Thursday, September 27, 2018

महालया अमावस्या


आज महालया है. नवरात्रि का समय संधिकाल है, संधि बेला है. ग्रीष्म खत्म होने को है सर्दियां शुरू होने को हैं. गुरूजी कह रहे हैं, इन दिनों में यदि कोई श्रद्धा से उपासना करेगा, तो गहन तृप्ति के रूप में उसका लाभ उसे अवश्य मिलेगा. इष्ट के प्रति एकनिष्ठ होकर यदि कोई नवरात्रि का अनुष्ठान करता है, भोजन को प्रसाद मानकर ग्रहण करता है, तब सहज आनंद के रूप में उसे पूजन का लाभ मिलेगा. मानव की देह मिली है तो उसका पूर्णलाभ लेना होगा. भावना और श्रद्धापूर्वक किया गया नवरात्रि पूजन उन्हें तृप्त कर देता है. साधक को ज्ञान प्राप्त करना है फिर सब कुछ छोड़कर शरण में आ जाना है.
आज प्रथम नवरात्र है. मन में एक विचित्र शांति का अनुभव हो रहा है. मन जैसे पिघलना चाहता है. अस्तित्त्व के चरणों में बह जाना चाहता है. परमात्मा इतना उदार है और अपार है उसकी कृपा..उसके प्रति प्रेम की हल्की सी किरण भी सूरज की खबर ले आती है एक न एक दिन.
आज मौसम गर्म है. नैनी घर की सफाई में लगी है, अभी यह हफ्ता लगेगा पूरा घर साफ होने में. आज तीसरा नवरात्र है. दोपहर को अयोध्या काण्ड में आगे लिखना आरम्भ किया पर पूरा नहीं किया. कुछ देर पतंजलि योग सूत्र पर एक सखी से कल लाई किताब पढ़ी. जून की यूरोप से लायी काफी पी.
जीवन को सुंदर बनाने के लिए दो वस्तुओं की आवश्यकता होती है. ज्ञान तथा ऊर्जा, इसीलिए वे शिव और शक्ति दोनों की आराधना करते हैं. दुर्गापूजा के नौ दिनों में प्रथम तीन दिनों में काली की पूजा होती है, जो तमोगुण का प्रतीक है, फिर अगले तीन दिन लक्ष्मी की तथा अंत में सरस्वती की, जो रज तथा सत गुण की प्रतीक हैं. उनके भीतर की ऊर्जा तीनों गुणों से प्रभावित होती है ! कभी वे तमोगुण के शिकार हो जाते हैं, तो कभी सतो या रजोगुण से. ज्ञान की देवी सरस्वती की कृपा तभी होगी जब तमोगुण से मुक्त होकर वे क्रियाशील बनते हैं, सौन्दर्य का सृजन करते हैं. अस्तित्त्व प्रतिपल अपना सौन्दर्य लुटा रहा है, वही सृजन उसका ज्ञान है, ज्ञान से ही प्रकटा है और ज्ञान इसके बाद भी अक्ष्क्षुण है. जड़ता को हटाकर क्रियाशील होने के बाद जो विश्रांति का अनुभव होता है, वही तृप्त करने वाला है !
आज स्कूल जाना है. ग्रैंड पेरेंट्स डे पर कुछ बातें जो उस दिन लिखी थीं, उनके साथ बांटने के लिए. बातें जो वे सब जानते हैं पर समय आने पर याद नहीं रहतीं. दादा-दादी के महत्व को कौन नकार सकता है एक बच्चे के जीवन में, पर यह बात माता-पिता को समझ में नहीं आती. उन्हें लगता है बच्चे पर पूर्ण रूप से उनका ही अधिकार है और उसकी परवरिश से जुड़ा हर फैसला केवल वे ही ले सकते हैं. जब समझ आती है तब बहुत देर हो चुकी होती है. जिसकी बुद्धि खुल गयी है, जो सभी को अपना अंश मानता है, वह तो प्रेम के किसी भी रूप का सम्मान करेगा. प्रेम बाँटने और और प्रेम स्वीकारने में कंजूसी करते हैं जो, वे उस महान प्रेम को महसूस नहीं कर पाएंगे. माता-पिता के प्रति कृतज्ञता जब तक भीतर महसूस नहीं होगी, तब तक उनके स्नेह की धारा में वे भीग नहीं सकते. जीवन उन्हें चारों और से पोषित करना चाहता है. उनके पूर्वजों का रक्त उनके भीतर बह रहा है. वे बहुत संकुचित दृष्टिकोण रखते हैं और तात्कालिक हानि-लाभ को देखते हैं, अपने अतीत और भविष्य की तरफ जिसकी नजर होगी, वह पूर्वजों का सम्मान करेगा. आज की उसकी वक्तृता यकीनन दिल से ही बोली जाएगी. कागज पर लिखा वहीं का वहीं रह जायेगा.

No comments:

Post a Comment