Wednesday, February 4, 2015

वेद की ऋचाएं


आज शिवरात्रि है. सुबह दीदी का फोन आया, परसों शाम वह श्री श्री रविशंकर जी के कार्यक्रम में गयीं और अगले हफ्ते AOL का कोर्स करने जा रही हैं. टीवी पर आत्मा आ रहा है जिसमें भक्तियोग की महत्ता पर बल दिया जा रहा है. अभी-अभी एक सखी से बात की, वह शिवरात्रि का व्रत रख रही है, श्री श्री के बारे में भी चर्चा हुई और भौतिक संसार की भी, जो उनके मनों में गहरा समाया हुआ है. कृष्ण को स्थापित करें तो कैसे करें, मन में इतना बड़ा ब्रह्मांड समाया है. जो इसका स्रोत है, जिस तत्व से सारे तत्व उत्पन्न हुए हैं उसी को स्थान नहीं है, यह एक विडम्बना ही तो है. कृष्ण आदि हैं, समस्त सृष्टि का कारण हैं. ज्ञान, प्रेम और आनंद का सागर हैं और वे भौतिक देह नहीं हैं, बल्कि आध्यात्मिक स्फुलिंग हैं जो परम सत्य का अंश हैं. पूर्ण का अंश होते हुए वे क्यों विखंडित जीवन व्यतीत करें, कृष्ण का आश्रय लेने पर ही वे शांति व संतोष का अनुभव करते हैं. ऐसा सुख जो शाश्वत है, जो बदली हुई परिस्थितियों के कारण प्रभावित नहीं होता. यह जगत स्वप्नवत है, क्षणिक है, देह के संबंध भी शाश्वत नहीं हैं. युगों युगों से तो वे संसार के गुलाम रहते आये हैं, यदि इस जन्म में भक्ति का उदय हुआ है तो उसे प्रश्रय देना होगा, आँधी, धूल से उसे बचाना होगा. कृष्ण से स्नेह करना होगा और वह तो हर पल उनसे स्नेह करता है !

भक्ति मार्ग सरल है, लेकिन भक्ति उसी के हृदय में पल्लवित होगी जो सरल हृदय का होगा. भगवद गीता में कृष्ण का वचन है कि निराकार की अपेक्षा साकार की पूजा करना शीघ्र प्रगति प्रदान करता है. अचिन्त्य, अव्यक्त, निराकार रूप की अपेक्षा मनमोहन का सुंदर, सुहावना रूप हृदय को शीघ्र एकाग्र करता है और व्यवहारिक भी है भक्ति मार्ग, इसमें कुछ छोड़ना नहीं पड़ता बल्कि ईश्वर को स्वयं से जोड़ना होता है और धीरे-धीरे भौतिक विषयों से मन अपने आप विरक्त होता जाता है. आज नन्हे की गणित की परीक्षा है, पिछले चार-पांच दिनों में उसने बहुत परिश्रम किया है. जो अवश्य रंग लायेगा. कल सुबह दीदी से पिताजी के स्वास्थ्य की बात की, उनकी आँखों का इलाज चल रहा है, उसने भी बात करनी चाही पर आज सुबह से ही फोन काम नहीं कर रहा है. कल भागवद में वेद की ॠचाओं द्वारा कृष्ण की स्तुति पढ़ी, जैसे सब कुछ स्पष्ट होने लगा, अब कोई संदेह नहीं रह गया है, सारे संशय मिट गये हैं. अध्यात्म जो कभी रहस्य प्रतीत होता था, अपने सारे सौन्दर्य के साथ उसके सम्मुख प्रकट हो उठा है. यह सभी सद्गुरु की कृपा से सम्भव हुआ है. उस दिन जो अनुभव हुआ था उसके बाद ही ज्ञान क्लिष्ट नहीं लगता है. भगवद गीता भी स्पष्ट हुई है पहले कई श्लोक बिना समझे ही पढ़ जाती थी, गुरू की कृपा महान है.

कल रात टीवी पर सद्गुरु को देखा, उनकी मुस्कुराहट मोहने वाली है और सहजता आकर्षक है. ज्ञान की बात वह सरल शब्दों में कहते हैं. “Intelligence with innocence is enlightenment. ‘I don’t know’ becomes beautiful when one starts knowing that he does not know everything or there is lot more to know.” वे जितना जानते हैं वह बहुत कम है इस बात का ज्ञान हो तो अहंकार नहीं होता, वे सहज होते हैं और मन सरल होने पर ही भक्ति को प्राप्त होता है. गुरूजी कहते हैं you are love and you should smile always what may come. AOL के सूत्र उन्हें सदा याद रखने चाहिए तो ही जीवन सुखमय और सरल रहेगा. नन्हे का गणित का पेपर ठीक हुआ है. अगले हफ्ते अंग्रेजी का अंतिम पेपर है और उसके अगले दिन उन्हें  यात्रा पर निकलना है. पिछले पन्द्रह-बीस मिनट से वह फोन पर बात कर रहा है. कल शाम बल्कि रात को कुछ देर उसने भागवत सुनी. गुरूजी का इंटरव्यू भी देखा. धीरे-धीरे उसे भी अध्यात्म का ज्ञान मिल रहा है. रोज सुबह कानों में ईश्वर की चर्चा पडती है और ईश्वर का नाम इतना प्रभावशाली है कि कोई भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता. उसकी भक्ति भी नैतिकता से शुरू हुई थी !


No comments:

Post a Comment