Tuesday, February 3, 2015

कृष्ण की लीलाएँ


आज नन्हे की हिंदी की परीक्षा है, नहाने गया है हर रोज की तरह बार-बार कहने पर, इन्सान अपनी प्रकृति का दास होता है. कृष्ण ने सच ही कहा है कि गुणों को गुण वर्तते हैं. लोग अपनी प्रकृति के अनुसार कर्म करते हैं और कर्म बंधन में पड़ जाते हैं क्योंकि यही कर्म उनके अगले जन्म के कारण बनते हैं फिर यह क्रम चलता ही रहता है, पर कभी तो इस पर रोक लगानी होगी. तीनों गुणों के पार पहुंचना होगा. कृष्ण की कृपा जिसपर हो वह गुणातीत हो जाता है. ईश्वर के शरणागति होने पर वह अभय प्रदान करते हैं. भागवद में कृष्ण की कथा पढ़कर मन प्रफ्फुलित हो उठता है. पूतना, अघासुर, बकासुर, तृणासुर, शकटासुर और नरकासुर कितने असुरों को वह खेल-खेल में ही परास्त करते हैं. भीतर के छह असुर काम, क्रोध, लोभ, मोह और मत्सर का भी नाश करते हैं और उच्च पदों पर ले जाते हैं, अद्भुत हैं कृष्ण और उनकी लीलाएं ! आज गुरुमाँ ने ध्यान की महत्ता पर बल दिया, लेकिन ध्यान का फल तो भक्ति ही है न, जब उसका मन कृष्ण का चिन्तन बिना ध्यान के भी करता रहता है तो क्या ध्यान की फिर भी आवश्यकता है. सम्भवतः है क्योंकि अभी भक्ति का पौधा कोमल है, उसे सहारा चाहिए, जैसाकि भागवद में कई जगह पढ़ा कि हृदय में भक्ति उदय होने पर भौतिक कार्यों से मन धीरे-धीरे अपने आप विरक्त होने लगता है, कुछ छोड़ना नहीं है बल्कि अपने आप छूटता जाता है !

कृष्ण उनके अन्तरंग हैं, वह उनके मन के उस कोने तक भी पहुँचे हुए हैं, जहाँ वे स्वयं भी नहीं गये हैं. उनसे संबंध आदिकाल से है, सदा से है, नित्य है और जो भी सुख-दुःख इस जग में होने वाले संबंधों से पाते हैं वे मात्र उसका प्रतिबिम्ब हैं. प्रतिबिम्बों से कोई कब तक मन बहला सकता है. सारे जप-तप नियम का उद्देश्य है मन की शुद्धि ताकि मन उस प्रियतम का दर्शन कर सके. मन समाहित हो सके, उस एक की शरण में जा सके जहाँ से वह आया है. मन चेतन है, सत् है, आनंद स्वरूप है, पर वे तो मन के इस रूप को नहीं पहचानते, जैसे कोई किसी महापुरुष के संपर्क में तो हो पर उसके गुणों से अनभिज्ञ हो तो उसे कोई अनुभूति नहीं होगी. परम सत्य को न जानने के कारण ही वे उससे दूर रहते हैं, अनजान रहते हैं जबकि वह अंशी इसकी जानकारी देना चाहता है. भागवद की कथा जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है उसका कृष्ण के प्रति प्रेम भी बढ़ रहा है, वह उसे अपने और निकट लगने लगा है. उसके प्रति सखाभाव दृढ़ होता जा रहा है. वह प्रेम स्वरूप है, वह माधुर्य की मंजुल मूर्ति है, वह अनोखा है, उससे प्रेम किये बिना कोई रह नहीं सकता. ब्रज की गोपियों के पास उसकी बांसुरी सुनके घर पर रुके रहने का कोई कारण नहीं था. कृष्ण केवल प्रेम और माधुर्य ही नहीं ज्ञान का अवतार भी हैं, वह योगेश्वर हैं, वह भक्ति मार्ग के साथ-साथ ज्ञान और कर्म योग की शिक्षा देते हैं. वह ज्ञान के अथाह स्रोत हैं. जब यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड उन्हीं की कृति है तो उनसे अलग कुछ हो भी कैसे सकता है और ऐसे कृष्ण उनके मनों में रहते हैं !

पिछले दो दिन कुछ नहीं लिख सकी, किसी दिन जब मन उर्वर होगा तो डायरी के ये खाली पेज भी पहले की भांति भर जायेंगे. आज ध्यान गहन नहीं हुआ, पता नहीं मन के किस कोने से एक संशय ने फन उठाया है, जिसे अभी कुचल देना चाहिए और इस मिथ्या भावना को पनपने का मौका नहीं देना चाहिए. आत्मभाव में स्थित रहकर ही वे अपनी बुद्धि पर लगे जंग को हटा सकते हैं.


   

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