Monday, May 22, 2017

कविता और नृत्य


नन्हा आज चला गया, अभी तो रास्ते में ही होगा, रात तक घर पहुंचेगा. पिताजी को उसके आने से काफी अच्छा लगा, उनके स्वास्थ्य में सुधार हुआ है. उन्हें भी उसके रहने से अस्पताल की ड्यूटी में कुछ राहत मिली. सहायक की अनुपस्थिति में भी जून को रात को वहाँ नहीं सोना पड़ा. इस बार वह काफी शांत लगा. आज से सहायक सोयेगा जब तक उसका कोई अन्य काम नहीं निकल आता.
आज मौसम अच्छा है, मन भी सुवासित है, ऊर्जा का प्रस्फुरण हो रहा है. ऊर्जा का ही खेल है यह जगत. हर पल उनके भीतर से ऊर्जा का संचरण हो रहा है, सकारात्मक भी और नकारात्मक भी...जैसी ऊर्जा वे भीतर निर्मित करते हैं, वैसी ही बाहर भेजते हैं और वही उन्हें पुनः मिलती है. एक चक्र का निर्माण होता है. वे सद्भावनाएँ भेजते हैं तो वही उन्हें मिलती हैं. भीतर कठोर हो जाते हैं तो वही कठोरता कई गुनी होकर उन्हें मिलती है..ऊर्जा का अनंत भंडार उनके चारों और फैला हुआ है, वे चाहे जितनी ऊर्जा उसमें से ले लें. वह कभी समाप्त होने वाली नहीं है..प्रेम अनंत है..आनन्द अनंत है..शांति अनंत है..सुख अनंत है...और ज्ञान अनंत है...लुटा रहा है वह खुले दिल से..जितना भर ले कोई अपनी झोली में..जीवन एक अनमोल उपहार है जो परमात्मा ने स्वयं को व्यक्त करने के लिए उन्हें दिया है. वह प्रकट हो रहा है नृत्य की किसी मुद्रा में..चित्र में..कविता में और प्रकृति के हजार-हजार रूपों में..वह..
आज फिर ‘वर्षा’ रानी अपना जौहर दिखाने आयी है. कल दिन भर पिताजी लगभग सोये ही रहे, आज सुबह-सुबह जगे थे, नाश्ता भी किया, उनका नया घर तैयार हो रहा है. अगले महीने उन्हें वहाँ जाना है, जून का कनाडा का कार्यक्रम स्थगित होने जा रहा है, सम्भवतः उन्हीं दिनों वे शिफ्ट करेंगे. कल रात कोई स्वप्न देखा हो, याद नहीं आता पर वे तो दिन भर में ही न जाने कितने स्वप्न देखते रहते हैं. ‘समाधि’ के अतिरिक्त शेष स्वप्न ही तो है. एक ही सत्ता है जो प्रतिबिम्बित हो रही है भिन्न-भिन्न रूपों में. ‘महादेव’ में पार्वती को समाधि का अनुभव होने वाला है. सद्गुरू की कृपा से उसे भी इसी जन्म में समाधि का अनुभव अवश्य होगा. नैनी की बिटिया यहीं पास में खेल रही है, पूछ रही है कि आप क्या कर रही है !
पिछले दो दिन कुछ नहीं लिखा, आज अभी अस्पताल जाना है, पिताजी पहले से काफी ठीक हैं, उठकर बैठे भी, कहा, पोते की शादी देखनी है, इन्सान की जिजीविषा कितनी प्रबल है, वह हर कठिनाई को पार कर जीना चाहती है, कल नन्हे को कहा तो है कि वह तैयार हो तो जल्दी ही मंगनी की रस्म हो सके. कौन जानता है, भविष्य में क्या लिखा है ? परमात्मा हर वक्त उनके साथ है, बल्कि वही तो है..
पौने तीन बजे हैं, मौसम अच्छा है, ठंडी हवा बह रही है, अभी कुछ देर पहले उसका एक विद्यार्थी पढ़कर गया है. कह रहा था, बहुत दिनों से पापा से मार नहीं खायी, मार खाकर ऊर्जा आती है, अजीब बच्चा है, उसकी लिखाई खराब है, थोडा आलसी है, उसकी माँ ने ज्यादा लाड़-प्यार से उसे ऐसा बना दिया है, और इधर उसका मन भी ज्यादा लाड़-प्यार से उसे ही दिक् कर रहा है. पुराने संस्कार ढीठ बच्चे की तरह होते हैं, कहना ही नहीं मानते, उसे व्यस्त रहकर उनकी उपेक्षा रखनी है और कुछ नहीं हटाने से वे और भी जिद्दी हो सकते हैं. साक्षी भाव से उन्हें देखना भर है, अच्छा ! ऐसा भी होता है, कहकर आश्चर्य व्यक्त करना है..आज पुस्तकालय भी जाना है, बंगाली सखी को अपनी बेटी की किताबें पुस्तकालय में देनी हैं. आज फिर बिजली नहीं है. कल से वे अपने नये घर में कुछ सामान शिफ्ट कर रहे हैं.   


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