पूर्ण जगत को
ब्रह्ममय देखने की विधि मुरारीबापू ‘तुलसी’ के माध्यम से बता रहे हैं. उनकी कथा अद्भुत
भावों से भर देती है. अहंकार, गर्व, दर्प, अभिमान या अविश्वास जब जीवन में हों तो
दुःख आने ही वाला है, रावण को उसका अहंकार ही ले डूबा. बापू कह रहे हैं, अहंकार मोह
के कारण है और मोह रूपी वृक्ष की जड़ें
हैं, अज्ञान, मूढ़ता, अभाव, कमी तथा अनादर. इसका तना है जड़ता अर्थात अपनी मूढ़ता से टस
से मस न होना. भ्रांतियां ही उसकी शाखाएं हैं, संशय, कुतर्क, भ्रमित चित्तवृत्ति
ही डालियाँ हैं, चंचलता ही पत्ते हैं. दुःख ही इस वृक्ष का फूल है. सद्गुरू की कृपा
से ही यह सम्भव है कि कोई अहंकार शून्य हो सके. भीतर जो रजोगुण है, वह संतों की
चरणरज से ही मिटता है. कल रात ऐसा लगा सोई और जग गयी. जून और नन्हा कल आश्रम गये
थे, गुरूजी भी वहाँ थे, भेंट भी हो गयी. उन्होंने जून से पूछा, हैप्पी ? जून का
विश्वास दृढ़तर होता जा रहा है. नन्हे का विश्वास भी समय आने पर दृढ होगा, उसे
परमात्मा स्वरूप सद्गुरू के दर्शन हुए, इतने पुण्य तो जगे हैं, अब सब उन्हीं पर छोड़
देना होगा. उसने नये दफ्तर में शिफ्ट कर लिया है, आजकल वह बहुत व्यस्त है. रजोगुण
शेष दोनों गुणों को दकर प्रमुख हो रहा है. यही उचित है, ऊर्जा को निकास के लिए कोई
तो मार्ग चाहिए..
आज ध्यान
में अद्भुत अनुभव हुआ. सम्भवतः पिछले जन्मों की झलक थी, कुछ दृश्य इतने स्पष्ट
दिखे. पहले एक स्त्री फिर मार्जारी तथा फिर एक राजस्थानी भाषा बोलती एक आकृति,
महिला या पुरुष कुछ समझ में नहीं आया, केवल भाषा मारवाड़ी सुनाई दे रही थी. कितने रहस्य
भरे हैं उनके अचेतन में. आज उसका जन्मदिन है, बिलकुल अनोखा और अलग सा..जब भीतर का
सब कुछ बदल गया हो तो बाहर सब कुछ अपने आप बदलने लगता है.
जून का
प्रथम दिन ! वर्षा बदस्तूर जारी है. सुबह वे टहलने गये तो फुहार पड़ने लगी. सडकों पर
कई जगह पीले अमलतास, लाल गुलमोहर, गहरे पीले रस्ट वुड तथा बैंगनी रंग के फूल बिछे
थे, रूद्र पलाश भी अनेक जगह बिखरे हुए थे. प्रकृति में रंगों की भरमार है, अनूठे,
चटख रंगों के फूल वर्षा पूर्व पेड़ों को
मनमोहक बना देते हैं. इस तेल नगरी की ये सैरें उन्हें बाद में याद आयेंगी. लेकिन
उन्होंने तो वर्तमान में रहने का अनोखा गुर अपना लिया है. परसों उसका जन्मदिन था,
सुबह अनोखी थी, दोपहर को अहंकार आड़े आ गया, जिससे शाम का कार्यक्रम भी प्रभावित
हुआ. मन ही सारे दुखों की जड़ है, आत्मा सारे सुखों की खान है. आत्मा में रहो तो
कितने हल्के-हल्के रहते हैं तन-मन दोनों ! दीदी को जन्मदिन की कविता भेजी है.
ब्लॉग पर कथा से प्रेरित होकर भक्ति भाव से लिखी कविता पोस्ट की है. आज बरामदे में
व बाहर बगीचे में दो सर्प दिखे, उसने फोटो भी लिए और वीडियो भी.
ध्यान के अनुभव का विवरण पढकर बदन सिहर गया!
ReplyDeleteसचमुच ! ध्यान की गहराई में कोई जाये तो एक अनुपम जगत के द्वार खुलने लगते हैं..स्वागत व आभार !
ReplyDelete