Wednesday, October 12, 2016

लाल चौक पर तिरंगा

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कल गणतन्त्र दिवस है. बीजेपी काश्मीर में लाल चौक पर तिरंगा फहराना चाहती है. उत्तरपूर्व के कई उग्रवादी संगठनों ने इसे न मनाने का फैसला किया है. उनकी अपनी समझ है. अलगाववादी गुट हजारों वर्षों के इतिहास को झुठला कैसे सकते हैं, वे ही जानें. जून ने सुबह उसका नाम डेंटिस्ट के पास लिखवा दिया था और गाड़ी भी भेज दी थी. वह बहुत ध्यान रखते हैं उसका. कल वे पहले नेहरु मैदान में फिर टीवी पर परेड देखेंगे, घर पर भी तिरंगा फहराएंगे. सुबह रामदेवजी का जोशीला भाषण सुना. देश जाग रहा है, परिवर्तन की लहर सब ओर दिखाई दे रही है, देश के लिए एक भावना लोगों के मनों में घर कर रही है. 

लॉन में हरी घास पर धरा का कोमल स्पर्श पाकर ( मकर आसन में ) लिखना एक नितांत सुंदर अनुभव है, जब कुनकुनी धूप बरस रही हो. स्वर्गिक, अलौकिक अनुभव कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. फूलों की कतारें हैं, हरियाली है और है सन्नाटा जिसे चीरता है पंछियों का कलरव! आज सुबह भी सुंदर वचन सुने, ब्रह्म मुहूर्त में आत्मा के विषय में सुनना भी प्रभु की अनंत कृपा का फल है. उन्हें कल एक फिल्म देखने जाना है, नन्हे के एक मित्र की कंपनी ने मॉल तथा उसमें स्थित पिक्चर हॉल का रिव्यू करने का काम उन्हें सौंपा है, टिकट के पैसे वे देंगे. कल उसने स्वर्गीय फुफेरे भाई की भेजी कविता ब्लॉग पर डाली. कल वह बहुत याद आ रहा था. बचपन में वह बहुत गोरा था, पारदर्शी त्वचा और नाजुक भी बहुत था. खांसता रहता था, सब उसे बुड्ढा कहते था. बड़ा हुआ तो किशोरावस्था भी देर से आयी, इलाज करने के बाद, लम्बा बहुत हो गया और दुबला भी..उसने मन ही मन प्रार्थना की जहाँ भी वह होगा उसे शुभकामनायें पहुंच ही जाएँगी.

आज सुबह ध्यान में सागर और लहर का संबंध स्पष्ट हुआ. वे एक अनायास उठी हुई लहर से ज्यादा कुछ भी नहीं, इस अनंत ब्रहमांड के सामने एक धूल के कण से भी छोटे हैं, पर जब वे उस सागर के साथ अपनी एकता का अनुभव कर लेते हैं, तब अहंकार उन्हें दुःख नहीं देता, जैसे बंधन उनका ही बनाया हुआ है, मुक्ति भी उन्हें ही खोजनी है. जानने के बाद ही पता चलता है कि वे कुछ भी नहीं जानते. मिलने के बाद ही पता चलता है कि अभी कितने दूर हैं. वर्तमान में रहें तो कोई बात ही नहीं करने के लिए, ज्ञान में रहें तो कुछ कहने के लिए बचता ही नहीं, ध्यान में रहें तो जगत के लिए कहने लायक क्या शेष रह जाता है. सेवा के सिवा करने को भी क्या है ! 

फरवरी का पहला दिन ! इसी महीने पिताजी यहाँ आ रहे हैं, जून देहली जा रहे हैं, उन्हीं के साथ आयेंगे. आज ब्लॉग पर हास्य कविताएँ पोस्ट कीं. कुछ लोगों की कविताएँ उसे समझ नहीं आतीं, जटिल मन की जटिल कविताएँ ! ध्यान में मन सरल हो जाता है, सहज जैसे प्रकृति के शांत रूप, लेकिन प्रकृति कभी विकराल रूप भी धर लेती है. आज एक सखी की बिटिया का जन्मदिन है, उसने कविता लिखी, बड़ी भांजी, छोटा भांजा, भाभी-भैया व एक सखी के लिए भी, इसी महीने सभी का खास दिन है. जून आफिस से प्रिंट करके लायेंगे. उसके सिर में हल्का सा भारीपन है, दोपहर से लिखने में लगी है, शायद इसीलिए..अभी फूलों का गुलदस्ता बनाना है, जून भी आने वाले होंगे. 




1 comment:

  1. राष्ट्रीय ध्वज का फहराना और न फहराना, अब देशप्रेम नहीं, राजनीति का मुद्दा बन गया है. इसलिए किसे दोष दें और किसकी सराहना करें, बहुत मुश्किल हो गया है समझना.
    ब्लॉग पर कुछ कविताएँ इतनी जटिल होती हैं कि सचमुच समझना मुश्किल हो जाता है. कई बार तो ऐसा भी लाता है कि लिखने वाले को समझ आया होगा कि किस मानसिकता के अंतर्गत लिखी थी कविता. ध्यान इन सारी ग्रंथियों और गांठों को खोल देता है. मैंने भी महसूस किया है.

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