‘काबिनी वन्‍य-जीव अभयारण्य’ के लिए रवाना होंगे। आज एनी का दूसरा भाग देखा, वह कविता सुनाकर अपनी टिकट के पैसे एकत्र करती है, मारिला उसकी कीमत जानती है तभी उसे वापस बुला लेती है। गाँव के दृश्य भी बहुत सुंदर हैं पर लोगों के दिल कितने कठोर हैं, कैसे अपशब्द वे उसके लिए बोलते हैं। दलितों ने न जाने सदियों तक ऐसे ही कटु वाक्य अपने लिए सुने होंगे भारत  में भी, आज भी उन्हें नीच जाति का कहकर अपमानित किया जाता है, उसे आश्चर्य होता है, ब्राह्मण स्वयं को वेदों का ज्ञाता मानते हुए भी इतना भेदभाव कैसे सहन करते रहे, जबकि वेदों में लिखा है, सभी में एक ही चेतन सत्ता है। आज सुडोकू  शीघ्र हल कर पाई, अभ्यास से कौन सा काम नहीं हो पाता ? परमात्मा की स्मृति जीवन को कैसी सुवास से भर देती है, आश्चर्य होता है कि जिन्हें इसकी खबर नहीं वे कैसे रहते होंगे ! 


आज नैनी ने गमले से कोई स्थानीय साग तोड़ कर दिया, जिसके बीज उसने पालक के बीजों के साथ ही डाले थे. पालक के पत्ते भी अगले हफ्ते तक तोड़ने लायक हो जायेंगे. जून कमरे में तथा सीढ़ियों पर रखे गमलों को बाहर गैरेज में रख रहे हैं, अगले चार दिन वे घर से बाहर रहेंगे तो बंद घर में उन्हें धूप-हवा-पानी नहीं मिल पायेगा. पिटूनिया के नन्हे पौधे भी निकल आये हैं, नैनी को दिन में एक बार आकर पानी डालने को को कहा  है. एनी का तीसरा भाग देखा, स्कूल में उसे कितनी दिक्कत होती है, अब वह पेड़ों-फूलों के साथ समय बिताती है, किताबें पढ़ती है, पर एक दिन उसका झूठ पकड़ा जायेगा. आज दो किताबें आयीं, ओल्ड पाथ विथ क्लाउड्स और द विज़डम ऑफ़ लाओत्से, दोनों ही यात्रा पर साथ ले जाएगी. बुद्ध के जीवन पर आधारित पहली पुस्तक अवश्य ही बहुत अच्छी होगी. लाओत्से का ज्ञान तो अनुपम है ही. आज मंझले भाई-भाभी से बात की, कल वे लोग पिताजी के पास जा रहे हैं, उनका दामाद भी साथ जा रहा है, उनसे मिल लेगा. आज सुबह पुराने हिंदी गीत सुने और शाम को शिव भजन, संगीत अंतर्मन को कितना सुकून देता है, यह जानते हुए भी वह केवल संगीत सुनने के लिए समय बहुत कम ही निकालती है. 


आज सुबह लगभग नौ बजे वे घर से चले थे, दोपहर एक बजे ‘रेड अर्थ रिजॉर्ट’ पहुँच गए. रास्ता बहुत अच्छा था, हरियाली, जंगल, खेत, झीलें और कर्नाटक के गावों से गुजरते हुए, गीत सुनते हुए आराम से कट गया. आते ही स्वादिष्ट भोजन मिल गया. उनकी कॉटेज की छत झोंपड़ी जैसी है भीतर से चटाई, बाहर से पुआल की.बाहर छोटा सा लॉन है तथा एक जाकुजि भी। कमरे में सभी आधुनिक सुविधाएँ हैं. लकड़ी का पुराने ढंग का फर्नीचर है, पीछे बालकनी है, जिसमें दो चमड़े की कुर्सियां रखी हुई हैं. सामने जंगल नुमा फलों का बगीचा है और कुछ ही दूरी पर कपिला नदी है, जिसे काबिनी नदी भी कहते हैं। एक बड़ा सा अंजीर का पेड़ भी है जिसपर सैकड़ों अंजीर के फल लगे हैं। उन्होंने एक घंटा विश्राम किया फिर नदी तक गए। तट पर हरी घास थी, जो दूर तक फैला है।  नन्हा व जून दो साइकिलें लेकर आए, बारी-बारी से सभी ने साइकिल चलायी। नदी की लहरों को देखते रहे जो सागर का सा आभास दे रही थीं। कुछ ही दूर पर बाँध बनाया गया है, इसलिए पानी काफी है और लहरें भी। नदी किनारे एक रेस्तरां है जिसके सामने पेड़ों से लटके कई झूले लगे हैं जिन्हें हेमॉक कहते हैं शायद। शाम की चाय उन्होंने वहीं बैठकर पी। कई तरह के पक्षी भी नदी के जल में मछलियाँ पकड़ने आए थे। हवा ठंडी थी, सो अंधेरा होते ही वे कमरे में आ गए। रात्रि आठ बजे सांस्कृतिक कार्यक्रम है, बोन फायर भी है। 


आज सुबह वे इस सुंदर स्थान में बसने वाले पक्षियों को देखने तथा प्राकृतिक भ्रमण के लिए पूरे समूह के साथ गए। पथ प्रदर्शक को स्थानीय पक्षियों के बारे में जो भी जानकारी थी, सभी के साथ बाँट रहा था। नन्हे ने अपने कैमरे से कई सुंदर पक्षियों की तस्वीरें उतारीं। रंग-बिरंगे पंछियों और नदी के स्वच्छ जल में  सूर्योदय के सुंदर दृश्य का प्रतिबिंब देखकर सभी प्रसन्न थे। वापस आकर नाश्ता किया फिर वहाँ से एक घंटे की दूरी पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर देखने गए। पुजारी राघवन एक किसान है और मंदिर में पूजा का काम भी करता है। उसने सबका नाम पूछा, राशि भी, और पूरे भाव से पूजा करवायी। मंदिर का इतिहास बताया। ढाई हजार साल पुराना शिवलिंग है यहाँ, नंदी भी सुंदर काले पत्थर का है। वापस आकर नन्हा व सोनू वापस चले गए, आठ बजे तक घर पहुँच जाएंगे। दो दिन बाद उन्हें लेने आएंगे। शाम को वे पुन नदी के तट पर गए, हवा ठंडी थी और आकाश पर बादल थे। एक घंटा टहल कर वे वापस लौट आए। आज के सांस्कृतिक कार्यक्रम में आदिवासी लोकनृत्य था। श्वेत वस्त्र पहने कई युवा व प्रौढ़ कलाकार बड़ी दक्षता के साथ विभिन्न स्वर निकालते हुए नृत्य कर रहे थे। दो व्यक्ति ढोल बजा रहे थे। नया साल आने में दो दिन शेष हैं, जिसमने उन्हें कर्नाटक के वन्य जीवन को निकट से देखने का अवसर मिलेगा।