सुबह के साढ़े आठ बजे हैं. दो दिनों के ‘बंद’ के बाद आज जून दफ्तर गए हैं. सरकार सिटिजनशिप बिल के द्वारा कुछ अन्य देशों के धर्म के आधार पर पीड़ित हिंदुओं को भारत की नागरिकता देना चाहती है, जो किसी तरह जान बचाकर भारत आते रहे हैं, बिना नागरिकता के रह रहे हैं. इसके खिलाफ ही था परसों का बंद. आज जो सफाई कर्मचारी आया है कह रहा है, उसके पूर्वजों को अंग्रेज बिहार से यहाँ असम लाये थे, पर अब तो यही उनका घर है. कल रात भर गर्जन-तर्जन के साथ वर्षा होती रही, कई बार बिजली चमकने व गड़गड़ाहट से नींद भी खुली. सुबह टहलने गए तो बारिश रुकी हुई थी, सड़क खाली थी, कुछ देर बाद ही सारी बत्तियां भी बुझ गयीं, लगभग अँधेरे में ही प्रातः भ्रमण हुआ. कल शाम को क्लब की मीटिंग थी, वर्तमान प्रेजिडेंट की अंतिम कमेटी मीटिंग. कुछ जिम्मेदारी उसे सौंपी गयी है, भावी प्रेसीडेंट ज्यादा व्यस्त है इसलिए. दुबई से लाये खजूर वह सबके लिए ले गयी थी. आज दोपहर मृणाल ज्योति जाना है नए वर्ष के कैलेंडर, डायरी और केक लेकर, हर वर्ष वहाँ टीचर्स को प्रतीक्षा रहती है. बाहर से झगड़ने की आवाजें आ रही हैं, पिछले घर में रहने वाली किशोरियां हैं जो पिता की बात जरा नहीं मानतीं, स्कूल जाना भी छोड़ दिया है. दुबई यात्रा पर दो कविताएं लिखीं, दो सखियों की विदाई कविताएं टाइप करनी हैं जिनके पतिदेव सेवा निवृत्त हो रहे हैं.
उस पुरानी डायरी में लिखा है, जीवन में कुछ पल भी अवसाद भरे क्यों हों, कुछ क्षण भी बोझिल क्यों हों. जिन पलों में मन की शांति भंग हो जाये, आँखों में अश्रु आ जाएँ. मुख से कोई शब्द न फूटे पर भीतर मौन भी रुचि न रहा हो. मन खुद से बात करे पर बाहर चुप्पी छायी हो. क्या ऐसा पहले भी कितनी बार नहीं हुआ होगा, इस जन्म में या पिछले जन्मों में. जीवन इसी तरह गिरता-पड़ता, रोता हुआ अपनी यात्रा तय करता आया है. ऐसे क्षण ही मन की दुर्बलता के, मन के अंधियारे के पोषक हैं. इन्हें दूर फेंक कर जलती हुई शिखा की तरह मुस्काना होगा. जीवन सुख का ही नाम है और सुख जीवन का. जिन पलों में आँखें हँसी हैं उन स्मृतियों का ऋण है मन पर, कुछ गीतों का और सपनों का भी. हँसते-गाते कुछ बच्चों का भी और सबसे बढ़कर इक धरती और इक सूरज का ऋण है उस पर !
मेरे गीत अमर कर दो ! इंसानी दिल को को ही यह फरियाद करने की जरूरत पड़ती है क्योंकि ऐसा करने से उसे सुकून मिलता है, पर ‘सूरज’ उसे कभी कहने की आवश्यकता नहीं हुई, वह जो नित नए गीत लिख जाता है आकाश पर, धरती पर भी ! अभी कुछ क्षणों पहले सूर्योदय का भव्य और रोमांचकारी दृश्य देखकर आयी है. मन जो पोर-पोर तक उस उस वक्त सूरज का कृतज्ञ था, ग्रे और श्वेत रंग की विशाल स्लेट पर जैसे कोई लाल चमकदार बिंदी सजा दे, और वह बिंदी उसके साथ-साथ चल रही थी. वह दो कदम आगे तो वह भी आगे पीछे तो वह भी पीछे ! कोई अन्य सजीव या निर्जीव वस्तु नहीं दिख रही थी. कोहरे की परत ने सभी पर आवरण कर दिया था, सिर्फ एक सूरज और दूसरी वह स्वयं...
जॉली और ड्यूक ! राजकुमारी और जॉली, सिल्विया और राजा, ये पात्र बचपन से उसके मन में सजीव हैं. जब भी ‘एक गीत की मौत’ रेडियो नाटक सुनती है, करुणा से भर जाता है मन ! जॉली और ड्यूक का अद्भुत ऊँचा प्रेम ! सोहराब मोदी की तीसरी फिल्म ‘पृथ्वी वल्लभ’ देखी आज. छोटे भाई ने एक घायल चिड़िया का बच्चा उसे लाकर दिया जैसे वह दम तोड़ने की प्रतीक्षा कर रहा था. हाथों में आते ही बिना पानी पिए चला गया, उसने ऐसा क्यों किया, पहले वह हिल-डुल रहा था फिर शांत... किसी की मौत अपने हाथों में.. पता भी नहीं चला एक सेकण्ड से भी कम समय में उसके प्राण निकल गए. उसने उसे मिट्टी में दबा दिया चंद आँसुओं के साथ !
स्वागत व आभार !
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