Monday, May 4, 2020

साबरमती आश्रम


शाम के साढ़े सात बजे हैं, जून होते तो इस समय वे भोजन कर  चुके होते और ठंडी हवा में टहल रहे होते. उसे अभी भूख का अहसास नहीं हो रहा है, सो डायरी उठा ली है. कुछ देर पहले एक पारा की काली बाड़ी का समूह पूजा का चंदा लेने आया, कल दो समूह आये थे. ज्यादा दिन नहीं शेष हैं दुर्गा पूजा के महोत्सव में, जो असम में भी उसी जोश से मनाई जाती है जितनी बंगाल में. इस बार अष्टमी की पूजा करके वे सिक्किम घूमने जा रहे हैं. आज शाम सेक्रेटरी ने कार्यक्रम के दिन बनने वाले भोजन के लिए सामान की लिस्ट भेज दी, जिसे वह कोऑपरेटिव में दे देगी, सामान एक दिन पहले ही लेंगे. उनका एक कमरा सदस्याओं को दिए जाने वाले उपहारों के कार्टन से भर गया है, धीरे-धीरे वे बांटे जा रहे हैं. अभी भी सौ से ऊपर ही शेष हैं. शाम को बच्चों की एक घंटे की फिल्म देखी, कल्पना की ऊँची उड़ानें थी उसमें. उससे पूर्व ‘फूलों की घाटी’ पर वर्षों बाद स्मृति के आधार पर एक कविता लिखी. एक बार फिर वहाँ जाना है. कॉलेज में, नहीं स्कूल में थी शायद ग्याहरवीं या बारहवीं में, विद्यार्थियों और अध्यापकों के साथ गयी थी. कितनी लंबी यात्रा उन्होंने पैदल तय की थी, बर्फ की शिलाओं पर चलकर, कभी नदी पार की, भीगते हुए, ओलों की मार झेलते हुए, एक गुफा में रहकर रात गुजारी थी, जहाँ बिस्तर के नाम पर बोरियाँ बिछी थीं. कितनी अनोखी यात्रा थी वह. फूलों की घाटी जब दूर से दिखी तो कदम वहीं थम गए थे, नदी की चमकती हुई एक पतली सी धारा निकट ही बह रही थी, जिसका जल स्फटिक सा शुद्ध था, शीतल स्पर्श था उसका, उसका वह प्रथम दर्शन आज तक याद है, जबकि यह बात दशकों पुरानी है. आज सुबह छोटी बहन से बात की, उसे ध्यान के अनुभव के बारे में बताया. उसने बताया वह चोर-सिपाही खेलना चाहती थी पर याद ही नहीं आया कैसे खेलते हैं यह खेल. बचपन में उन्होंने अनेकों बार खेला है. इस समय कितनी मीठी एक गन्ध महसूस हो रही है, चंपा के फूलों की सी मीठी गंध... परमात्मा अदृश्य रहकर अपनी उपस्थिति का इजहार करता रहता है. जून आज जयपुर पहुंच गए हैं. कल वह साबरमती आश्रम गए थे, तकली भी काती उन्होंने, अपनी गाडी में पूरी टीम को घुमाया जो उनके साथ गयी थी. अभी-अभी एक और पूजा का चंदा वाले लोग आये. 

आज का इतवार बीतने को है, रात्रि के पौने आठ बजे हैं. सुबह साढ़े चार बजे उठी, पानी आदि पीकर तैयार हुई तो बजाय टहलने जाने के ड्राइविंग का अभ्यास किया, दो-तीन  जगह रुककर उगते हुए सूर्य की तस्वीरें भी उतारीं। दो-तीन जगह गाड़ी बंद भी हुई, उस दुर्घटना के बाद भीतर डर बैठ गया है. वापस आकर टहलने गयी, लौटकर माली से काम करवाया. उसने गुलाबों की कटिंग की और लॉन की घास काटी. नाश्ते में उपमा बनायी, जून के नहीं रहने पर उसका मनपसन्द नाश्ता यही है. दोपहर को बच्चों के साथ ‘स्वच्छता अभियान’ का आयोजन किया. उन्होंने तीन-चार सड़कें चुनीं, हर बार से कूड़ा कम एकत्र हुआ, शायद लोग सजग हो रहे हैं. वापस आकर ‘स्वच्छता ही सेवा’ पर ड्राइंग बनवाई, बच्चों को बहुत आनंद आया, शाम के सवा पांच बजे वे लोग वापस गए. दोपहर को बंगाली सखी का फोन आया, उसने परसों माँ के श्राद्ध पर बुलाया है.  बड़ी ननद ने माँ-पिता जी के श्राद्ध के बारे में पूछा. उसने कहा, अमावस्या के दिन वे बच्चों को भोजन कराएंगे. इडली, सांबर, सिंधी कढ़ी, त्रिदाल और सूजी का हलवा, सभी कुछ दोनों को पसंद था. महीने का अंतिम दिन था सो उसने सभी का हिसाब कर दिया, पेपर वाले ने अभी बिल नहीं दिया. उसने सोचा, जितने लोग उनके जीवन में सहायक बनकर आते हैं, उनका शुक्रगुजार उन्हें होना चाहिए. एक तरह से परमात्मा ही सबका सहायक बनता है भिन्न-भिन्न रूपों में आकर, फिर भी लोग एक-दूसरे के कारण पीड़ित हैं. एक न एक दिन तो सबको समझना ही होगा, ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं. आज भी बच्चों की एक फिल्म देखी, आदिवासी बच्चे की कहानी, जो जंगल का राजा है, किसी भी जानवर को अपना मित्र बना लेता है. 

अक्तूबर का आरंभ हो गया है. सुबह प्रातः भ्रमण हुआ पर साधना का समय नहीं था, स्कूल जाना था. बच्चों को ध्यान का अभ्यास कराया, भीतर से शब्द जैसे अपने आप ही प्रगट हो रहे थे. वापस आकर अस्पताल जाना था, सन्डे योग कक्षा के  एक बच्चे को देखने, घर में बैठकर पढ़ाई कर रहा था, शायद चक्कर आ गया और गिर गया, घुटने का जोड़ हिल गया. ऐसा उसने बताया, पर उसे लगता है जरूर कोई और बात है, इन बच्चों के घरों में लड़ाई-झगड़ा होना आम बात है, जरूर पिटाई खाते समय गिरा होगा. आज से दीवाली की सफाई का काम भी आरम्भ कर दिया है. सबसे पहले पूजा कक्ष और फिर ध्यान कक्ष. गांधी जी भी स्वच्छता के बहुत बड़े हामी थी, कल उनका जन्मदिन है, डेढ़ सौवां जन्मदिन. साबरमती आश्रम में गाँधी जी पर चर्चा हो रही है. युवाओं में उनके प्रति जो रोष है, उसका भी जिक्र हुआ. गांधीजी के बारे में आज की पीढ़ी कितना कम जानती है, सुनी-सुनाई बातों से वे अपनी राय बना लेते हैं. 

2 comments:

  1. आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-३ हेतु नामित की गयी है। )

    'बुधवार' ०६ मई २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"

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  2. बहुत बहुत आभार !

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