नया वर्ष आरम्भ हुए तीन दिन बीत गये हैं, आज यह पीले रंग की
डायरी उसे मिली है. इतने वर्षों में नीली, भूरी, काली, मैरून रंग की डायरियां ही
मिलती रहीं, पहली बार पीले रंग के कवर वाली डायरी. रात्रि के सवा नौ बजने को हैं,
जून अभी तक क्लब से नहीं आये हैं. आज से उन्हें ह्यूस्टन से आये मेहमानों के साथ
कुछ समय बिताना होगा, शायद कुछ दिन तक रोज ही आने में देर हो. कल शाम भी वे क्लब
गये थे, तीन जनों का विदाई समारोह था. उनमें से एक की पत्नी लेडीज क्लब की सदस्या
भी हैं, वह उनके लिए कविता लिखेगी. सुबह सुहानी थी, जून को बाहर तक छोड़ कर आई तो
अपने आप ही हाथ कविता वाली डायरी की और बढ़ गये, कुछ पंक्तियाँ फूटने लगीं, जैसे
भूमि से समय आने पर अंकुर फूटने लगते हैं. उसे आश्चर्य होता है, शब्द भीतर कहाँ
सोये रहते हैं, कभी तो एक उड़ता हुआ ख्याल भी नहीं आता कि कुछ लिखे और कभी भावों का
दरिया बेसाख्ता बहने लगता है. शायद वे ही समझदारी का बाँध लगा देते हैं और हिसाबी
बुद्धि को भला कविता से क्या काम. दिगबोई क्लब पत्रिका के लिए लेख माँगा है, पहले
का लिखा ही कोई कल भेजेगी. उसने दो सखियों को नन्हे के विवाह की खबर दी, हो सकता
है बंगाली सखी इस खबर को सुनकर ही आये. जून ने रजिस्टर्ड विवाह के लिए फार्म आदि
भरकर जमा कर दिए हैं. इस महीने के अंत में वह और सोनू कानूनी रूप से एक पावन बंधन
में बंध जायेंगे. आज उसके जन्म के समय लिखी डायरी का एक पन्ना पढ़ा, कितना सरल था
तब जीवन. सेब का दाम चौदह रूपये प्रति किलो था और मंहगे लग रहे थे.
शाम के साढ़े पांच बजे हैं. चार बजे
जून आये थे जब किचन के प्लेटफार्म पर लगाने के लिए ठेले वाला काले रंग का ग्रेनाइट
लाया था. कल से घर में रंगाई-पुताई का काम शुरू हो रहा है, जो बीहू तक चलेगा. उसने
आंवला-एलोवेरा-लौकी का जूस बनाया था और खीरा-टमाटर का सूप, साथ में मौसमी फल, यानि
सेहत के लिए सभी मुफीद वस्तुएं ! सुबह धनिये वाले आलू बनाये थे, छोटे-छोटे सफेद आलू
इसी मौसम में मिलते हैं. उससे पूर्व स्वामी रामदेव व आचार्य बालकृष्ण को सुना. सन्यास
के बाईस वर्ष पूर्ण होने पर वे अपने संस्मरण सुना रहे थे. बेहद रोचक ढंग से
उन्होंने अपनी युवावस्था के, गुरूकुल के प्रवास के प्रसंग सुनाये.
कल रात तीन अद्भुत स्वप्न देखे. एक
में भूमि की गहराई से एक सुंदर शिवलिंग प्रकट होता हुआ दिखा, दूसरे में एक विशाल
पक्षी आसमान से उतरता हुआ दिखा, वह विशाल पंखों वाला था. तीसरे में घर में ही एक
कमरे में विशाल कमल ! स्वप्नों की दुनिया उसे सदा ही विस्मयों से भरती रही है.
वर्षों पहले एक कविता लिखी थी कि ईश्वर कितना भी अदृश्य रहे पर स्वप्नों में वह
छुपा हुआ नहीं रह पाता, उसका वैभव प्रकट हो ही जाता है. किसी अदृश्य लोक से ही आते
हैं स्वप्न...दोपहर को ब्लॉग पर लिखा. पुराने दिनों की डायरी पढ़ी, नन्हे के बचपन
की बातें ! नन्हे के जीवन में एक नया मोड़ आ रहा है, शायद इसलिए वह उसका बचपन याद
कर रही है, मन की थाह कौन लगा सकता है, उसके अवचेतन में क्या चल रहा है, जो अचानक भीतर
वात्सल्य भाव उमड़ रहा है.
आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २३०० वीं बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ...
ReplyDeleteछुटती नहीं है मुँह से ये काफ़िर लगी हुई - 2300 वीं ब्लॉग बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत बहुत आभार सलिल जी !
Deleteसूचना के लिए धन्यवाद .
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