कल शाम को जून नन्हे से
नाराज थे, नूना ने कहा प्यार से समझाना चाहिए पर जो प्यार की भाषा ही न समझे उसे
समझाने का कोई दूसरा तरीका खोजना ही पड़ेगा. अभी भोजन नहीं बनाया है और किचन में
गैस लीक को ठीक करने कारीगर आ गये हैं. उसे एक सखी के यहाँ जाना था, जून भी आज
फ़ील्ड गये हैं, पर अब सम्भव नहीं लगता.
अप्रैल का अंतिम दिन, सुबह वे वक्त से उठे, ‘क्रिया’ की. जून दफ्तर जा रहे थे
कि खुले जाली वाले गेट से पूसी अंदर आ गयी, उन्हें बुरा लगा होगा क्योंकि दफ्तर
जाकर उन्होंने फोन पर कहा. पिछले दिनों नन्हे के जवाब देने के कारण और फोन पर
देर-देर तक बात करने के कारण वह परेशान थे ही. परिवार में आपसी सद्भाव, प्रेम व
सौहार्द के साथ-साथ अनुशासन भी बहुत जरूरी है, अन्यथा सभी सदस्य अपनी मनमानी करके
अपनी-अपनी राह चलने लगते हैं. रही पूसी व उसके तीन बच्चों की बात तो उन्हें कुछ
सोचना होगा. उनका फोन खराब है सो छोटी ननद से बात नहीं हो पायी, उसे art of living
कोर्स किये दो दिन हो गये हैं, यकीनन खुश होगी. पार्लियामेंट में आज गुजरात मुद्दे
पर १८४ के अंतर्गत बहस जरी है, सरकार तो बच ही जाएगी लेकिन गुजरात कब बचेगा इसकी
किसी को चिंता नहीं है. जब तक वहाँ के निवासियों को सद्बुद्धि नहीं आएगी हिंसा का
दौर चलता ही रहेगा. कल शाम वे क्लब एक फिल्म देखने गये अभिनेत्री के आते ही उठ गये
बहुत ही भद्दे वस्त्र पहने थी और आवाज भी भद्दी निकाल रही थी. आज क्लब में अशोका
फिल्म है शायद ठीक लगे. सुबह गुरुमाँ को सुना स्वयं को खोजना ही अध्यात्म है.
ध्यान में भी एक विचार गहरे विचरता है कि ध्यान चल रहा है, पर कर्ताभाव से मुक्त
हुए बिना ‘उसकी’ झलक नहीं मिलती. कल रात लेकिन देह का ठोसपना गायब होता लगा,
तरंगों का अनुभव हुआ.
मई महीने का आरम्भ हो चका है. कल दिन भर वर्षा होती रही पर अज धूप निकली है.
स्टोर की सफाई (मासिक) करवायी और बाएं तरफ की पड़ोसिन के यहाँ से लाकर काली तुलसी
का एक पौधा लगाया. नन्हा वहाँ पूसी के बच्चों को छोड़ने गया था, पर वह उनमें से दो
को वापस ले आयी है, तीसरे का पता नहीं. जून ने कहा है अब पूसी वहाँ नहीं रह सकती.
आज उसका मन अद्भुत शांति से परिपूर्ण है, बाबाजी ने ध्यान की विधि इतने सरल
शब्दों में बताई जो दिल को छू गयी. वह उनके सच्चे हितैषी हैं जो उत्थान की बात
करते हैं, किस तरह वे अपने मन को ईश्वर की ओर लगायें, सुख और शांति उनके सहज मित्र
हो जाएँ, ज्ञान, प्रेम और आनंद स्वरूप अपने मूल को वे खोज सकें और उसमें स्थित रह
सकें. उन्नत विचार, उन्नत भाव मानव को सहज बनाते हैं. आदर्शों को सामने रखते हुए,
मन, वचन, काया से सद्कर्म करने हैं, तभी वे सुखी होंगे.
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