Friday, December 6, 2019

आडवाणी जी की किताब





दोपहर के तीन बजने वाले  हैं. आज मौसम गर्म है, इस मौसम का पहला गर्म दिन ! माया के अधीन होकर ही आज दीदी से फोन करते वक्त पूछ लिया कि  कविता पढ़ी या नहीं, जीजाजी ने अपने स्वभाव के अनुरूप कह दिया, वह अपनी तारीफ सुनने के लिए कविता लिखती है क्या  ? कोई प्रशंसा करे तो भीतर जिसे ख़ुशी होती है अहंकार ही तो है वह, और यही कर्म का बन्धन है. फोन पर या आमने-सामने भी, किसी से बात करते समय बहुत सजग रहना होगा, अलबत्ता तो बात उतनी ही करनी चाहिए जितनी जरूरी हो. सुबह लॉन में घास पर नंगे पैरों चली, अच्छा लगा. माली को बुलाकर कुछ काम बताये पर उसने गेट के बाहर झाड़ू लगाने के सिवाय कुछ भी नहीं किया, शायद उसे काम पर जाना था.  इसी हफ्ते उन्हें यात्रा पर निकलना है. स्कूल से आकर नन्हे व सोनू से बात की. सोनू ने रोजे का महत्व बताया. यह उपवास राजा और रंक को एक धरातल पर ले आता है. अनुशासन सिखाता है, संकल्प शक्ति को बढ़ाता है. पूरे तीस दिन उसे यह करना है, यदि किसी दिन छूट जाये तो अगले वर्ष से पहले पूरा कर लेना है. दोपहर को भोजन में उसने आलू परांठा खाया, जून के न रहने पर पूरा भोजन बनना तो बन्द हो जाता है, अक्सर वह तहरी बनाती है. आज भी पंचदशी पर व्याख्यान सुना, बहुत विस्तार से इसमें तत्वज्ञान समझाया गया है.

ग्यारह बजने वाले हैं, जून आज आने वाले हैं. स्पीकिंग ट्री के एक लेख में स्वयं के विषय में एक जानकारी मिली. कल फोन पर भी ध्यान दिलाया गया था कि सम्मान पाने की आकांक्षा यदि भीतर अभी तक है तो हृदय फूलों के साथ काँटों से भी युक्त है. अपनी चिंता पहले सताये और दूसरा बाद में रहे तो साधना फलित नहीं हुई. वर्षों पहले वाणी के दोष से पीड़ित थी तो स्वयं को समझ कितनी बार सुधारा था, अब ऐसे ही भावों को अंतिम बिंदु तक शुद्ध करना है, कर्म तभी शुद्ध होंगे. जब पूरा का पूरा परमात्मा गुरूजी ने पकड़ा दिया है तो कैसा भय और कैसी सुरक्षा .. अब तो अंतिम पड़ाव नजदीक है. सत्य वही है जो सदा एक सा है, बदलने वाला मन और बदलना वाला तन तो सत्य नहीं हो सकता, पर ये दोनों उसी के विस्तार हैं, एक चेतना ही विभिन्न नाम-रूपों में अभिव्यक्त हो रही है, उस एक पर दृष्टि हो तो सभी एक ही विस्तार प्रतीत होंगे. उस एक का अनुभव विचार से भी किया जा सकता है और समाधि में भी. उस पर टिके रहना ही एक कला है, चेतना निरन्तर गतिमय है, चैतन्य अटल है. चैतन्य में स्थित होकर इस जगत को देखना है. उनका लाभ उसी में है और यदि इसके लिए अन्य हानियाँ भी उठानी पड़ें तो कोई बात नहीं.

परसों भूटान की यात्रा पर निकलना है. आज उसके विषय में कुछ लेख पढ़े. आडवाणी जी की पुस्तक आगे पढ़ी. आजादी के समय लाखों लोग मारे गए और लाखों बेघर हुए. विश्व के इतिहास में ऐसी दर्दनाक घटना शायद ही कभी घटी हो. राम और बुद्ध के देश में गाँधी जी के अहिंसा के सन्देश के बावजूद इतना रक्तपात, सोचकर भी भय भी लगता है. बचपन में उसे एक स्वप्न बार-बार आता था कि एक कोने में घेर कर किसी व्यक्ति को भीड़ मार रही है. सँकरी गलियाँ और और सटे हुए मकानों से गुजर कर भागना भी कितनी ही बार देखा होगा. अब तो गुरूकृपा से जीवन ही एक स्वप्न लगता है, भीतर एक ऐसा ठिकाना मिल गया है, जहाँ कुछ भी नहीं घटता, जो बस है.. जो ज्ञाता है और द्रष्टा ! आज सुबह साक्षी भाव काफी देर तक बना रहा. इन्द्रियों को अपना काम करते हुए देखा, मन भी अपना करता है और बुद्धि भी. आहार के अनुसार तीनों गुण भी घटते-बढ़ते हैं, फिर देह में हल्का व भारीपन लगता है.

2 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०८ -१२-२०१९ ) को "मैं वर्तमान की बेटी हूँ "(चर्चा अंक-३५४३) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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