Monday, April 3, 2017

विश्वकर्मा पूजा


दोपहर के तीन बजे हैं, कितना सन्नाटा है चारों ओर. सुबह तेज वर्षा होती रही घंटों तक पर अब मौसम खुल गया है. नैनी शायद कहीं गयी है, घर पर ताला लगा है, वरना बर्तनों की आवाजें या उसके बच्चों की आवाजें गूंज रही होतीं. जून को कल रात राग-द्वेष के बारे में बताया, पता नहीं कितना समझ में आया. जब तक कोई बात अपने ही भीतर से न उपजे समझ में नहीं आती, उसके साथ तो ऐसा ही होता है, शास्त्रों में लिखी बातें कितने दिनों बाद जब वैसी की वैसी भीतर से आती हैं तो लगता है, अच्छा ! तो यह अर्थ था. बहुत दिनों से कोई कविता नहीं लिखी है. मन होता है कुछ लिखे दिल की गहराई से ..कल पिताजी व छोटे भाई से बात हुई, उसका ब्लॉग पढ़ा उन्होंने. तीन सखियों से भी फोन पर हाल-चाल लिया. एक का जन्मदिन आने वाला है, जिसकी माँ आजकल यहाँ आयी हुई हैं. उसके साथ हुए वार्तालाप के आधार पर कुछ लिखेगी.

आज जून के दफ्तर जाना है, विश्वकर्मा पूजा के उपलक्ष में वहीं दोपहर को भोज भी है. यहीं आकर उन्हें इस पूजा के बार में संज्ञान हुआ. परसों गणेश पूजा है, दो तीन जगह पंडाल लगेंगे, वे लोग बीहू ताली में अवश्य पूजा देखने जाते हैं, जो दक्षिण भारतीय आयोजित करते हैं. उसकी उड़िया सखी के यहाँ भी बड़ा आयोजन होता है. जून के दफ्तर में कुछ समस्याएं चल रही हैं. एक तो ड्राइवर की समस्या है, जो अब तक आया ही नहीं, वैसे आज के दिन यहाँ ड्राइवरों को पीने का एक बहाना भी मिल जाता है. पूजा का अर्थ यहाँ मस्तीभरा आलम और प्रीतिभोज है. आज भी पानी बरस रहा है.

 कुछ देर पूर्व एक कविता पोस्ट की. जून ने अपनी डायरी का एक पन्ना दिखाया जिसमें नूना का जिक्र  था. उसकी डायरी में जून का जिक्र कितना हुआ था उन वर्षों में शायद इसी कारण...या वैसे ही..अच्छा लगा. अगले हफ्ते उन्हें गोवा जाना है. उसने भारत के इस छोटे से प्रदेश के बारे में कितना सुना और पढ़ा है. वर्षों पहले एक बार वे इस राज्य की यात्रा कर भी चुके हैं.

आज हफ्तों बाद डायरी लिख रही है. यात्रा अच्छी रही, ब्लॉग पर लिखने के लिए यात्रा विवरण भी वह प्रतिदिन डायरी में नोट करती रही. वापस आकर कुछ दिन घर को व्यवस्थित करने में लग गये. कुछ दिन यूँ ही निकल गये, अब जब भीतर कोई है नहीं तो कोरे कागज ही रहेंगे न आज की गाथा कहने के लिए..जब कोई सचमुच खो जाता है तो ‘वह’ सचमुच आ जाता है. यहाँ शायद की कोई गुंजाईश नहीं..जब वह एक बार आ जाता है तो बस आ ही जाता है...

कई दिनों के बाद वह आज झूले पर बैठी है. हवा मंद है पर शीतल है. एक झींगुर मधुर गा रहा है. गुड़हल, गुलाब और मुसंडा खिले हैं. जून दिल्ली में हैं, कल लौटेंगे. आज दीदी-जीजाजी की शादी की वर्षगांठ है, वे पिताजी व भाई-भाभी से मिलने घर आये हैं, रात भी रुकेंगे. उसने सोचा एक न एक दिन वे यहाँ भी आयेंगे उनके अगले बड़े घर में. आज स्टोर की सफाई की, दीवाली का समय आने वाला है, सफाई का समय. घर से पुराना सामान निकलने का समय जो वे इस्तेमाल नहीं करते. आज सुबह अच्छा अनुभव हुआ, अब शब्दों में नहीं समाता, अब कविता में भी नहीं आता..अब तो जैसे वह रग-रग में समा गया है, उसे अलग से देखे ऐसा सम्भव नहीं है. गोवा का लेख पिछले दो दिन नहीं लिख पाई, आज लिखेगी.




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