Thursday, May 3, 2018

दिव्यांगोंं का समाधान



सुबह चार बजे नींद खुल गयी, कुछ देर यूँही बैठी रही, सुबह का वक्त कितना पावन लगता है, गुरुजी कहते हैं, देवता भ्रमण करते हैं उस वक्त, किसी ध्यानस्थ को देखते ही उसकी सहायता करने आ जाते हैं, सो अव्यक्त का चिन्तन किया कुछ पल, भीतर एक शून्य है, जहाँ जाते ही शब्द छूट जाते हैं. टहलने गये तो कोहरा घना था. दस बजे हैं सुबह के, अभी यात्रा पर निकलने में दो घंटे शेष हैं, अभी-अभी स्मरण हो आया क्यों न नन्हे के मित्र यानि दूल्हे के लिए एक कविता लिखे. उसके जन्म से पूर्व से नाता है उससे, नन्हा सा था कुछ ही दिनों का जब नन्हे का जन्म हुआ, साथ-साथ बड़े हुए, कुछ वर्षों के लिए स्कूल अलग थे फिर पांच वर्षों तक दोनों एक ही स्कूल में पढ़े. कितनी पार्टियाँ कितनी पिकनिक एक साथ मनायीं. आज उसके जीवन का विशेष दिन आया है. उसने झटपट कुछ पंक्तियाँ लिखीं, जून को मेल कर दीं, ताकि आते समय वह प्रिंट ले आयें.

आज चार दिन बाद कलम उठाया है. मंगल को वे कोलकाता गये थे, बृहस्पतिवार को विवाह था, शुक्र को वापस लौटे. अगले दिन यानि कल शनिवार को बंगाली सखी की बिटिया और दामाद को घर पर बुलाया. कल ही मृणाल ज्योति का एक कार्यक्रम था. ‘उत्तर-पूर्व पेरेंट मीट’, कई लोगों से मिलने का अवसर मिला. विशेष बच्चों के लिए काम करने वाली दो महिलाएं उनके घर पर रहीं. बाहर से आये ‘परिवार’ संस्था के लोगों ने कई उपयोगी जानकारियां उन्हें दीं, सरकार की तरफ से चलाई जाने वाली घरौंदा स्कीम तथा स्किल इण्डिया के बारे में भी. दिव्यांग बच्चों के माता-पिताओं को एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए आवाज उठानी होगी, तभी कुछ सम्भव होगा. कुछ बच्चों व माताओं से भी बात हुई. उन्हें जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, वे उसकी कल्पना से बाहर हैं. किन्तु यदि समाज का सहयोग मिले तो उनकी जीवन यात्रा कुछ सरल हो जाती है. मृणाल ज्योति के संस्थापक संतुष्ट नजर आ रहे थे. सभी के सहयोग से उनका यह कार्यक्रम सफल रहा. अध्यापकों ने भी बहुत काम किया. आज रविवार है, जून आज मोरान गये थे, अभी कुछ देर पहले लौटे हैं. असमिया सखी का फोन आया, वे लोग विवाह के बाद घर पहुंच गये हैं. बेटा-बहू एक हफ्ते बाद लौटेंगे.  

सुबह के दस बजे ही बाहर तेज धूप है पर घर के भीतर एक स्वेटर पहनकर भी ठंड महसूस हो रही थी. रात को नींद में रजाई भी भारी लग रही थी और मन कल दोपहर में हुई घटनाओं को दोहरा रहा था. आज सुबह स्कूल का चिन्तन चल रहा था. जैसे हवा का काम है बहना और सूरज का काम है प्रकाश और ताप देना, वैसे ही मन का काम है विचार करना. विचारों की नदी के रुख को किधर मोड़ना है यह तो एक साधक के हाथ में होना ही चाहिए. मन जब तक समाधान नहीं पा लेता किसी समस्या का तब तक उधेड़बुन में लगा रहता है. कितना सुंदर शब्द है यह ‘उधेड़बुन’ स्वयं ही बन कर उधेड़ता है, स्वयं ही संकल्प जगाता है और विकल्प उठाता है. मन को जब तक नये-नये मार्गों पर नहीं ले जायेंगे तब तक वह उसी पुरानी चाल से चलता रहेगा. नयापन, नयी माटी, नई राहें पाकर मन की धारा सदा जीवंत बनी रहती है. उनके मस्तिष्क में अपार सम्भावनाएं हैं. नये-नये पथ बनाने होंगे इसे सदा सरस बनाये रखने के लिए ! आज छोटी बहन के विवाह की वर्षगांठ है और बड़े भांजे की बड़ी बिटिया का जन्मदिन. दोनों को शुभकामनायें भेजनी हैं.  

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