अगस्त आरम्भ हुए तीन दिन बीत गये और डायरी खोले पांच
दिन. पिछले दिनों ऐसी व्यस्तता रही कि कलम कहाँ पड़ी है, इसका भी ख्याल नहीं आया.
उस दिन कमेटी मीटिंग में जो भोजन परोसा गया उसे किसी भी तरह स्वास्थ्यवर्धक नहीं
कह सकते. घर आकर रस्क, दूध व आम खाए जो जून ने शीघ्रता से लाकर दिये. अगले दिन विशेष बच्चों के स्कूल गयी, बारह
बजे लौटी, तीन बजे से कुछ पहले वे तिनसुकिया गये, लौटे तो शाम को जून के एक मित्र
सहकर्मी के जन्मदिन की पार्टी में चले गये. अगला दिन रविवार का था. उसी रात को
आर्ट ऑफ़ लिविंग के एक टीचर का फोन आया. रूद्र पूजा के लिए एक स्वामी जी तिनसुकिया
आ गये हैं तथा सोमवार की रात्रि उनके यहाँ आयेंगे. सोम की सुबह स्कूल जाना था,
दोपहर को मेहमान कक्ष साफ करवाया. एक घंटा राखियाँ बनाने में लगाया. मंगल व बुध
स्वामी जी रहे. पूजा में शामिल होने सेंटर भी गयी. आज सुबह वह चले गये सो इस तरह
आज समय मिला है डायरी खोलने का. शाम को योग सत्र में आठ-दस महिलाएं आ रही हैं,
अच्छा लगता है समूह में साधना करना. कल दोपहर महिला क्लब में सिलाई कला से जुड़े एक
प्रोजेक्ट का कार्यक्रम भी है. ‘एक जीवन एक कहानी’ में आजकल जून की पिछली
अस्वस्थता का जिक्र आ रहा है, आजकल उनके घुटने का दर्द कम हुआ है.
आज टीवी पर मुरली सुनी, कृष्ण की मुरली नहीं, वह तो तब सुनी थी जब एओएल के
कोर्स में वह अनुभव हुआ था और नियमित ध्यान करना आरम्भ किया था. यह मुरली तो एक ब्रह्मकुमारी
द्वारा पढ़ी गयी थी. उसके अनुसार वह आत्मा है, जो परमधाम से अवतरित हुई है और विश्व
के लिए कल्याणकारी है. यह स्मृति उन्हें सदा सजग बनाये रखेगी और सर्व शक्तियों का
स्फुरण स्वतः ही होता रहेगा. उन्हें चलते-फिरते प्रकाश स्रोत बनकर सेवा करनी है,
कितना उच्च भाव है यह. गुरूजी भी कहते हैं, वे सब ऊर्जा का केंद्र हैं, अग्नि
स्वरूप हैं. परमात्मा के ज्ञान और प्रेम के वे अधिकारी हैं. वे उस राजा के बच्चे
हैं, उसके दिल के तख्त पर आसीन रहते हैं. उस तख्त से नीचे नहीं उतरना है उन्हें.
स्वयं को चुम्बक जैसा बनाना है ताकि शांति और प्रेम की तरंगे फैलने लगें. जैसे जल
से तृषा बुझती है, वैसे आत्मा के लिए शांति और प्रेम ही जल है जिससे उसकी तृषा बुझ
सकती है. वे यदि शांति और प्रेम में टिक जाएँ तो किरणें अपने आप ही प्रसरित होने
लगेंगी. स्वयं यदि कोई तृप्त है तो सम्पर्क में आने वाले भी तृप्ति का अनुभव
करेंगे. याद की यात्रा में निरंतर रहना है उन्हें. निरन्तरता ही चाहिए. शक्तिशाली
संकल्प द्वारा भी उन्हें सेवा का कार्य करना है. परमात्मा चाहते हैं आत्मा उनके
जैसी हो जाये. दोनों का लक्ष्य एकत्व ही है.
यह समय सुनने का समय है. प्रकृति पुकार रही है, आये दिन की प्राकृतिक आपदाएं यही
तो बता रही हैं. व्यक्ति पुकार रहे हैं. यह पुकार सुनने में नहीं आती क्योंकि वे
छोटी-छोटी बातों में लगे हैं. आत्म स्मृति में रहकर ही उनकी उन्नति हो सकती है,
इससे उनकी ऊर्जा का सदुपयोग होने लगता है. परमात्मा से कैसे मिलें इस प्रतीक्षा
काल को भूलकर अब तो उसे अपने सम्मुख पाना है. जैसे गुलाब के साथ कांटा होता है
वैसे ही ये तकलीफें परमात्मा के और निकट जाने का साधन ही बनती हैं.
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