आज टीवी पर सुंदर वचन सुने, “इन्द्रियां
प्रतिक्षण जीर्ण हो रही हैं, आयु नष्ट होती जा रही है और मृत्यु सामने खड़ी है, फिर
भी उन्हें दुखदायी सांसारिक भोगों में सुख भास रहा है. जन्म, मृत्यु और जरा संबंधी
दुखों से सदा आक्रांत होकर संसार में मनुष्य पकाया जा रहा है तो भी वह पाप से
उद्व्गिन नहीं हो रहा है. जैसे कछुआ अपनी इन्द्रियों को समेट लेता है, वैसे ही
साधक कामनाओं को संकुचित करके रजोगुण रहित हो जाता है.’’
“भोग में रोग का भय है, ऊँचे कुल में पतन का भय है.
मान में दीनता का, रूप में वृद्धावस्था का तथा देह में काल का भय है. संसार में
सभी वस्तुएं भयपूर्ण हैं, भय से रहित तो केवल वैराग्य ही है.”
उनके शुभ और अशुभ कर्मों के एकमात्र साक्षी वे स्वयं
ही हैं, क्योंकि कर्मों के पीछे की भावना ही उन्हें शुभ अथवा अशुभ बनाती है. मनसा,
वाचा, कर्मणा किये गये हर कर्म का फल उन्हें ही मिलने वाला है. अज्ञान दशा में जो
कर्म उन्होंने आज तक किये हैं, उनका फल सुख या दुःख के रूप में सम्मुख आने ही वाला
है. उनको सम अवस्था में रहकर ही काटा जा सकता है, अन्यथा नये कर्मों का जाल खड़ा हो
जायेगा. जैसे यदि कोई अपनी आदत या संस्कार के कारण दुःख पा चुका है, पुनः वही
स्थिति आने पर उसे समता बनाये रखनी है न कि पूर्व की भांति उसे दोहराना है, तब तो
वह उस संस्कार को दृढ ही करता जायेगा. जहाँ कहीं भी आसक्ति दिखाई दे तो उसमें दोष
दृष्टि करके स्वयं को उससे मुक्त करना चाहिए, क्योंकि जहाँ वह परमसुख का स्रोत है,
वहाँ कुछ भी नहीं है, कोई विचार कोई भाव भी वहाँ प्रवेश नहीं पा सकता. उनकी सारी
आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं होती रहती है, अनावश्यक का ही त्याग करना है.
शाम के सात बजे हैं. आज स्वतन्त्रता दिवस है. सुबह वे
समय से उठे, नेहरू मैदान जाने से पूर्व प्रधानमन्त्री का भाषण सुना. अस्पताल में
मरीजों को मिठाई दी. कम्पनी में बहुत उत्साह से आज का दिन मनाया गया. घर में भी झंडा
फहराया और लड्डू बांटे. प्रधानमन्त्री का भाषण उत्साहवर्धक था. उन्होंने पाकिस्तान
में बढ़ते असंतोष का भी जिक्र किया. नैनी ने आज सुबह पुत्र के जन्मदिन के केक का
फोटो दिखाया. तीन परतों में सजा था, जिसपर एक बच्चे का पुतला था तथा एक गेंद. केक
बनाकर सजाने के एक से एक नायाब तरीके निकल रहे हैं. आजकल नेट से देखकर लोग काफी
सृजनशील हो गये हैं. शाम को वे यात्रा की तैयारी के लिए खरीदारी करने गये. सुबह
ध्यान में गुरूमाँ के मुद्रा ध्यान का सीडी लगाया, अंत में एक सखी के साथ नृत्य
किया, उसे भी आनन्द आया होगा.
साढ़े आठ बजे हैं. अज उसने स्वयं से वादा किया है कि वह
सहजता से शुद्ध अंग्रेजी भाषा में बोलने का अभ्यास करेगी, और किसी के भी सम्मुख इस
भाषा में बोलने से झिझकेगी नहीं. परमात्मा उसके साथ है उसने कल्पना में एक विशाल
समूह के सामने स्वयं को अंग्रेजी में भाषण करते हुए देखा, उसे लगा वह कर सकती है.
अगले हफ्ते उसे एक कोर्स के लिए गोहाटी जाना है. वहाँ उसे समूह मे काम करने का
अवसर भी मिलने वाला है.
आज जो पीड़ा है, कल वही हँसी बनेगी. विनाश की महाक्रीड़ा
से ही नई सृष्टि जगेगी ! ब्रह्मा ने सृष्टि की, विष्णु पालन करते हैं और शिव संहार
! हर अश्रु छिपाए है भीतर, एक मुक्त हँसी का कलरव स्वर ! आज एक परिचिता के घर गयी
पहली बार, उसने अपनी सीडी दिखाई, सुनाई. असमिया, हिंदी, तथा बंगाली गाना सुनाया जो
अपनी माँ के लिए लिखा है तथा फिल्माया है. उसकी माँ ने भी पूरा साथ दिया है. कितनी
ऊर्जा है उसमें. चित्रकला का भी पांच वर्षीय डिप्लोमा कोर्स कर रही है, अंतिम वर्ष
में है. लिखती भी है, संगीत भी देती है और गाती भी है. केक भी बनाती है. परमात्मा
ने उसे सब कुछ दिया है, सुंदर भी है, पर फिर भी संतुष्ट नहीं. इन्सान को कितना भी
मिल जाये, वह तृप्त होना नहीं जनता. तृप्ति केवल और केवल आत्मा में जाकर ही मिलती है.
जो भी वे होना चाहते है, वे हैं ही, यह
जानकर ही मन शांत होकर बैठ जाता है.
बहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
ReplyDelete