Sunday, October 13, 2013

सिक्किम की सैर


फिर एक अन्तराल.. आजकल सुबह रजाई से निकलने का मन नहीं होता, ठंड बढ़ गयी है. नन्हा भी आजकल उठने में आनाकानी करता है, यूँ तो वह हर मौसम में करता है. ‘जागरण’ भी नहीं देख पाती और कोई अच्छी किताब भी नहीं पढ़ी है. कविता भी नहीं लिखी. पढ़ना-लिखना आजकल  बस अख़बार या इक्का-दुक्का पत्रिकाएँ पढ़ने तक ही सीमित रह गया है. क्लब मीट आने वाली है, पत्रिका के लिए मांगें तो प्रेरित होकर वह झट लिख सकती है, उसने सोचा ही था कि एक फोन आया क्लब की कमेटी के एक सदस्य का. इसी महीने वे लोग दार्जिलिंग जाने की बात सोच रहे हैं. साल का अंतिम महीना शुरू हुए पांच दिन बीत गये हैं, कुछ हफ्तों बाद नया साल आ जायेगा और इसी तरह साल दर साल गुजरते जायेंगे, नन्हा बड़ा हो जायेगा और...

छोटी बहन और मंझले भाई के पत्र आए हैं, जिनमें जवाब देने लायक बाते भी हैं. बहन ने अपनी जिस समस्या का जिक्र किया है वह उसके साथ भी है हूबहू वही. भाई ने अपने तबादले का जिक्र किया है. श्रीनगर में हुए बम विस्फोट में फारुख अब्दुल्ला बाल-बाल बचे, शांति और विश्वास (जो लोगों की शक्ति पर निर्भर है) की जीत होगी और हिंसा चाहे कितना भयानक रूप धारण कर ले एक दिन उसे मरना होगा क्योंकि अमन पसंद आदमी की जिन्दगी में उसकी कोई जगह नहीं. जून और नन्हा British comedy देखने के लिए तैयार हैं और वह भी कुछ देर पहले शुरू हुए सिर के दर्द को भूलकर बस हँसना चाहती है.

जून ने फोन पर बताया, २२ तारीख को उनकी सीट रिजर्व हो गयी है यानि वे दार्जिलिंग और सिक्किम जा ही रहे हैं. एक सहयात्री परिवार भी उनके साथ जा रहा है. बहुत दिनों बाद डीडी पर कवि सम्मेलन का एक अंश सुना ‘अंगड़ाई न लो चैत का आलस्य बिखर जायेगा’. अच्छी कविता थी. किसी सखी से एक किताब लायी थी, अभी शुरू भी नहीं की है, उसमें रूचि ही खत्म हो गयी है. वह बातें व्यवहारिक नहीं लगतीं या कहें कि उन पर चलना बहुत मुश्किल है. आजकल उसका अध्यात्मिक ग्राफ निचली तरफ जा रहा है फिर एक दिन कोई झटका लगेगा और ऊपर की ओर चढ़ना शुरू होगा. कभी रुककर, थम कर आराम से बैठकर अंतर में झांके तो पता चले कि वहाँ कितना सूनापन भर गया है. लेकिन दुनियादारी के प्रलोभनों में पड़ा मन कहीं विश्राम लेना ही नहीं चाहता, हर वक्त किसी न किसी उधेड़बुन में लगा ही रहता है तो भला जरूरत ही कहाँ महसूस होगी उसे तारनहार की. एक तरह से यह भी ठीक है, हर वक्त काम में लगे रहना, खाली न बैठना भी राजयोग का एक लक्ष्ण है, और उसे काम करना, करते-करते थक जाना अच्छा लगता है. जैसे कल टीटी की wall प्रैक्टिस करते समय महसूस हो रहा था.

पीटीवी पर एक आर्टिस्ट नजीर के बनाये खूबसूरत लैंडस्केप देखे, जिनसे नजरें हटाना मुश्किल था, इतने सुंदर चित्र भी बनाये जा सकते हैं, इन्सान भी एक जादूगर से कम नहीं. आज सुबह समाचर सुनते वक्त ख्याल आया कि कहीं अचानक वह मर जाये तो इन डायरियों का क्या होगा, जून इन्हें संभाल कर तो रखेंगे या फिर यूँ ही किसी के हाथ लग जाएँ और...कल दोपहर जून एक बड़ा सा पार्सल लाये, सलाद काटने के लिए SUZI CHEF नाम की एक hand operated मशीन भी थी  उसमें, सलाद अच्छा कटता है उसमें, अभी और कुछ तो काटकर देखा नहीं है. इस बार पिकनिक पर जाने का विशेष उत्साह है, सर्दियां ज्यादा खुशनुमा हैं इस बार, धूप खिली रहती है. इस समय भी लॉन में धूप पीछे पीठ को छूती हुई निकल रही है. कल शाम गुलाब के पौधों से मिलकर झड़ चुके गुलाबों की टहनियों को काटा, गुलदाउदी के पौधों को बांधा, पानी दिया. नन्हे के लिए नाईट ड्रेस सिली, जून और नन्हे दोनों ने ही तारीफ करके उसका हौसला बढ़ाया है.





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