आज शाम को क्लब में मीटिंग है. खुद से परिचय जितना गाढ़ा होता
जाता है, पता चलता है वे मालिक हैं पर नौकरों की भूमिका निभाते रहते हैं. मन व
बुद्धि उनकी सुविधा के लिए ही तो हैं पर वे वही बन जाते हैं. जल जैसे स्वच्छता
करने के लिए है, पर जल यदि गंदा हो तो सफाई नहीं कर पाता है, वैसे ही मन तो जगत
में प्रेम, शांति व आनन्द बिखेरने के लिए हैं पर जो मन क्रोध बिखेरता है वह तो वतावरण
को दूषित कर देता है. परमात्मा की निकटता का यही तो अर्थ है कि उनका मन परमात्मा
के गुणों को ही प्रोजेक्ट करे न कि अहंकार के साथियों को जो दुःख, क्रोध, ईर्ष्या
आदि हैं. इस समय दोपहर के दो बजे हैं. पिताजी सो रहे हैं, उनकी पीठ में दर्द है. आज
सुबह अस्पताल गये थे सेंक लिया व ट्रेक्शन भी. आज बिजली नहीं है. हल्की हवा चल रही
है. अब धूप तीखी हो गयी है. उसमें बैठा नहीं जाता. जरबेरा व गुलाब अपनी मस्ती में
खिले हैं. कंचन में भी तीन-चार फूल आ गये हैं.
आज जून पिताजी को
लेकर तिनसुकिया गये हैं, एकाध घंटे में वापस आएंगे. सुबह एक परिचिता का फोन आया,
वह विदेश में रहने वाली अपनी विवाहिता पुत्री को लेकर दोपहर बाद आयेंगी. सुबह वह
एक सखी के होनहार पुत्र से मिलने गयी, उसने दो परीक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त
किया है, उसे NASA की तरफ से बुलावा आया है. कल टीवी के कार्यक्रम वाह ! क्या बात
है ! में एक कर्नल ने शानदार प्रस्तुति सुनी. लोगों के नामों को लेकर उसने एक
लम्बी कविता बनाई और हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया. जीवन कितने विभिन्न रंगों
से मिलकर बना है.
आज वह पीले गुड़हल का
एक पौधा लायी है. शाम को एक शादी में जाना है, नन्हे के बचपन का मित्र. जून के
दफ्तर में एक कर्मचारी की माँ का देहांत हो गया था, उनके यहाँ भी जाना है. विरोधी
तत्व कैसे जीवन में साथ-साथ चलते हैं. द्वन्द्वों के पार हुए बिना मुक्ति नहीं है.
आज हिंदी में शमशेर बहादुर सिंह का लिखा पाठ पढ़ाया, थोडा क्लिष्ट है.
आज वेलेंटाईन डे है.
जून कल उसके लिए एक ड्रेस तथा एक जूता लाये हैं, ढेर सारे फल भी, रसभरी, बेर, अनार,
अमरूद और सेब...इस समय ग्यारह बजे हैं, पिताजी बाहर माली को कुछ काम बता रहे हैं.
अब उनका स्वस्थ्य कुछ ठीक है. उनमें दृढ़ इच्छा शक्ति है, दया है, दूसरों का दुःख
समझते हैं, कुछ भावुक हैं, हृदय प्रेम से भरा है, बात-बात पर आंसू निकल आते हैं और
वह स्वयं कैसी होना चाहती है, शुद्ध,
बुद्ध, मुक्त चेतना, जो सदा परमात्मा का सान्निध्य चाहती है. निज स्वभाव से जो खुशबू
फैलती है, वह शाश्वत है, जो पद, यश या धन के कारण प्रसिद्ध होता है तो कारण हट
जाने पर वह स्वयं को दुर्बल मान सकता है, लेकिन स्वभाव में टिका व्यक्ति सदा ही
प्रसन्न रहता है और उसके जीवन से ही ऐसी सुगंध निकलती है कि आस-पास का वातावरण
सुवासित हो जाता है. कल उसे सरस्वती पूजा के लिए स्कूल जाना है. जून कर भेज देंगे,
अब उन्हें भी कार मिल गयी है. नन्हे ने ‘अनुगूँज’
शब्द का अर्थ दो-तीन पंक्तियों में अंग्रेजी भाषा में लिखकर भेजा है, बहुत अच्छा
लिखा है, लेडिज क्लब की पत्रिका का यह नाम नूना ने चुना था. संपादिका को भेज दिया
है. आजकल शाम को वह ‘योग वशिष्ठ’ पढ़ती है, शायद इसी का असर हो, पिताजी आस्था देखने
लगे हैं.
उसे लगा मृणाल
ज्योति में की सरस्वती पूजा उसके जीवन की पहली सच्ची पूजा थी, आज सुबह चढ़ाया
प्रसाद भी शायद पहला प्रसाद था जो वास्तव में ईश्वर को अर्पित करके मिला था. दोपहर
को बंगाली सखी के यहाँ गयी वहाँ भी पूजा का आयोजन किया गया था. उसका फूलों का
बगीचा बहुत सुंदर है. उन्हें भी इस वर्ष बड़ा घर मिल जायेगा फिर वे भी ढेर सारे फूल
उगायेंगे. दोपहर बाद रोज गार्डन गयी, अपने आप में डूबने का सबसे अच्छा तरीका है
टहलना !
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