Monday, January 23, 2012

दिगबोई में पिकनिक


आज भी सुबह हल्की फुहार पड़ रही थी. सुबह के नौ बजते बजते बंद हो गई, इसी वक्त वह लिखती है. आज विविध भारती पर गीत भी लगा लिये हैं, यहाँ आने के बाद पहली बार, विवाह पूर्व बिना रेडियो पर गाने सुने कोई दिन नहीं बीतता था. आज शनिवार है, साप्ताहिक खत लिखने का दिन, किताब पढ़ने का और दूर तक घूमने जाने का, क्योंकि शनिवार को जून का हाफ़ डे होता है, यानि आधी छुट्टी सारी...बचपन में स्कूल में वे ऐसे ही कहा करते थे. आज सुबह उसे फील्ड ड्यूटी पर कथलगुडी जाना है.
इतवार को वे पिकनिक पर गए, सुबह उठे तो मौसम ठीक था. वे पूरे एक दर्जन थे यानि छह जोड़े. सभी उन्हीं के घर पर एकत्र हुए फिर चले अपनी-अपनी बाइक पर, उनका गंतव्य था दिगबोई तेल क्षेत्र. तेल क्षेत्र में प्रवेश नहीं मिला पहले से अनुमति लेनी पड़ती है, वे दिगबोई गोल्फ क्लब जाने के लिये मुड़े ही थे कि तेज वर्षा होने लगी. नूना भी सभी के साथ बिल्कुल ही भीग गयी. रास्ते में एक झोपड़ी में पनाह ली पर कोई लाभ नहीं हुआ, वर्षा बहुत तेज थी. ठंड के कारण भी सिहरन हो रही थी. गले में भी चुभन होने लगी. किसी तरह क्लब पहुँचे और गैस चूल्हे के सामने कपड़े सुखाये. शाम को साढ़े पांच बजे वे घर लौटे.

पिकनिक से लौट कर वे शाम को जल्दी सोने चले गए. थकान भी थी और तबीयत भी ठीक नहीं लग रही थी. नूना सुबह उठी तो लगा अब ठीक है. आराम करने की हिदायत देकर जून तो कार्यालय चला गया. उसका कुछ भी करने को मन नहीं हुआ.. नमक पानी से गरारा भी नहीं, थोड़ा ताप भी था दस बजे उठी, खाना बनाया. सारी दोपहरAnnie Jeagen की किताब पढ़ती रही, बहुत भायी, बहुत महान थी वह और महानतर था उसका लक्ष्य. पढ़ते-पढ़ते लगा कि कभी-कभी वह कितना अन्याय करती है उसके प्रति अर्थात अपने प्रति. वह हर तरह से उसे खुश रखता है, आज भी दो बार देखने आया, वे अस्पताल भी गए. अब ताप कम है, रात को सोते वक्त नूना ने सोचा कि सुबह तक वह बिल्कुल ठीक हो जाये तो कितना अच्छा हो, अस्वस्थ होना कितना खलता है अब, जून को सुबह का बचा भोजन ही खाना पड़ा.

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