Friday, December 21, 2012

हर्बी गोज बनाना



कल रविवार था, दिन में उसकी दो सखियाँ आयीं, दोपहर बाद गयीं, शाम भी फिर सारे काम निपटाते जल्दी से बीत गयी. पर सोमवार की शाम बिताए नहीं बीतती, उन्होंने कैरम खेला, डांस किया, नन्हे ने होमवर्क किया, कुछ देर राइम्स की किताब पढता रहा, उसकी लिखाई भी अब सुधरती जा रही है, टेस्ट में भी अच्छे मार्क्स आए हैं. और फिर वे जल्दी ही सोने आ गए, जून के होने पर वह इस समय खाना बनाने जाती है.

आज सुबह उसने अपनी पड़ोसिन को दिन में आने के लिए निमंत्रित किया था, दोपहर भर वे साथ रहे. शाम को मालूम हुआ कि उसे बुखार हो गया है, नूना को बहुत खराब लगा. शायद वह उसमें अपनी छोटी बहन को देखती है तभी उसका दुःख अपना दुःख लगता है. सुबह से जून का फोन नहीं आया था, पर उसकी बंगाली सखी आई उनका समाचार लेकर, उसके पति ने खबर दी थी जो जून के साथ ही काम कर रहे हैं. उन्होंने ड्राइवर के हाथ फल भिजवाए थे और दो कैसेट भी, एक हिंदी फिल्म “हम” दूसरा “हर्बी गोज बनाना” जो बहुत अच्छी कॉमेडी फिल्म है.

सप्ताहांत पर वे वापस आए हैं, उन्हें एक जगह सत्यनारायण की कथा में जाना था. वहाँ से लौटे तो पड़ोसियों के यहाँ गए, दरवाजा खुलने में थोड़ी देर लगी, बाद में उसे लगता रहा व्यर्थ  ही गए वहाँ. कल वे लोग तिनसुकिया जा रहे हैं और बाद में आर्मी कैंटीन भी, उसने सोचा  पहले कितना सोच-समझ कर वे पैसे खर्च करते थे और अब मन में ख्याल आते ही उस सामान को मूर्त देखना चाहते हैं. गर्मियों में माँ-पिता आ रहे हैं, कुछ सामान उसी की तैयारी है. हो सकता है तब तक वे बड़े घर में शिफ्ट हो जाएँ.

वे फिर चले गए हैं, नन्हा झूला पार्क गया है, उसने कुछ देर बगीचे में सफाई की, कुछ देर अखबार पढा, पर मन नहीं लगा. कढ़ाई का काम भी अधूरा पड़ा है. तिनसुकिया से सारिका भी लायी थी, अभी तक एक कहानी ही पढ़ी है, वह भी रास्ते में ही पढ़ ली थी कार में. किसी को दुखी देखकर, परेशान देखकर दिल में कैसी गांठ सी पड़ जाती है, आँखों में आँसू आ जाते हैं, जाने कहाँ से, क्या इसी का नाम सहानुभूति है, भाईचारा है, प्यार है, मानवता है..उनकी महरी के मन में भी ऐसी ही गांठ पड़ जाती है, उसका दिल भी ममता से भरा है, दुनिया में कितने ही लोग ऐसे होंगे.

पिछले कुछ दिनों से डायरी लिखने का अभ्यास या कहें क्रम कुछ बिखर सा गया है. आज फिर एक बार यह सीखने के बाद कि..अपने घर सा सुख कहीं नहीं..मन अपने अंदर की ओर झाँकने को कह रहा है. उसने सोचा, वे हमेशा बाहर ही देखते हैं, बाहर ही सब कुछ खोजते हैं, किसी से कुछ न कुछ कहने को, सुनने को लालायित रहते हैं. पर कितना समय वे अपने आप को देते हैं..अपने मन से बातें करते हैं, अपनी आवाज को पहचानते हैं. उसने सोचा उसे तो कम से कम इधर-उधर भटकने के बजाय अपनी प्रिय डायरी के पास होना चाहिए जो उसकी सारी बातों को सुनती है, जवाब भी देती है, उसे अकेलेपन से मुक्त करने के बजाय उससे जुड़ने का सुख देती है. जून का प्रेम असीम है यह बात वह पहले भी कई बार महसूस कर चुकी है और लिख भी चुकी है पर बार-बार कहने का मन होता है. उसका प्रेम इतना विशाल है कि उसकी कड़वी बातें भी उसकी मिठास में घुल जाती हैं, और उसे भी उसके सान्निध्य में अवश्य ही सुख मिलता होगा तभी तो..और कभी थोड़ी बहुत नोक-झोंक होने पर नन्हा बड़ी जल्दी सुलह करा देता है.

कल माँ-पिता का पत्र मिला, हमेशा की तरह चंद पंक्तियाँ पिता की अंग्रेजी में लिखी हुईं फिर लम्बा सा पत्र माँ का. सुबह से ही वह सोच रही थी कि उन्हीं रिश्तेदार को फोन करके घर आने के लिए कहेगी पर..साढ़े नौ बजे के लगभग उनकी नौकरानी ने बताया कि वे लोग घर गए हैं, उनके बड़े भाई की मृत्यु हो गयी है. सुनकर कैसा तो लगा, वह तो रो ही पडती शायद कि जून आ गए..उन्हें फिर दो दिनों के लिए तलप जाना था सो सामान लेने आए थे. दोपहर को उसकी असमिया सखी आई, शाम को सामने वाले घर की छोटी बालिका के साथ कैरम खेला, वे लोग भी आज नए घर में शिफ्ट कर रहे हैं. पुराने लोगों में इस लेन में वे ही रह गए हैं, एक दिन उन्हें भी जाना होगा, शाम के पांच बजे हैं नन्हा सोया है, वह बाहर बैठ कर  लिख रही है, पूरी लेन खाली है.

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