पौने ग्यारह बजे हैं सुबह के, घर में सफेदी आदि का काम शुरू
हो गया है. मौसम अच्छा है, खिली हुई धूप बगीचे को और भी सुंदर बना रही है. लेकिन
कमरे में भीतर तक महसूस होने वाली ठंड भी है. आज डहेलिया में पहला लाल पुष्प खिला है.
किचन में ग्रेनाईट की स्लैब लगाने का काम हो रहा है. कितना शोर करती है यह मशीन और
काटते हुए जो धूल उड़ती है उससे दीवारों व फर्श के साथ-साथ मजदूरों के वस्त्र तथा
चेहरों पर धूल की कितनी मोटी परत चिपक गयी है. आज वे किचन का इस्तेमाल नहीं कर
पाएंगे. कल सुबह धनबाद की यात्रा पर निकलना है. कल रात एक पुराना मित्र परिवार अपने
मेहमानों के साथ भोजन पर आया था, उन्हें दो कविताएँ भी सुनायीं. जून ने बहुत ठहाके
भी लगाये, वह कल बेहद खुश थे. कालेज के जमाने की बातें हुईं. सखी की मेहमान के लिए
उसने एक कविता लिखी, अभी टाइप करनी है, छोटी बहन की फरमाइश वाली कविता भी लिखनी
है. कल उसके विवाह की पच्चीसवीं वर्षगांठ है, वह चाहती है उसके जीवन के मुख्य
पड़ावों का जिक्र करती हुई एक कविता हो. शाम को क्लब जाना है, मुख्य अधिकारी का
विदाई समारोह है.
तीन बजे हैं दोपहर के, अभी कुछ देर पहले ही सलीम ने कहा, जो मुस्लिम है और
मजदूरों का मुखिया है, पंडाल भी वही लगाएगा और खाना भी वही बनाएगा. उस का अर्थ था
कि घर में जो विवाह होने जा रहा है उसके लिए. सुबह कम्पनी से आये चेनमैन ने पूछा
था, शादी कब है, उसने कहा, अभी देर है. उन्हें कैसे बताये कि अभी तो विवाह केवल
कोर्ट में होगा बाद में ही रीतिरिवाज वाली शादी होगी और वह भी बंगलूरू में. यहाँ
पर एक पार्टी ही होगी. छोटे भाई के यहाँ भी लड़के वाले आ रहे हैं, बड़ी भतीजी के रिश्ते
की बात तय हो चुकी है, विवाह की तारीख आदि तय होगी. जून आज दिगबोई गये थे, दोपहर
भोजन पर नहीं आये. उसने इस मौसम में पहली बार गाँठ गोभी वाले चावल बनाये थे, उनके
लिए रखे थे पर मजदूरों ने जब कहा, वे ठेकेदार से पैसे न मिलने के कारण भोजन करने
ही नहीं गये तो उन्हें दे दिए. उसे आश्चर्य हुआ ठेकेदार आखिर ऐसे किस काम में उलझ
गया कि उसे मजदूरों के भोजन का भी ध्यान नहीं रहा. आज जून के एक सहकर्मी के पिताजी
द्वारा भेजी पत्रिका ज्ञानोदय पढ़ती रही, अब उस तरह का साहित्य उसे ज्यादा आकर्षित
नहीं करता. अध्यात्म से जुड़े विषय ही मन को भाते हैं. आज मृणाल ज्योति जाना था पर
कुछ अव्यवस्था के चलते गाड़ी नहीं मिली. पिछले दिनों कम्पनी में कुछ अकुशल मजदूरों
की भर्ती की गयी, जिन्हें काम नहीं मिला वे विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, तथा तोड़-फोड़
पर उतर आये हैं. कल क्लब के वार्षिक सम्मेलन भी हो गया. जून उसे अपने साथ धनबाद ले
जा रहे हैं, जहाँ उन्हें एक सेमिनार में भाग लेना है, और यही नहीं, वह चाहते हैं
कि वह कार्यक्रम में भी उनके साथ सम्मिलित हो. वह अलग ही मिट्टी के बने हैं, दृढ़
और कर्मशील ! वे दोनों एकदूसरे के मित्र बन गये हैं अब. कल रात को कई बार भीतर के
शोर और सन्नाटे को अनुभव किया, बिजली के बटन को जैसे कोई ऑन-ऑफ करे, वैसे ही भीतर
संसार व भगवान दिखते हैं.
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 28/01/2019 की बुलेटिन, " १२० वीं जयंती पर फ़ील्ड मार्शल करिअप्पा को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शिवम जी !
ReplyDelete