Wednesday, January 29, 2014

हावड़ा ब्रिज - कोलकाता की शान


आज उनका टीवी खराब हो गया, टीवी के बिना दिन जैसा भी गुजरे रोज से काफी अलग होगा. टीवी उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है. जून के अनुसार शाम तक ठीक हो जायेगा. कल शाम मीटिंग थी, क्लब में कुछ खा लिया, आठ बजे जब जून और नन्हा भोजन कर रहे थे, उसे जरा भी भूख नहीं थी, दस बजे उसे भूख लगी, उस समय कुछ खाना ठीक नहीं है यह सोचकर नहीं खाया, पर खाली पेट नींद काफी देर तक नहीं आ रही थी.

अब धूप में पहले की सी तेजी नहीं है. सुबह नाश्ता करने के बाद उसने नन्हे के लिए पेपर की छोटी-छोटी कारें बनायीं जो हावड़ा ब्रिज पर खड़ी की जाएँगी. उसका प्रोजेक्ट लगभग पूरा हो गया है, जिसे पिछले कई दिनों से वह और उसके मित्र मिलकर बना रहे थे. आज दो अक्तूबर है, बापू की १२८वी जयंती ! दोपहर को दूरदर्शन पर ‘गाँधी से महात्मा’, श्याम बेनेगल की फिल्म ‘Making of Mahatma’ का हिंदी रूपांतरण देखा. गाँधी दिल के और करीब हो गये. आज क्लब में कार्यक्रम है पर इतने बड़े महापुरुष के जीवन पर फिल्म देखने के बाद कुछ और देखना शेष नहीं रह जाता. बापू के पुत्रों को विशेषकर हरिदास को उनसे शिकायत रही, वैसे कुछ न कुछ शिकायत हर बेटे को अपने पिता से रहती ही है.

कुछ देर पहले छोटी बहन से फोन पर बात की, उसने अभी तक नवजात शिशु का नाम नहीं सोचा है, ३.४ केजी की गोरी सी बच्ची का नाम जो बड़ी बहन से कुछ मिलता-जुलता भी होना चाहिए. जून आज तिनसुकिया गये हैं, वापसी की टिकट के लिए, नहीं मिलने पर जाने की टिकट भी कैंसिल कर देंगे, सुनने पर यह वाक्य उसे कठोर लगा किन्तु यथार्थ यही है. आजकल बिना रिजर्वेशन के सफर करना उनके लिए असम्भव है, अपनी सुविधा की कीमत पर परिवार के साथ त्योहार में शामिल नहीं हुआ जा सकता. यह आधुनिक समाज की देन ही है जिसने एक ओर प्रगति की है दूसरी ओर कठिनाइयां भी बढ़ा दी हैं. घर से इतनी दूर रहने का खामियाजा ही समझ लें. पर यहाँ रहना उसे सदा से ही भाता रहा है और भाता रहेगा जब तक भी यहाँ रहना पड़े.

उसकी एक सखी बीएड करना चाह रही है, और उससे नोट्स मांग रही है. उसे आश्चर्य हुआ ऐसा कहते हुए वह बहुत निरीह लग रही थी, पहले कुछ ज्यादा ही उत्साहित थी. यही तो जिन्दगी है, जो कभी सिखाती है कभी झकझोरती है. हर दिन एक नया संदेश लेकर आता है. अगर कोई ध्यान से देखे और समझे तो !

कल सुबह जून को तिनसुकिया में कम्प्यूटर लिंक न होने के कारण वापस लौटना पड़ा पर उनके मित्र के छोटे भाई( जो एक ट्रेवल एजेंट बन गया है) ने टिकट ले ली है, उन्हें ख़ुशी तो हुई पर छोटी ननद उसी समय ससुराल जा रही है, उससे शायद मिलना न हो. शाम को वे टहलने गये मौसम में एक ठंडक सी आ गयी है और हरसिंगार के फूलों की महक भी. उनके हरसिंगार में अभी कलियाँ ही आई हैं. जून ने उस दिन गुलाबों की कटिंग भी कर दी है, अगले हफ्ते वे गोबर भी डलवा देंगे. कल शाम बल्कि रात को ही पड़ोसिन ने कागज की कारें बनाने के लिए कहा, पर उसके पास समय नहीं था, मना करने में अच्छा नहीं लग रहा था, पर किया, it means she is learning to be assertive, अपने वश से बाहर के काम को भी पहले वह ले लेती थी फिर चाहे कितना परेशान होना पड़े. जून अभी आने वाले हैं, उन्हें आज अस्पताल भी जाना है, उसके कान में हवा की कुछ खुसुर-पुसुर सी लग रही थी, आज सुबह से ठीक है, फिर भी कहा है न कि छोटे रोग की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए.  




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