Wednesday, January 22, 2014

किताबों की दुनिया


आज मौसम अच्छा है, ठंडी हवा, बादल और हरियाली ! गुलदाउदी के पौधों के लिए सहारे की जरूरत है, ज्यादा पानी पड़ने से पौधे तिरछे हो गये हैं. नैनी का लड़का बांस के खप्पचे तैयार कर  रहा है, फिर उन्हें बांधेगे और अब नीम की खली भिगोने का भी समय हो गया है. अभी-अभी उसी सखी से बात की, मन भर आया, अभी तो जाने की बात भर है, जब वास्तव में जा रहे होंगे तब... वे भी तो उन्हें उतना ही याद करेंगे. कुछ देर पूर्व पड़ोसिन से बात हुई उस दिन सैंडविच काटने के कारण एक सखी को बांह में दर्द हो गया था, उसे अस्पताल तक जाना पड़ा पर उसके साथ बात करने पर उस सखी ने यह बात नहीं बताई, शायद उसकी प्रतिक्रिया (कि वह बहुत नाजुक है) याद करके या उसकी तरह वह अपनी कमजोरी जाहिर न करना चाहती हो. शाम को वह घर पर ही रही स्वेटर बनाते हुए. अचानक उसे ध्यान आया यूँ अपने आप से बातें करते चले जाना कितना आसान है पर चिन्तन करना, सोचना-समझना कितना मुश्किल, हर पल मन पर नजर रखना यानि कि सब कुछ निरपेक्ष भाव से देखना शुरू करना, बिना किसी तुलना या भेद भाव के, और वह देखना ही सही सम्बन्धों का आरम्भ होगा. सुबह जून ने कहा, आलस्य के कारण शाम को उनके लिए उसने oats नहीं बनाये थे, बात कुछ हद तक सच भी थी पर चुभ गयी और अहम् का गुब्बारा पिचक गया, लोगों से कैसे पेश आयें कि न ही उन्हें दुःख हो, न ही स्वयं को, बातचीत करना दुनिया की सबसे बड़ी कला है जो स्वयं ही सीखनी पडती है, किसी भी स्कूल में नहीं सिखाई जाती.

क्लब में आज डिबेट है, कपड़े धोते समय मन में विचार आया क्या उसे सुनना सफल होगा, या फिर क्यों जाएँ वे सुनने ? उसकी दोनों सखियाँ नहीं जाना चाहतीं. उसके पास जाने का सबसे बड़ा कारण है लोगों को बोलते हुए सुनना, ऐसे तो टीवी पर हर दिन कितने ही लोगों को सुनते हैं पर अपने आस-पास के लोगों में से कुछ को अपने विचार रखते देखना सचमुच एक सुखद अनुभव होगा. मात्र सुनना और उन पलों की सुन्दरता को महसूस करना.

आज सुबह प्रमाद के कारण उठने में फिर देर हुई, जून तो जल्दी –जल्दी तैयार होकर दफ्तर चले गये पर वह सोचती रही कि दुनिया भर की किताबें पढने के बाद भी अगर उसमें इतना सा भी बदलाव नहीं आया तो व्यर्थ है पुस्तकों का पढना. स्वयं सोचना सीखना चाहिए. दूसरों के ज्ञान के सहारे अपनी नैया नहीं खे सकते. आधी से ज्यादा जिन्दगी बीत चुकी है पर सही मायनों में जीना अभी तक नहीं आया. ले दे कर कुल तीन प्राणी हैं घर में, उनमें भी आपस में कभी न कभी कोई टकराव हो ही जाता है चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, पर क्या यह अनुचित है? बात यह नहीं कि टकराव अनुचित है या नहीं, पर उसकी वजह उसकी नासमझी भी तो हो सकती है या सही संवाद का न होना भी, और ये बातें किताबों से पढकर नहीं सीखी जा सकतीं, सीख भी लें पर उसे अमल में लायें तो सही.

उसकी रोटी, जिसकी मेहनत, जिसका श्रम है ! आज घर कितना साफ लग रहा है, दर्शन पर किताबें पढने से अच्छा तो उन पर जमी धूल साफ करना है, मन हल्का है, तन शायद थका है पर यह थकान संतोष देती है, कुछ करने का संतोष. आज फोन पर किसी से कोई बात नहीं की, समय ही कहाँ था, कल शाम वे क्लब जाने के लिए तैयार हो रहे थे, एक परिवार मिलने आ गया, हंस कर अपने पतिदेव की शिकायत करना आगन्तुका की आदत है, उसकी नन्ही बेटी बातूनी हो गयी है, और पुत्र पहले की तरह है शर्मीला. कल जून ने बताया उन्हें एक पेपर प्रस्तुत करने दिल्ली जाना होगा. नन्हे की आजकल स्वीमिंग कोचिंग चल रही है, वह खुशदिल, शांत और मिलनसार बच्चा है, सुबह-सुबह उठने में उसे परेशानी होती है पर रात देर तक पढ़ सकता है.




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