Monday, February 2, 2015

रवीन्द्र जैन का संगीत


मार्च महीने का आरम्भ ! आज फूलों के बीज एकत्र किये, अगले वर्ष इन्हीं बीजों को अक्टूबर में बोया जायेगा और जनवरी-फरवरी में खिलकर फिर नये बीज...इसी तरह जीवन का क्रम भी चलता रहता है. आज सुबह वे जल्दी उठे, नन्हा भी, सुबह-सुबह क्रिया करके तन-मन दोनों खिल उठते हैं. सद्गुरु की उन पर बहुत बड़ी कृपा है. उसने भागवद् का नवम स्कन्ध पढ़ना शुरू कर दिया है, वामन भगवान की कथा बहुत मधुर है. सुबह गुरुमाँ ने बताया, जिस प्रकार स्वप्न में मन का ही विस्तार होता है, वैसे ही यह जगत ईश्वर के मन का विस्तार है, उसकी लीला है, उसकी माया है, इसे खेल समझ कर ही देखना चाहिए, स्वप्नवत् ही जानना चाहिए. तब यह जगत दुखों का घर नहीं लगता बल्कि क्रीड़ा स्थली लगता है. किसी ने पूछा कि जब वह कष्ट में होते हैं तब ईश्वर की आराधना नहीं हो पाती, उसका बखूबी उत्तर दिया, उनके मुखड़े पे एक अनोखा तेज दिखायी देता है. शायद उसकी दृष्टि ही बदल गयी है. ईश्वर से सम्बन्ध के बाद ही उनके भक्तों की मस्ती का रहस्य समझ में आता है. कृष्ण को अपने अंतर में देखने के बाद कोई भौतिक कष्ट उस तरह प्रभावित नहीं कर सकता, लेकिन उस रात सरदर्द के कारण वह कृष्ण से शिकायत तो कर रही थी. जीवन में सुख-दुःख, मान-अपमान तो तभी तक है जब तक द्वैत भाव बना है. जब कोई यह जान ले कि वह उसी परमात्मा का अंश है, जिसने अपनी चितवन मात्र इस सृष्टि की रचना कर दी है तो अपने सामर्थ्य पर गर्व होता है !

टीवी पर ‘हैलो डीडी’ आ रहा है, जिसमें गीतकार, संगीतकार रवीन्द्र जैन जी प्रश्नों के उत्तर दे रहे हैं. वह साधना के महत्व को बता रहे हैं, इन्होंने अनेक फिल्मों में गीत और संगीत दिया है. रामायण आदि कई धारावाहिकों में भी संगीत दिया है. यह अपना आदर्श रवीन्द्रनाथ टैगोर जी को मानते हैं. बहुत दिनों बाद एक अच्छा कार्यक्रम देखने का मौका मिला है. उन्होंने कहा, “हम कॉमन रहें तो अपने आप अनकॉमन हो जाते हैं” ‘विश्वास अपने आपपर हो तो सफलता अवश्य मिलेगी’. उनकी आंखें नहीं हैं पर उनके मन की हजार आँखें हैं, वह इतने सुंदर गीत जो लिखते हैं, शेर लिखते हैं और सभी धर्मों को समान आदर देते हैं. चितचोर भी उन्हीं की फिल्म थी. कितने प्रभावशाली लोग फिल्म इंडस्ट्री में हैं तभी तो दशकों से इतना अच्छा गीत-संगीत देशवासियों को मिलता आ रहा है. अभी-अभी जून ने फोन किया दिगबोई से, नन्हा परीक्षा दे रहा होगा, यकीनन उसका एक्जाम अच्छा होगा. सुबह जून और नन्हे के जाने के बाद वह कुछ देर के लिए बाहर ही टहलती रही, एक सखी ने बहुत बार बुलाया था सो वहाँ चली गयी, चाय पिलाई उसने और अपने अस्त-व्यस्त घर व अस्त-व्यस्त जिन्दगी की दास्तान सुनाई, लौटी तो व्यायाम किया फिर टीवी ऑन किया और रवीन्द्र जैन जी से मुलाकात का मौका मिला जो सदा याद रहेगी. साढ़े ग्यारह हो चके हैं, टीवी पर गुजरात में हुई ताजा हिंसा के समाचार आ रहे हैं जो देखे नहीं जाते, लोगों की अक्ल पर पत्थर पड़ जाते हैं जो ऐसी हरकतों पर उतर आते हैं. कल भागवद का नवम स्कन्ध भी पढ़ लिया. कल बहुत दिनों बाद एक कविता लिखी !

आज सुबह सुबह जून ने हिंदी लाइब्रेरी से भागवद का दशम स्कन्ध तथा द्वादश स्कन्ध लेकर भिजवा दिया है. कल रात भर हुई वर्षा से मौसम ठंडा हो गया है और चारों दिशाएं भीगी-भीगी सी लग रही हैं. मन प्रभु प्रेम में आकंठ डूबा है, ऐसे में देहात्म बुद्धि का अपने आप क्षरण हो जाता है, सुख-दुःख आदि द्वन्द्व्दों से परे मन निर्विकल्प समाधि में स्थित रहता है ! आज बाबाजी ने गांधीजी के बारे में बताया और फिर वे रमन महर्षि के बाल्यकाल में देखे उस स्वप्न की बात बताने लगे जिसमें उन्होंने अपनी मृत्यी देखी थी. राजा जनक ने एक स्वप्न में देखा कि उनका राज्य छीन गया और वह भोजन के लिएय भटक रहे हैं. दोनों ने सोचा कि जो स्वप्न देख रहा था और जो जागृत अवस्था को देख रहा है वह कौन है और दोनों में से क्या सच था ? यह जिज्ञासा ही उन्हें आत्म साक्षात्कार तक ले गयी. ‘अथातो ब्रह्म जिज्ञासा’ जितनी तीव्र यह जिज्ञासा किसी में होगी उतना शीघ्र उन्हें भगवद ज्ञान की प्राप्ति होगी लेकिन वे ईश्वर को याद करते हैं तो सुख की कामना के लिए, वे चाहते हैं उनका जीवन कष्टों से मुक्त रहे, वे ईश्वर को चाहते ही कहाँ हैं? वे तो सुख-सुविधाओं के आकांक्षी हैं फिर यदि ईश्वर उनसे दूर है तो इसमें क्या आश्चर्य है, लेकिन ईश्वर इतना दयालु है कि उनकी कृतघ्नता से वह अप्रसन्न नहीं होता, उनका साथ नहीं छोड़ता, हृदय में सदा विराजमान रहता है. आत्मा स्वयं को उनमें देखने के बजाय मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार में देखती है और सुख-दुःख का अनुभव करती है. जिस दिन वह मुड़ कर स्वयं को परमात्मा के दर्पण में देखती है तो सब कुछ बदल जता है ..  यह ज्ञान ही उन्हें मुक्त करता है !

   

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