कल शाम वह पहली बार aol के
सत्संग में गयी. ॐ के उच्चारण से आरम्भ हुआ और फिर एक के बाद एक कई भजन गए गये.
कृष्ण, राम, शिव और गणेश के नामों का उच्चारण संगीत के साथ श्रद्धापूर्वक किया
गया. प्रसाद बंटा फिर एक महिला ने अपने अनुभव सुनाये. तेजपुर से इटानगर तक उनकी
कार में गुरूजी ने सफर किया उनसे बातें की, पूरा परिवार बेहद उत्साहित व प्रसन्न
था मानों उन्हें गुरू रूप में अमूल्य निधि मिल गयी हो. गुरू की महिमा ऐसी ही होती
है. वापस लौटने में उसे देर हो गयी, पौने आठ बज गये जबकि चर्चा अभी जारी थी, जून
को लेने भी जाना पड़ा और उन्हें इतनी देर होना भी नहीं भाया. खैर...भविष्य में क्या
होगा भविष्य ही बतायेगा. रात को देर तक गुरूजी के बारे में सोचती रही. मन में कई
विचार आ जा रहे थे, सब कुछ जैसे अस्पष्ट सा हो गया था. दो नावों पर पैर रखने वाले
की स्थिति सम्भवतः ऐसी ही होती है. उसे अपना मार्ग स्वयं ही खोजना होगा. उपासना की
भिन्न-भिन्न विधियों के जाल में स्वयं को उलझाना ठीक नहीं है. कृष्ण को अपने जीवन
का आधार मानकर उससे ही ज्ञान पाना होगा. इस बार ‘महाभारत’ भी वे लाये हैं. स्टेशन
पर ही मिल गया. अभी आरम्भ से पढ़ना शुरू नहीं किया है. कल द्वितीय खंड की भूमिका
पढ़ी. सफाई का कार्य अभी चल रहा है, दो-एक दिन और चलेगा.
आज ‘जागरण’ में ध्यान की विधि सिखा रहे थे. सुंदर वचनों से हृदय प्रफ्फुलित हो
उठा. कुछ देर संगीत अभ्यास किया फिर एक परिचिता आयीं अपने तीन-चार वर्ष के पुत्र
को लेकर. जाते समय वह नन्हे के तीन-चार खिलौने लेता गया जो उसकी आदत है. अगले दिन
माँ सबको वापस भिजवाती हैं. पुत्र मोह इन्सान से क्या-क्या करवाता है. आज नन्हा
वाशिंग मशीन में स्वेटर धोने का कार्य कर रहा है. सभी स्वेटर धोकर अगली सर्दियों
तक सहेज कर रखने होंगे. कल कुछ वस्त्र मृणाल ज्योति में देने के लिए निकाले,
सोमवार को एक अन्य महिला के साथ वह वहाँ जाएगी. एक अन्य परिचिता का फोन आया, मुख्य
अधिकारी की विदाई के लिए उन्हें दो कविताएँ चाहियें.
आज सुबह पौने पांच बजे उठी. जून ने मच्छरों के कारण नेट के अंदर ही क्रिया
करने की तैयारी कर रखी थी जब वह ब्रश आदि करके कमरे में आयी. कल पहली बार एसी भी
चलाया, गर्मी एकाएक बढ़ गयी थी. आज फिर बादल छा गये हैं. सुबह घर में सभी से बात
हुई, पिताजी काफी ठीक लगे. छोटी बहन मेजर बनने वाली है मई में, उसे बधाई देनी है.
गुरू माँ ने कहा, जिसके हृदय में प्रेम नहीं वह धार्मिक नहीं हो सकता, दिल में
प्रेम हो, सरलता, सहजता हो, विश्वास हो तो ईश्वर की तरफ चलने के पात्र बन सकते हैं
वे. ईश्वर जो उनके भीतर है उन्हें उनसे भी ज्यादा अच्छी तरह जानता है. उसे बाह्य
आडम्बरों से कुछ भी लेना-देना नहीं है, वह तो मन, बुद्धि का साक्षी है. वे कितने
भले हैं अथवा कितना ढोंग क्र रहे हैं, उसे सब पता है इसलिए उसके सम्मुख कोई दुराव
नहीं चल सकता. खुले मन से उसे पुकारना है, खुली आँखों से उसे निहारना है. जिस मन
में कोई छल न हो, जिन आँखों में कोई भ्रम न हो..
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