Tuesday, April 18, 2017

सुबह की सैर


आज सुबह टहलने गयी तो पैरों में अचानक ताकत भर गयी थी. कुछ देर दौड़ कर बाकी वक्त तेज चाल से भ्रमण पूर्ण किया. घर आकर विश्राम किया, मन खाली था. जहाँ कुछ भी नहीं रहता, सारे अनुभव चुक जाते हैं, वहीं कैवल्य है, वहीं निर्वाण है. सारे अनुभव मन को ही होते हैं. मन एक मदारी है, वह ढेर से खेल दिखाए चले जाता है, लुभाए चले जाता है. लेकिन जहाँ कुछ भी नहीं रहता, दूसरा कोई रहता ही नहीं, मुक्ति है. गुरूजी कहते हैं, अच्छे से अच्छा अनुभव भी बाहर ही है. वहाँ द्वैत है, अब कुछ देखना नहीं, कुछ पाना नहीं, कुछ जानना नहीं, बस होना है..सहज अपने आप में पूर्ण..मौन ! इस मौन के बाद जो शब्द उठेंगे वह जीवन को उत्सव बना देगें..अर्थात जीवन को उत्सव बना देखने की कामना तो भीतर है ही..कैसा चतुर है मन..एक ही कामना में सब कुछ मांग लेता है और फिर अलग हो जाता है..

आज का भ्रमणकाल कल से अलग था. हरियाली, फूलों की लाली, मनहर मनभावन सुख वाली. नवम्बर की सुबह कितनी सुहानी होती है. आकाश पर रंगों की अनोखी चित्रकारी, वातावरण में हल्की सी ठंडक..पंछियों का कलरव और हवा इतनी हल्की सी..भीतर कोई प्रेरणादायक वचन बोलने लगा. बहुत सारे संशय दूर हो गये. उन्हें साक्षी भाव रहना है, पूर्व संस्कार वश यदि कोई विकार जगता है तो साक्षी भाव में रहने के कारण उसका कोई असर नहीं होता. कैसी अनोखी शांति है इस ज्ञान में. शाम को मीटिंग है, कल एक सखी का जन्मदिन है. सभी कुछ कितना सरल है. वे अपनी पूर्व धारणाओं और पूर्वाग्रहों के कारण जटिल बना लेते हैं. जीवन एक गुलाब की तरह जीना चाहिए या एक संत की तरह..निर्लिप्त..सदा मुक्त !

आज बदली है, ठंडी हवा भी बह रही है. कल आखिर कसाब को फांसी हो गयी. उसकी कहानी इस जन्म की तो खत्म हो गयी, लेकिन अगले जन्म में उसे जाना ही होगा. सुबह साढ़े तीन बजे ही नींद खुल गयी, उठी नहीं, एक स्वप्न चलने लगा. नन्हे को देखा, कल रात माँ, पुत्र के मिलन के जो डायलाग सुने थे, वे भी कहे, सुने, तभी भीतर विचार आया God loves fun वह परमात्मा उन्हें नाटक करते देखकर कितना हँसता न होगा ! सुबह वे साथ ही घूमने गये, बातचीत हुई ज्यादा, घूमना हुआ कम, वापस आये तो माली आ गया था.





3 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20 - 04 - 2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2621 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. बहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !

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